ढाई हजार साल पुराना बंदरगाह भी मिला है छ्ग में….

{किश्त84}

राजधानी रायपुर से 65 किलोमीटर दूर गरियाबंद पांडुका की पैरी नदी में ढाई हजार साल पहले बंदरगाह था।यहां से जहाज ओडिशा के कटक से होकर बंगाल की खाड़ी से चायना (चीन) तक जाते थे।उस समय में छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर कोसा की पैदावर होती थी। कोसा इसी रास्ते से चायना भेजा जाता था।एक समय में कोसे का इतनी मात्रा में निर्यात होने लगा था कि इसका नाम ही ‘सिल्करुट’ पड़ गया था।बंदरगाह की खोज कई मायनों में खास मानी जा रही है।केंद्र ने नदी के तट की खुदाई की मंजूरी दे दी है।पांडुका सिरकट्टी के तट पर नदी के किनारे छह चैनल यानी गोदी केअवशेष साफ नजर आते हैंप्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नदी के तट पर चट्टानों को काट कर जहाज खड़ा करने के लिए गोदी बनाई गई थी।

6 जहाज खड़े होते
थे एक साथ…

पैरी नदी पर जहाज खड़े होने के 6 चैनल या गोदी मिली है।यानी यहां एक साथ छह जहाज खड़े होते थे।एक-एक गोदी कीलंबाई 120 मी.×चौड़ाई 35 मी. है।अभी तक के सर्वेक्षण के दौरान जो संकेत मिले हैं उसके मुताबिक यह पहला बंदरगाह है,जिसे चट्टानों की गहराई काटकर बनाया गया है।पैरी नदी के तट पर चट्टानों के इन्हीं निशानों के बारे में दावा किया जा रहा है कि ये गोदी यानी जहाज खड़ा होने की जगह हैं।
यद्यपि इस तथ्य से इंगित किया जा सकता है कि हाल ही में खोजे गये ग्राम पांडुका सिरकट्टी के तट पर पैरी नदी के किनारे पांच चैनल यानी गोदी नुमा आकृति के अवशेष स्पष्ट नजर आ रहे हैं सिरकट्टी आश्रम कूटना के पीछे पैरीनदी पर देश का पुराना रॉककट,बंदरगाह माना जा रहा है।प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने दावा किया है नदी के तट पर चट्टानों को काटकर जहाज खड़ा करने के लिए गोदी बनाई गई थी यही गोदी नुमा आकृति सबसे पहले पुरातत्वविभाग के तत्कालीन उप संचालक जी के चंदरौल ने सर्वेक्षण के दौरान देखी थी।कई दिनों तक सर्वे करने के बाद खुलासा किया कि पांडुका, सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर ढाई हजार साल पहले बंदरगाह (पोर्ट) हुआ करता था।उस समय नदी का जल स्तर अधिक था,आसानी से जहाज का आवागमन हो जाता था।वरिष्ठ पुरातत्व विद अरुण शर्मा ने यह दावा किया है कि समुद्री जहाजों से सामान सिरपुर, कटक और फिर अरब सागर के मार्ग से विदेशों तक आयात-निर्यात किया जाता था।उस समय कोसा के अलावा सुगंधित चावल, कांच कीचूड़ियां,आयुर्वेदिक दवाइयां चीन तक निर्यात होती थीं।

सिरपुर के इतिहास
से जुड़े हैँ तार…..

पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण से पता चला है कि पैरी नदी का बंदरगाह सिरपुर के वैभव काल में आबाद था।सर्वेक्षण में इसकी पुष्टि हो चुकी है।दोनों एक ही कालखंड के हैं।जहाज कैसे हुआ करते थे,उसकामॉडल सिरपुर में मिला है,बाजार से भाठाफूल चांवल,लोहे के औजार,कांसे की मूर्तियां और जड़ी बूटी निर्यात की जाती थी।इसके अलावा देवभाेग से हीरा भी आपूर्ति होने के प्रमाण मिले हैं।राजिम में उसी काल में औषधि बनाने की प्रयोग शाला हुआ करती थी।

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