{किश्त 96}
छत्तीसगढ़ में भी कई बांध अब अपने जीवन के अंतिम दिनों पर हैं,कुछ के रख- रखाव की जरूरत है तो कुछ को नये सिरे से बनाने की जरूरत है?वैसे 50साल ही लोहे सीमेंट से बने बांधों की उम्र मानी जाती है।छ्ग बनने के बाद से लगातार यह महसूस भी किया जा रहा है कि नये बांध तो बने नहीं,वहीं पुराने बांधों के रख रखाव की दिशा में भी कोई पहल नहीं की गईं,ये बांध मानवजीवन के लिये खतरा बन जाएँ, इसके पहले कदम उठाना जरुरी है।’एजिंग वाटर इंफ्रा स्ट्रक्चर एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्क’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विश्व विद्यालय कनाड,जल पर्या वरण,स्वास्थ्य संस्थान ने तैयार की है जिसमें कहा गया है भारत में सन 2025 तक1000 से अधिक बांध 50 वर्ष पुराने हो जाएंगे, दुनिया भर में इस तरह के पुराने ढांचे भविष्य मेंखतरा बढऩे का कारण बन सकता हैं।रिपोर्ट के अनुसार 50 साल कांक्रीट का बना बांध पुराना हो जाता है।दीवार टूटने का खतरा पैदा हो जाता है,रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर पुरानेबांधों के रख-रखाव का खर्च बढ़ जाता है,जल भंडारण क्षमता भी कम हो जाती है।ऐसी स्थिति में बांध मेंकिसी तरह की हानि होती है तो उसका असर आसपास की आबादी बसाहट पर सबसे पहले होगा,इससे जनहानि की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है..?भारत के 1115 बड़े बांध 2025 में 50 साल,इससे अधिक पुराने ही हो जाएंगे।देश में 64 बांध तो 2050 में 150 साल से अधिकउम्र के हो जाएंगे।छत्तीसगढ़ में भी पुराने बांधों की संख्या कम नहीं है।धमतरी के माडम, मुरूमसिल्ली बांध 1914 से 1923 के बीच बना था,जांजगीर केअकल तरा में बना रोगदा बांध19 61 में बना था,महानदी में बना गंगरेल बांध भी 1979 बना था।यह 44 साल की उम्र पूरी कर चुका है।19 15 में रूद्री पिकअप बियर बना था।कांकेर का दुधावा जलाशय भी है जो 1965 में बना था,हसदेवबांगों बांध भी 1961-62 में शुरू हुआ था,1967में निर्मित छग का सबसे ऊंचा (87मीटर) बांध है।तांदुला परियोजना की स्थापना तो 1910 में हुई थी लेकिन बांध का निर्माण 1920 में हुआ था।बालोद जिले का गोंदली जलाशय 1956 ,खरखरा सायफन परियोजना19 67, मनियारी परियोजना 1930, खारंगटैक 1931में बना था,कोटा काअमचवा डेम 1917,भोपालीडेम सर गुजा 1968, दर्रीटोला डेम बालोद 1910,धर्राडेम डोंगर गढ़ 1961,गंगनईडेम पेंड्रारोड 1972, धोंधाडेम (कोटा)1981,धुधवाडेम 1967 घोंडलीडेम बालोद 1956 ,जमडीहडेम सूरज पुर1972 ,कालीदरहा डेम सरायपाली 1974 ,केण्डा नालाडेम सारंगढ़ 1971, केशवाडेम महासमुंद1967 खपरीडेम दुर्ग 1908, मनियारीडेम मुंगेली 1930 मयानाडेम कांकेर1977 नवागांवडेम खैरागढ़1961 पेण्ड्रावनडेम 1909, सरोदा डेम कवर्धा 1963, तांदुला डेम बालोद 1912 में बना था।इसी के साथऔर भी पुरानी सिंचाई परियोजना भी छत्तीसगढ़ में है।इन पुराने बांधों के रख रखाव पर भी राज्य सरकार को ध्यान देना है।समयरहते एक विशेषज्ञ कमेटी बना कर बूढ़े हो चुके बांधों के वर्तमान हालत पर निगाह रखने की भी जरूरत है।वैसे पिछले एक दशक से आमजनता को रेवड़ी बाँटने की पहल ही की जा रही है, अब यहीं देखा जाता है कि मतदाताओं को कौन सी पार्टी कौन सी सुविधा दे रही है..?सिचाई, बिजली उत्पादन इकाइयों की स्था पना आदि बहुउद्देश्यीय योजनाएं तो अब कहीं नजर नहीं आती हैँ ?