इंदौर। आम चुनाव को लेकर कांग्रेस भी अपनी रणनीति तैयार करने में जुटी है और इस बार ऐसे चेहरे को लोकसभा में उतारने को तैयार है जो जमीन से जुड़े व आम कार्यकर्ताओं की पंहुच में हो। लगातार हारने वाली इंदौर लोकसभा सीट के लिए भी चेहरा तलाश किया जा रहा है। यूं तो इंदौर से लड़ने वाले बहुत से नाम हैं लेकिन इस बार कांग्रेस कई समीकरण के साथ नए चेहरे के साथ मैदान में आना चाहती है। पिछड़े वर्ग को साधने के लिए ऐसे नाम को ला सकती है जो सामान्य और सरल व पार्टी के विचारों को जीता हो। इंदौर सीट पर पिछड़े वर्गों के वोटरों की संख्या अधिक है। उसमें भी करीब 3 लाख यादव वोट हैं। ऐसे में इस वर्ग से आने वाले योगेश यादव के नाम पर सहमति बनने की तैयारी हो रही है। योगेश यादव इसके पहले भी लोकसभा टिकट के लिए ट्राय कर चुके हैं लेकिन तब अन्य नेता को मौका दे दिया था। एक प्रखर वक्ता , लेखक और विचारक के तौर पर उनकी पहचान है। साल 1967 में महज 9 साल की उम्र में कॉग्रेस के लिए अपना पहला भाषण देने वाले योगेश यादव ने महू से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। तब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बेल जोड़ी हुआ करता था। छात्र राजनीति की, साल 2003 में कांग्रेस सरकार में घाटे के उपक्रम रोडवेज में उपाध्यक्ष रहते हुए नए प्रयोग ने उन्हें प्रदेश में एक नई पहचान दी। सत्ता से लेकर संगठन तक मंजे हुए योगेश यादव चुनाव क्षेत्रों में प्रभारी भी रहे। कई मौके आये जब पार्टी ने उनकी निष्ठा को परखा और विधानसभा टिकट की दौड़ में बीच में ही रोक दिया। यादव ने मलाल नहीं पाला पार्टी उम्मीदवार को जिताने के लिए भीड़ गए इसके परिणाम भी महू में सुखद रहे। राजनीति की लंबी पारी खेलने के बाद अब उन्हें उम्मीद है कि पार्टी उन्हें इंदौर लोकसभा सीट से मौका दे सकती है।
इंदौर में नहीं मिला किसी यादव को लोकसभा टिकट
इंदौर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने करीब करीब हर समाज के नेताओं को टिकट दिया। लेकिन यादव समाज के किसी नेता को इंदौर से लोकसभा टिकट नहीं दिया गया। ऐसे में माना जा रहा है कि योगेश यादव पर पार्टी का ध्यान जा सकता है और उन्हें उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
किसी विशेष गुट की छाप नहीं
योगेश यादव पर किसी विशेष गुट की राजनीतिक छाप नहीं है। यही कारण है कि उन्हें संगठन में काम करने के लिए हर प्रदेश अध्यक्ष ने अपने साथ रखा। यादव फिलहाल कांग्रेस सेवादल के प्रदेश प्रमुख हैं। राजनीतिक समझ रखने वाले योगेश यादव ऐसे समय चुनावी चुनौती लेने को तैयार हैं जब बड़े बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने में असहज हो रहे हैं।