कैदी नंबर 1527,’एक भारतीय आत्मा’ और ‘पुष्प की अभिलाषा’

{किश्त 72}

‘एक भारतीय आत्मा’ के नामसे प्रसिद्ध कवि,पत्रकार पं.माखनलाल चतुर्वेदी की लोकप्रिय कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’का जन्म छग के बिलासपुर केन्द्रीय जेल में हुआ था।बिलासपुर में द्वितीय जिला राजनैतिक परिषद का का अधिवेशन 1921 को हुआ,जिसमें डा. राघवेंद्रराव,लक्ष्मण सिंह चौहान, सुभद्राकुमारी राठौर, पं. माखनलाल चतुर्वेदी आदि ने हिस्सा लिया।शनिचरी मैदान में एक विशाल आमसभा हुई थी,पं.चतुर्वेदी के सम्बोधन के दौरान पेट्रोमेक्स बुझ गया।तब उन्होंने टिप्पणी की कि जैसे यह बत्ती बुझी है वैसे ही अंग्रेजों की बत्ती भी बुझ जाएगी।पेट्रोमेक्स पुन:जलने पर उन्होंने कहा कि जैसे प्रकाश फिर फ़ैल गया है वैसे ही स्वतंत्रता का प्रकाश फ़ैल जाएगा,इसी बात से नाराज होकर अँग्रेजी हुकूमत उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चला दिया। तबके मजिस्ट्रेट पारथी ने 5जुलाई 1921 को 8 माह की कड़ी सजा सुनाई थी।बिलासपुर जेल के अनुसार पंडितजी को धारा 124 ए के तहत सजा सुनाई गई थी।चतुर्वेदी जी 5 जुलाई 1921 से एक मार्च 1922 तक लगभग 8 महीने बिलासपुर के सेन्ट्रल जेल में कारावास में रहे,वहीं उन्होंने ‘पुष्प की अभिलाषा ‘ शीर्षक की अपनी प्रसिद्ध कविता की रचना की।जिसमें एक पुष्प के माध्यम से देशवासियों की स्वतंत्रता की चाहतऔर मातृभूमि की आज़ादी के लिए अपना शीश चढ़ाने की तीव्र उत्कंठा प्रकट कीगयी।

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं,प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं,सम्राटों के शव पर हे हरि,डाला जाऊँ
चाह नहीं,देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ..
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथपर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीरअनेक..

आजादी के बाद 1959 में सागर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की तो 1963में उनके साहित्य में योगदान के लिये पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया।बिलासपुर जेल में कैदी नंबर-1527 से उनकी पहचान थी,नाम माखनलाल चतुर्वेदी,पिता नंद लाल,उम्र-32 वर्ष, निवास जबलपुर दर्ज है।उनका क्रिमिनल केस नंबर 39 था।बिलासपुर सेंट्रल जेल में माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं और उनके जेल में बितायी स्मृतियों कोआज भी जेल प्रशासन ने संभाल कर रखा है।बिलासपुर सेंट्रल जेल भी उन्हीं की वजह से इतिहास के पन्नों में अमर हो गया।जेल प्रशासन ने हमेशा उनकी स्मृति को सहेज कर रखने के लिए बैरक नंबर 9 को हिफाजत से रखा,उनकी स्मृति में जेल के भीतर शिलालेख भी लगाया।हालांकि बाद में बैरक नंबर 9 को जेल में हो रहे अधो संरचना विकास की वजह से हटाना पड़ा लेकिन इस बीच जेल प्रशासन और तत्कालीन जेल अधीक्षक ने उसे उनकी स्मृति को बचाए रखने के लिए विशालशिला लेख स्थापित किया।साथ ही जेल के प्रवेश द्वार पर एक पृथक से शिलालेख लगाया गया,जिसमें सबसे पहला नाम अमर कवि साहित्यकार,स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी काअंकित किया गया।
4अप्रेल 1889 में मप्र के होशंगाबाद के बाबई में जन्मे पंडितजी का निधन 78 साल की आयु में 30 जनवरी 1968 को हो गया था।

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