ये तेरे फ़न पे कोई शक़ नहीं, सवाल है बस…….. तू मुक़म्मल है तो हम लोग, अधूरे क्यों है…….!

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )                         

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के 100साल और भाजपा प्रमुख का बयान (अप्रासांगिक) चर्चा में तो है। लोकसभा चुनाव चल रहे हैं,एन केन प्रकारेण पार्टी,नरेंद्र मोदी तीसरी बार सरकार बनाकर बतौर पी एम बन कर नेहरूजी की बराबरी करने आतुर हैं ऐसे नाजुक वक्त में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का एक साक्षात्कार’भाजपा को संघ के समर्थन की जरूरत नहीं ?’ चर्चा में है।उन्होंने एक अख़बार से कहा है कि अटल के समय पार्टी को खुद को चलाने आरएसएस की जरूरत थी क्योंकि उस समय भाजपा कम सक्षम, छोटी पार्टी थी अब पार्टी की संरचना मज बूत हो गई है। अब भाजपा अपने भरोसे ही चलती है। 27 सितंबर 1925 में आर एसएस की स्थापना हुई थी स्थापना के 100 सालों के भीतर क्या आरएसएस ही अपनों में अप्रासांगिक हो गई है…?दरअसल एक तरह से मोदी,संघ के लिए एक ऐसी मजबूरी बन गए जिनके अलावा संगठन के पास कांग्रेस को धूल चटाने वाला कोई बेहतर विकल्प नहीं था।संघ प्रमुख भाग वत, सहयोगियों ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे क़द्दावर नेताओं को ‘मार्ग दर्शक’ की भूमिका देने और मोदी को राजनीतिक नेतृत्व के शीर्ष तक पहुँचाने की कोशिशें शुरू कर दीं,कामयाब भी रहे।हालांकि ये सवाल कई लोगों के मन में है कि क्या मोदी, संघ को अप्रासंगिक कर देंगे.. ऐसा मानना संघ के इतिहास की अनदेखी करना होगा।हालांकि जन संघ,भाजपा के इतिहास में मोदी से ज़्यादा लोकप्रिय नेता (अटल बिहारी वाज पेयी सहित) कोई नहीं हुआ मोदी ये भी समझते हैं कि भाजपा के पास भारतीय जनता युवा मोर्चा के अला वा अपना कोई औरमज़बूत संगठन है ही नहीं,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, मज़दूर संघ,किसान संघ, इतिहास संकलन समिति, विश्व हिंदू परिषद,वनवासी कल्याण आश्रम,भारतीय जनता पार्टी तक की भी राजनीति प्रतिबद्धता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति है,फिर सवाल उठता है कि आगे क्या होगा…मोदी के शासन के शुरुआती दौर में सरकार और संघ के बीच तालमेल, सहकार के संकेत मिलते रहे पर बाद में दूरियाँ बढ़ती गईं…संघ की कार्य पद्धति को समझने वाले ही बताते हैं कि संगठन के तौर पर संघ मोदी के ग्लोबला इज़ेशन, खुले बाज़ार, कॉर पोरेट सहयोग आदि को नज़रअंदाज़ भी किया, बशर्ते नरेंद्र मोदी हिंदुत्व को लोकप्रिय बनाने के मुद्दों जैसे लव जिहाद, धर्म- परिवर्तन, गरबा में मुस्लिम युवकों के प्रवेश पर पाबंदी आदि नज़र अंदाज़ करते रहें। मोहन भागवत के नेतृ त्व में संघ इस नतीजे पर भी पहुँचा है कि मोदी को पीएम, सरकार के प्रमुख के तौर पर साँस लेने लाय क़ जगह दी जानी चाहिए ताकि एक स्टेट्स मैन के तौर पर उनकी छवि गढ़ी जा सके, उन्हें ‘छोटे- मोटे मुद्दों’ से ऊपर माना जाये पर बाद में भाजपा पर संघ प्रभावहीन होता जा रहा है। हाल ही में कुछ राज्यों में (छ्ग सहित) भाजपा की सरकार बनाने में संघ की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही पर सरकार बनते ही राज्य- संघ के बीच तालमेल का अभाव दिख रहा है, संघ की सलाह की अनदेखी की खबरें मिल रही है तो क्या इसके पीछे मोदी सरकार- संघ के नेतृत्व के बीच बनते बिगड़ते रिश्ते तो नहीं है…?भले ही संघ, संस्कृतिक, सामाजिक संगठन होने की पैरवी की जाती रही है पर भाजपा के पीछे की यह बड़ी शक्ति है इससे कोई इंकार भी नहीं कर सकता है निश्चित हीभाजपा सुप्रीमो नड्डा का यह साक्षात्कार नाजुक समय में नहीं आना था…?

भारत में पहले परमाणु
परीक्षण के 50 साल…   

50 साल पहले भारत के इतिहास में 18 मई 1974 को हमेशा याद रखाजाएगा उस दिन देश का पहला परमाणु परीक्षण,राजस्थान की पोखरण टेस्ट रेंज में किया गया था।भारत के इस ऐतिहासिक कदम से दुनिया के देश हैरान रह गए थे। ‘ऑपरेशन बुद्धा’ कदम से दुनिया की सीक्रेट एजें सियां सकते में आ गईँ थी।राजस्थान में हुए ‘ऑपरेशन बुद्धा’ की भनक तक नहीं लग पाई थी।पीएम इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश ने उपलब्धि हासिल की थी। वैज्ञानिकों ने इसे ‘स्माइ लिंग बुद्धा’ भारतीय सेना ने ‘हैप्पी कृष्णा’और सरकारी रिकार्ड में इसे ‘पोखरण-1’ नाम दिया गया था।भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो इसके बाद ही परमाणु शक्ति संपन्‍न देश घोषित किया गया, माना जाता है कि भारत के इस कदम से अमेरिका तिलमिला उठा था। अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता उस समय यह थी कि खुफिया एजेंसियों और सैटेलाइट को इसकी भनक कैसे नहीं लगी…? इसका प्रमुख कारण अमे रिका -वियतनाम युद्ध में उलझा था। उस वक्त भारत यह परीक्षण कर रहा था। इस परीक्षण का नतीजा रहा,अमेरिका, कई अन्य देशों ने भारत पर कई प्रति बंध लगाये थे।ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा के बाद भारत ने साल 1998 में पांच और परमाणु परीक्षण किये। इसमें से तीन 11 मई और अन्य दो 13 मई को किए गए थे।

राजनांदगांव में भूपेश
की प्रतिष्ठा दांव पर…..?   

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में सबसे प्रतिष्ठा की सीट राजनांदगांव है जहाँ पूर्व सीएम भूपेश बघेल का मुकाबला मौजूदा सांसद संतोष पांडे से है। 2023 के चुनाव में कांग्रेस ने आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर जीत दर्ज की थी। खैरा गढ में 5634, डोंगरगढ़ में 14367, खुज्जी, 25944, मोहला-मानपुर में 31741, डोंगरगांव में 2789 वोटों के अंतर के साथ कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. इन 5 सीटों पर कांग्रेस की बढ़त 80475 थी, लेकिन भाजपा ने जो तीन सीटें पंडरिया,कवर्धा व राज नांदगांव जीतीं,उनके वोटों का कुल योग1 लाख 11हजार 074 था, सर्वा धिक 45084 वोट पूर्व सी एम डॉ रमन सिंह को मिले थे।राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में अधिक विस जीतने के बाद कांग्रेस 30 हजार 599 वोटों से पीछे रही,यह अंतर 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में काफी कम था।भाजपा ने 8 विधा नसभा में 6 पंडरिया,कव र्धा,खैरागढ़, डोंगरगढ़, राज नांदगांव व डोंगरगांव में कांग्रेस से अधिक वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस ने खुज्जी, मानपुर -मोहला में भाजपा को पीछे किया था।भाजपा के संतोष पांडे को कुल 6,62,387 वोट मिले, पराजित भोला राम साहू को 5 ,50,421 यानी 2019 के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से1लाख 11हजार 966 से अधिक वोट प्राप्त किए थे।इसका अर्थ है भूपेश को वोटों की इस खाई को पाटना होगा? वैसे इतिहास गवाह है कि यहां से पूर्व सीएम मोती लाल वोरा भी हार चुके हैं।

और अब बस….

0भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने तो भगवान जगन्नाथ को पीएम मोदी का भक्त ही बता दिया..?
0ईडी के जाँच दायरे में आने वाले एक पुलिस कप्तान को आखिर कौन बचा रहा है….?
0छ्ग में भाजपा की सरकार बनने के बाद आखिर किस मंत्री की अधिक चल रही है….?
0 4 जून को ही स्थिति स्पष्ट होगी कि छ्ग में कहाँ कहाँ विधानसभा उपचुनाव होगा…?

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