{किश्त67}
कुटुमसर की गुफा भारत की पहली और विश्व की सातवीं भू-गर्भित गुफा है। जिसकी तुलना अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध सबसे लंबी गुफा ‘काल्स बार ऑफ केव’ से की जाती है।छत्तीस गढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर की भूमिगत गुफा कुटुमसर की मछलियांअंधी नहीं होती हैं।अंधेरे में जन्म लेने तथा पलने के कारण देखने में अभ्यस्त नहीं होने के कारण इन्हें अभी तक अंधा कह दिया जाता था। राजनांदगांव के अम्बागढ़ चौकी में भी इसी तरह की मछलियांपहाडिय़ों में मिली है।यह बात वैज्ञानिक शोध से सामने आई है।ज्ञात रहे कि बस्तर की इस गुफा की तुलना विश्व की सबसे लंबी भूगर्भित गुफा ‘कालर्सवार आव सेव’ से की जाती है।दण्डकारण्य के घने जंगलों में लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण में कोटमसर गांव के 3 किमी पूर्व और गुणनसार पहाड़ी पर बनी नैसर्गिक गुफा की खोज प्रो. शंकर तिवारी ने सन् 58-60 में की थी।चूने के पत्थरों के क्षेत्र का अध्ययन करने के दौरान 1933 के एक नक्शे के आधार पर यह गुफा की खोज की गई थी।इस गुफा के निर्माण काल में प्रकृति को कितना समय लगाहोगा यह कह पाना तो कठिन है पर इस गुफा की छत और दीवारों पर लटकते चूने के स्तंभों की अद्भुत छटा से पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।भान यही होता है मानों किसी अनाड़ी चित्रकार ने तूलिका से रजत अथवा स्वर्ण रंगों से युक्त हस्त छितरा दिये हों।बहरहाल इस अंधेरी गुफा में जहां सूर्य की किरण नहीं पहुंच पाती है वहां पाई जाने वाली मछलियों के अंधी ही पैदा होने की चर्चा रही पर हाल ही के वैज्ञानिक शोध ने इसे झुठला दिया है। पं. रविशंकर विश्वविद्यालय के जैविक अध्ययन शाला के वैज्ञानिक डॉ. ए.के. पति के नेतृत्व में किये गये शोध से यह बात सामने आई है कि कुटुमसरगुफा में मछलियां अंधी पैदा नहीं होती हैं। वास्तविकता यह है कि अंधेरे में जन्म लेने और पलने के कारण यहां की निमाकाईलस प्रजाति की मछलियों की आंखों का डायामीटर छोटा होता है। ऐसी ही मछलियां केरल के कोट्टायम,मेघालय की सोजू गुफाओं में भी देखी जाती है,यही नही राजनांदगांव के अम्बागढ़ चौकी की पहाड़ी गुफाओं में भी मछलियां मिलती है,वे बहकर बाहर आई थीं।मछलियों के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि सवटैनियम वर्ग की इन मछलियों केअलावा अन्य जीव प्राकृतिक स्त्रोतों को बनाये रखने में मददगार होते हैं।करीब 300करोड़ साल प्राचीन कुटुमसर गुफा की खोज भूगोलविद प्रो. शंकर तिवारी ने की थी और मछली बड़े एंटीना वाले झिंगूर कैपी ओला शंकराई से दुनिया को अवगत कराया था।करोड़ों साल से अंधेरे में पैदा होकर वहीं अंधेरे में अपना जीवन गुजारने वाली मछलियों को अंधी बताकर पर्यटकों को लुभाया जाता था पर हाल ही के वैज्ञानिक शोध से अंधेरी गुफा तथा वहां की मछलियों के लिए भी एक उम्मीद की किरण जागी है। पर्यटन के क्षेत्र में विशेष रूचि रखने वाले प्रदेश के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से भी उम्मीद की जाती है कि वे नये शोध को आगे बढ़ाने में सहायक होकर कुटुम सर गुफा की मछलियों को वर्षों से अंधा कहे जाने के रहस्य से पर्दा उठाने में मददगार साबित होंगे।