(किश्त 85)
काला पानी के नाम से चर्चित सेल्यूलर जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरु हुआ था। जिसके बाद इस जेल के बनने का काम 1906 में पूरा हुआ था।इस जेल का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने करवाया था। इस जेल में ब्रिटिश सरकार भारत के स्वतंत्रतासैनानियों को रखती थी। इस जेल की निर्माण लागत ₹5लाख 17 हजार थी।वहीं छग की राजधानी में स्थित सेंट्रल जेल भवन का 1862 में निर्माण शुरू हुआ और 1968 यानि 6साल में बनकर तैयार हुआ।यानि रायपुर जेल काला पानी जेल से भी लगभग 34 साल पुरानी है।जहाँ तक भारत की प्राचीन जेल की बात करें तो मद्रास जेल की स्थापना 1837 में हुई थी। रायपुर स्थित प्राचीन जेल में कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे हैं।पहलेजेल परिसर 78.42 एकड़ में था। केवल जेल भवन ही 18 एकड़ में है।साग सब्जी का बगीचा 26 एकड़ में था तो14एकड़ में कृषि योग्य भूमि थी,19एकड़ का एक तालाब भी था।पर बाद में इसका आकार छोटा होता गया। मूल बिल्डिंग से तो छेड़छाड़ नहीं हुई मेकाहारा, मेडिकल कालेज,देवेंद्रनगर आदि की बसाहट होती गई। 1862में कारागार का नियमित स्थापना के रूप में गठन हुआ तब तय हुआ कि छोटे छोटे जिलों में सिविल सर्जन जिला जेलों के प्रभारी होंगे।1862 ने डा.बेँसले ने रायपुर जेल का प्रभार सम्हाला था।इसी समय जेल विभाग में आईजी की भी नियुक्ति हुई और सेना गार्डो के स्थान पर पुलिस गार्डोँ की भी नियुक्ति की गई।रायपुर सेंट्रल जेल में फांसी भी दी जाती थी।आपातकाल के बाद ज़ब मप्र में गैर कांग्रेस की सरकार बनी और संत कवि पवन दीवान जेल मंत्री थे तब बैजू नाम के एक कैदी को फांसी की सजा हुई थी,यह फांसी इसलिए भी चर्चित रही क्योंकि जेल मंत्री की अनुमति से दो पत्रकारों ने केवल फांसी ही नहीं देखी,बाद में उसकी रिपोर्टिंग भी की थी।25 अक्टूबर 1975 को जेल में सुबह के 04:30 बजे बैजू नामक कैदी को फांसी दी गई।बैजू पर आरोप था कि उसने 2 हजार रुपए के लिए एक ही परिवार केचार लोगों की हत्या कर दी थी।