{किश्त 107}
छत्तीसगढ़ में हाथी और मानव के बीच जंग छिड़ गई है,दरअसल हाथियों को, ग्रामीण जंगल से खदेडऩा चाहते हैं और हाथी ग्रामीणों को उनके गांव से… देखना है कि किसका पलड़ा भारी पड़ता है…? छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौजूदगी का इतिहास काफी पुराना है। सूत्र कहते हैं कि कभी छत्तीसगढ़ से विस्थापित हाथी अपने मूल प्रदेश में लौटना चाहते हैं तभी तो छग में आकर अपने बच्चे भी पैदा कर रहे हैं।मुगल काल में छत्तीसगढ़ के हाथी दिल्ली भेजे जाते रहे हैं।” मेमायर्स ऑफ जहांगीर” में रतनपुर की जमींदारी का जिक्र है। रतनपुर के जमींदार कल्याण साय को मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में रहना पड़ा था। मेमायर्स ऑफ जहांगीर में रतनपुर के जमींदार के बारे में उल्लेखित है जिसे जहांगीर के पुत्र परवेज ने सेना भेजकर पकड़कर मंगवाया था,जहांगीर के सामने इस तथ्य के साथ प्रस्तुत किया गया कि उससे 80 हाथी और एक लाख रुपये भेंट लिये गये बाद में उस जमींदार का दूधभाई गोपालराम ने दिल्ली जाकर मुक्तकराया था, मतलब उस समय छत्तीसगढ़ में हाथी बड़ी संख्या में थे। वैसे हाथी सरगुजा क्षेत्र में भी बहुत थे।प्राचीनकाल में एक राजा जिन्हें ‘एलीफेंट कैचर’ कहा जाता था उन्होंने क्षेत्र की जनता को हाथियों के हमले से मुक्ति दिलाई थी वे तो जानवरों का महासंग्राम हाथी-गेंडा रोकनेअफ्रीका तक गये थे।करीब 300 साल पहले की बात है। सरगुजा रियासत सहित मध्यभारत के कई क्षेत्रों में हाथियों का आतंक था,तब सरगुजा रियासत के महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव (पूर्व डिप्टीसीएम टीएस सिंहदेव ‘बाबा’ के पूर्वज)थे उन्होंने क्षेत्र की जनता को हाथियों के आतंक से मुक्ति दिलाई, वैसे उनके पुत्र महाराज रामानुज शरण सिंहदेव भी अपने समय के सिद्ध हस्त एलीफेंट कैचर रहे हैं।एलीफेंट कैचर हाथियों पर आसानी से काबू पाने वाले को कहा जाता है। केनिया,तंजानिया और युगांडा की सीमा पर एक गैंडे के आतंक से भी मुक्ति दिलाने, हाथियों के आतंक से मुक्ति दिलाने भी वहां के बुलावे में महाराजा सरगुजा गये थे, वहां के लोगों को मुक्ति भी दिलाई मतलब हाथी सरगुजा में भी थे।सूत्र कहते हैं कि पूर्वी और मध्यभारत में हाथियों का घर 23 हजार 500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है।यानि झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक, ओडिसा और छत्तीसगढ़ तक इनकी आवाजाहीका गलियारा फैला है।अब यह गलियारा टूट रहा है जंगल कट रहे हैं, क्षेत्र में कोयला/खनिज उत्खनन हो रहा है।आबादी वहां बसती जा रही है बस यही हाथियों-मानव संघर्ष का प्रमुख कारण है।कहीं लौह अयस्क की खदाने, कहीं विद्युत संयंत्र कहीं, कोयला खान,कहीं कल कारखाने खुलते जा रहे हैं,औद्योगिकीकरण की रफ्तार तेज है, दुनिया के सबसे बड़े,समझदार जानवर हाथी की उपेक्षा की जा रही है इसीलिए हाथियों का झुंड गांव, कस्बों और शहरों में घुसकर मानव जाति को हानि पहुंचा रहा है,फसल घरों को नुकसान पहुंचा रहा है।वन जानकारों की माने तो वह दिन दूर नहीं जब छग की पहचानहाथी बाहुल्य क्षेत्र के रूप में बन सकेगी।अतीत में छग से पलायन कर गये हाथी अब अपने मूल स्थान पर लौट रहे हैं,उनके लिये हाथी अभारण्य बनाना, मानव से उनके संघर्ष को टालने के लिए कोई कार्य योजना जल्द शुरू करनी ही होगी…। सूत्र कहते हैं कि हाथी काफी समझ दार होता है वह रेल की पटरी पर अपनी सूंढ़ रखकर पटरी के कंपन्न से पता लगा लेता है कि रेल अभी वहां से कितनी दूर है तभी पटरी पार करता है।पानी है यह उसे 3 किलोमीटर पहले पता लग जाता है,धान की कच्ची फसल, गन्ना और महुआ उसका पसंदीदा भोजन है।बहरहाल उसे हानि पहुंचाने का प्रयास होगा तो वह भी मानव और उसकी संपत्ति को हानि पहुंचाने में पीछे नहीं रहेगा…?