बिलासपुर,गुरुदेव, छलऔर ‘फांकी’ का जन्म….

{किश्त64}

भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के रचयिता,प्रसिद्ध कवि,साहित्यकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के प्रेम और विरह में पिरोयी हुई कुछ यादों का रिश्ता छग की न्यायधानी बिलासपुर से भी रहा है…!यहां गुरुदेव ने अपनी पत्नी के वियोग में मार्मिक कविता ‘फांकी’ की रचना की थी….. बात वर्ष 1918 की है जब टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे।गुरुदेव को वर्तमान में बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रारोड जाना था,वो रेल से पहुंचे थे और चन्द घंटों के बाद गाड़ी बदलकर पेंड्रा रोड गये थे।तकरीबन 5 से 6 घंटे तक बिलासपुर रेल्वे स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे।टैगोरअपनी पत्नी को टीबी का इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम ले जा रहे थे।उन दिनों पेंड्रारोड़ सेनिटोरियम टीबी के इलाज,विशेष आबोहवा के लिए देश भर में मशहूर था।

फांकी’ लिखने की कहानी….?

बिलासपुर रेल्वे स्टेशन के प्रतीक्षाघर में बैठे टैगोरजी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली एक महिला पर पड़ी।बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया,पूछा तुम्हारा नाम क्या है….और तुम यह काम क्यों कर रही हो….?महिला ने अपना नाम रुक्मणी बताया और कहा कि उसकी बेटी शादी योग्य हो चुकी है,इसलिए मजदूरी कर पैसा जोड़ रही है।यह पूछने पर कि कितने में काम चल जाएगा… रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी तब रविन्द्र नाथ की पत्नी ने उसे 20 रुपये देने काआग्रह गुरुदेव से किया,गुरुदेव ने कहा कि ठीक है,मैं इसे पैसे दे दूंगा,लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए इसे मेरे साथ स्टेशन से बाहर चलना होगा।रुक्मणी को लेकर गुरुदेव बाहर गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो,मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या….? इतना सुनते ही रुक्मणी वहां से चली गई।जब गुरुदेव बाद में प्रतीक्षालय पहुंचे तो अपनी पत्नी से रुक्मणी को पैसा दे देने की बात की…इसके बाद पति-पत्नी रेल से पेंड्रा रोड स्थित सेने टोरियम पहुंचे,जहां तक रीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला लेकिन वो बच नहीं पाईं।इस तरह गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गएऔर उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने पत्नी की आखिरी इच्छा (रुक्मणी को 20 रूपये देने की) पूरी नहीं की।बाद में अकेले गुरुदेव जब दोबारा फिर से बिलासपुर लौटे तो वो रेल्वे स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे,लेकिन रुक्मणी उन्हें कहीं नहीं मिली….. पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने के दुख में गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए।यहीं से एक महान कवि के हृदय में “फांकी” कविता जन्म लेती है,जिसे गुरुदेव ने रेल्वे स्टेशन बिलासपुर पर ही लौटते वक्त लिखा था।फांकी एक बंग्ला शब्द है,जिसका अर्थ ‘छलना’ होता है।गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी को झूठ बोलकर एक छल किया हैऔर इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता फांकी ने जन्म लिया।बहरहाल बिलासपुर रेलवे स्टेशन में दर्ज ‘फांकी’अभी भी पढ़ी जा सकती है।

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