{किश्त 61}
छग के बिलासपुर के एक छोटे से गांव बालपुर में जन्मे मुकुटधर पांडे का महानदी का प्राकृतिक चित्रण तथा छायावाद के जनक के रूप में नाम अमिट हो गया है।
महानदी पर उनका कवितामय चित्रण….
कितना सुंदर और मनोहर
महानदी ये तेरा रूप…
कल-कल मय निर्मल जलधारा….
लहरों की है छटा अनूप….
तुझे देखकर शैशव की है स्मृतियां उसमें उठती जाग……
लेता है किशोरकाल का अंगड़ाई अल्हड़ अनुराग…
अब छायावाद के जनक होने की बात करें…
1904 में मात्र 14 साल की उम्र में उनकी कविता आगरा से प्रकाशित एक पत्रिका में छपी थी।एक बार आधी रात को मुकुट धर पांडे की किसी पक्षी के करूण,विलाप से नींद खुल गई,करूणा से हृदय तार- तार हो गये… उन्होंने करूण विलाप कर रही
“कुररी ” पर कविता लिख डाली तब उन्हें ही नहीं पता था कि उन्होंने छायावाद की कविता की नींव डाल दी है। उनकी इसी कविता के बाद छायावाद का नाम प्रचलन में आया…
अंतरिक्ष में करता है तू क्योंअनवरत विलाप.. ।
ऐसी दारूण व्यथा,तुझे क्या है किसका परिताप..
किस गुप्त दुस्कृति की स्मृति क्या उठी हृदय में आग…
जला रही तुझकोअथवा
प्रिय वियोग की आग…
शून्य गगन में कौन सुनेगा
तेरा विपुल विलाप….
बता कौन सी व्यथा तुझे है किसका परिताप…..
पं. मुकुटधर पांडे उन यशस्वी साहित्यकारों में है जो अपनी कम रचनाओं के बावजूद साहित्य में अमर हो गये।पं० मुकुटधर पाण्डे अपने आठ भाईयों मेंसबसे छोटे थे इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इनके पिता पं.चिंतामणी पाण्डेय संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे और भाईयों में पं० लोचन प्रसाद पाण्डेय जैसे हिन्दी के ख्यात साहित्यकार थे।बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर बालक पं०मुकुटधर पाण्डे के मन में गहराप्रभाव पडा किन्तु वे अपनी सृजन शीलता से विमुख नहीं हुये। सन् 1909 में 14 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कविता आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘स्वदेश बांधव में प्रकाशित हुई एवं सन् 1919 में उनका पहला कविता संग्रह ‘पूजा केफूल’ प्रकाशित हुआअबाध गति से देश के सभी प्रमुख पत्रिकाओं में लगातार लिखते हुये पं० मुकुटधर पाण्डे ने हिन्दी पद्य के साथ-साथ हिन्दी गद्य के विकास में भी अपना अहम योग दिया,पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अनेक लेखों व कविताओं के साथ ही उनकी प्रकाशितअन्य कृतियाँ पूजा के फूल 1916,शैलबाला1916, लच्छमा1917,परिश्रम1917,हृदयदान1918,मामा1918,छायावादऔरअन्य निबंध 1983,स्मृतिपुंज1983,विश्वबोध1984,छायावादऔर श्रेष्ठ निबंध1984, मेघदूत(छत्तीसगढ़ी अनु वाद)1984आदि प्रमुख हैँ। हिन्दी के विकास में योग दान के लिये इन्हें विभिन्न अलंकरण एवं सम्मान प्रदान किये गये। भारत सरकार ने भी इन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान की तो रवि शंकर विश्वविद्यालय द्वारा भी इन्हें मानद् डी०लिट की उपाधि प्रदान की गई।