{किश्त76}
छत्तीसगढ़ राज्य हमेशा से ही जनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है। राज्य में कई ऐसे स्थान हैं जो आज भी मुख्यधारा से कहीं दूर हैं।ऐसा ही एक स्थान है सिरपुर।जिसे प्राचीनकाल में श्रीपुर कहा जाता था।पौराणिक भूमि श्रीपुर में कई ऐसे देवस्थानों के अंश मिलते हैं जो कई सदियों पुराने माने जाते हैं। वहाँ स्थित लक्ष्मण मंदिर इतिहास में र्विनाशकारी आपदाओं को झेलने वाला भारत का पहला लाल ईंटों से बना है।साथ ही प्रेम की निशानी छत्तीसगढ़ के इस मंदिर को नारी के मौन प्रेम का साक्षी माना जाता है।सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर का निर्माण सन् 525 से 540 के बीच हुआ।जबकि ताज महल का निर्माण 17 वीं शताब्दी में हुआ था।वैसे सिरपुर (श्रीपुर) में शैव राजाओं का शासन हुआ करता था।इन्हीं शैव राजा में एक थे सोमवंशी राजा हर्षगुप्त। हर्षगुप्त की पत्नी रानी वासटा देवी,वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती थीं,जो मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी थीं।राजा हर्षगुप्त की मृत्यु के बाद ही रानी ने उनकी याद में इस मंदिर का निर्माण कराया था।यही कारण है कि लक्ष्मण मंदिर को एक हिन्दू मंदिर केसाथ नारी के मौन प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है,इसका निर्माण लाल ईंटों से हुआ था। मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में ईंटों पर नक्काशी करके कला कृतियाँ निर्मित की गई हैं, जो अत्यंत सुन्दर हैं क्योंकि पहले पत्थर पर ही ऐसी सुन्दर नक्काशी की जाती थी।गर्भगृह,अंतराल मंडप, संरचना के मुख्य अंग हैं।साथ ही मंदिर का तोरणभी उसकी प्रमुख विशेषता है।मंदिर के तोरण के ऊपर शेषशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की अद्भुत प्रतिमा है।इस प्रतिमा की नाभि से ब्रह्मा जी के उद्भव को दिखाया गया है और साथ ही भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी विराजमान हैं।इसके साथ ही मंदिर में विष्णु के दशावतारों को चित्रित किया गया है।हालाँकि यह मंदिर विष्णु को समर्पित माना जाता है लेकिन गर्भगृह में लक्ष्मण की प्रतिमा विराजमान है।यह प्रतिमा 5 फन वाले शेषनाग पर आसीन है।विनाशकारी आपदाओं को झेलने वाला प्रेम का प्रतीक अक्सर हमें प्रेम के प्रतीक आगरा के ताजमहल के बारे में ही बताया गया लेकिन एक नारी-पुरुष के वास्तविक प्रेम के प्रतीक सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को हमारी जानकारी से हमेशा दूर रखा गया क्योंकि यह एक मंदिर था।एक रानी का अपने राजा के प्रति प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि उन्होंने एक ऐसे मंदिर का निर्माण कराया,जो कई आपदाओं को झेलने के बाद भी आज उसी स्वरूप में है।जैसेआज से1500वर्ष पहले था मिली जानकारी के अनुसार 12वीं शताब्दी में सिरपुर में विनाश कारी भूकंप ने तत्कालीन श्रीपुर का पूरा वैभव छीन लिया था।इस भूकंप में पूरा श्रीपुर नष्ट हो गया था पर लक्ष्मण मंदिर अप्रभावित रहा।उसके बाद 14-15 वीं शताब्दी में महा नदी की भयानक बाढ़ ने सिरपुर में तबाही मचा दी थी।इन दोनों विनाशकारी आपदाओं के चलते सिरपुर के अनेकों मंदिर और धर्म स्थल तबाह हो गए लेकिन एक पत्नी के निश्छल प्रेम का यह प्रतीक बिना किसी नुकसान के सदियों से भक्ति और श्रद्धा की कहानी कहता आ रहा है।