{किश्त 141}
इतिहास बताता है कि विभिन्न राज्यों में सीएम अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री,राज्यमंत्री,उपमंत्री तथा संसदीय सचिव को शामिल करते थे।धीरे-धीरे यह परम्परा ही समाप्त हो गई। असल में संसदीय सचिवों की सुदीर्घ परंपरा ‘ब्रिटिश हाऊस ऑफ कामन्स’ से चली आ रही थी,आजादी के बाद कुछ प्रदेशों के मंत्रिमंडल में कबीना मंत्री,राज्यमंत्री, उपमंत्री तथा संसदीय सचिव इस तरह 4 स्तरीय परंपरा होती थी। तब मंत्रि मंडल में मंत्रियों की संख्या निर्धारित नहीं होती थी, पर संविधान के संशोधन 91 में बने अधिनियम 2003 मे अनुच्छेद 75 की धारा (1) में कुछ धाराएं जोड़ी गई जिसमें 1(ए) के अनुसार मंत्रिपरिषद में पीएम,सीएम सहित मंत्रियों की संख्या 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए यह संशोधन गृह मंत्रालय की स्थायी समिति की सिफारिश के आधारपर किया गया है। इसमें भी 12 मंत्रियों की संख्या सिर्फ मिजोरम,सिक्किम और गोवा के लिये थी,चूँकि इन विधानसभाओं की संख्या ही 40 है। दरअसल भारी मंत्रिमंडल राजकोष पर अनावश्यक भार के कारण जनता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था इसलिये सभी राजनीतिक दलों ने संवि धान संशोधन से सहमति दी और यह पारित भी हो गया।वैसे देश के पीएम रहे लाल बहादुर शास्त्री भी आजादी के बाद उप्र में गोविंद वल्लभ पंत के मंत्रि मंडल में संसदीय सचिव रह चुके हैं। वहीं अविभाजित मप्र तथा छग में स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल (विधानसभा अध्यक्ष)1967 के द्वारिका प्रसाद मिश्र के मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव (गृह) का भी कार्यभार सम्हाल चुके है। सीएम प्रकाशचंद सेठी (1972-75) के कार्यकाल में रानी कमलादेवी संसदीय सचिव(स्थानीय शासन, स माज कल्याण) श्यामाचरण शुक्ल के मंत्रिमंडल (75 से 77) में किशनलाल कुर्रे (हरिजन कल्याण), भवानी लाल वर्मा (राजस्व बंदोब स्त) के संसदीय सचिव रह चुके है। वीरेन्द्र सकलेचा के मंत्रिमंडल (78-80)में ननकीराम कंवर(राजस्व) माधव सिंह ध्रुव (आदिम जाति कल्याण) तो सुंदर लाल पटवा के मंत्रिमंडल (जनवरी-फरवरी 80) में वीरेन्द्र पांडे वन विभाग के संसदीय सचिव का कार्य भार सम्हाल चुके हैं।मप्र में अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में 1981 के पुनगर्ठन में गंगा पोटाई (ठाकुर) सहकारिता विभाग की संसदीय सचिव रही तो मोतीलाल वोरा मंत्रि मंडल (1989) में शिव नेता म, सहकारिता विभाग के संसदीय सचिव बनाये गये थे,सुंदर लाल पटवा के मंत्रि मंडल (जून 1990 विस्तार में) गणेशराम भगत संस दीय सचिव,अजा कल्याण बनाये गये थे। बाद के मंत्रि मंडलों में संसदीय सचिव बनाने की परंपरा ही समा प्त हो गई। छग में डॉ. रमन सिंह ने फिर संसदीय सचिव बनाने की परंपरा शुरू की और बाद में भूपेश बघेल ने भी अनुसरण ही किया था। पहले राज्यमंत्री, संसदीय सचिव को भी विधानसभा के भीतर प्रश्नों के जबाव देने का अधिकार होता था। श्यामाचरण शुक्ल (89- 90) के बाद मंत्रिमंडल में उपमंत्री बनाने की परंपरा समाप्त होगई,अविभाजित मप्र में दिग्विजय सिंह मंत्रि मंडल में आखरी बार ही राज्यमंत्री बनाये गये थे। छग राज्य बनने के बाद कबीना मंत्री बनाने की परं परा ही शुरू हो गई। छत्ती सगढ़ राज्य बनने के पहले 1998 में दिग्विजय सिंह के मंत्रि मंडल विस्तार में भूपेश बघेल(परिवहन) शंकरसोढ़ी (वन) और धनेन्द्र साहू जल संसाधन, राज्य मंत्री के रूप में शामिल किये गये थे।