‘{ किश्त 31}
हीरासिंह देव कांगे,जिन्हें कंगलामांझी के नाम से जाना जाता है, इनका जन्म 1895 के आसपास भानु प्रतापपुर से कांकेर रोड पर धनेली कन्हार से 3 किमी दूर स्थित तेलावत गांव में हुआ था।उनके पिता रैनू कांगे का उनके जन्म से पहले ही निधन हो गया था। उनकी मां चैतीबाई ने उन्हें अकेले पाला था। कंगला मांझी शिक्षा के सीमित अवसरों के साथ बड़े हुए और अनपढ़ थे। उन्होंने कम उम्र में ही बिरझा बाई से शादी कर ली,अपने माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना ही उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।इन कठिनाइयों के बावजूद, कंगला मांझी को कम उम्र से ही अमूल्य अनुभव प्राप्त हुए जिन्होंने उनके चरित्र को आकार दिया।कंगला मांझी देश समाज और किसानों के संघर्षों से बहुत प्रभावित थे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी।उन्होंने कंगला मांझी नाम अपनाया और 1910 से 1912 तक दो साल एकान्त चिंतन और ईश्वर की प्रार्थना में बिताये आत्मनिरीक्षण के इस दौर से उनके जीवन में महत्व पूर्ण परिवर्तन आया और उन्होंने अपना जीवन देश और समाज की सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया।कंगलामांझी 1913 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और 1914 में उन्होंने बस्तर में एक आदिवासी विद्रोह का नेतृत्व भी किया जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों की हार हुई और बाद में उन्हें कारावास में डाल दिया गया। 1919 में अंग्रेजों ने बस्तर,कांकेर और धमतरी को मिलाकर गोडवाना राज्य के गठन का प्रस्ताव रखा,लेकिन कंगला मांझी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। वे राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में रहे और आंदोलन का नेतृत्व करते रहे। उनके मार्ग दर्शन में स्वतंत्रता आंदोलन की आग पूरे बस्तर में जंगल की आग की तरह फैल गई।1942 में कंगला मांझी ने सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर अपनी शांति सेना का गठन किया, जिसने इस आंदोलन को एक जनाँदोलन में बदल दिया।अभी भी बालोद जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के बघमार के जंगलों में विशेष दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता है …. वहां उपस्थित अधिकतर आदिवासी होते हैं और कंगला मांझी की सेना के सिपाही कहलाने में गर्व महसूस करते हैं।इनमें युवा, बुजुर्ग,बच्चे सभी शामिल होते हैं।ये सभी लोग अपने नेता कंगला मांझी की याद में आयोजित हो रहे कार्य क्रम में शिरकत करने आते हैं …..कौन थे कंगला मांझी….?कंगला मांझी एक क्रांतिकारी नेता थे,जिन्होंने आदिवासियों को सशक्त और एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई।साल 1913 में वह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े और 1914 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। कांकेर जिले के तेलावट में जन्मे कंगला मांझी राष्ट्रवादी नेता थे।अंग्रेजों के शासन काल में अन्याय से तंग आकर उन्होंने आजाद हिंद फौज की तर्ज पर अपनी सेना का गठन किया था, जिसके सैनिक आजाद हिंद फौज की तरह ही वर्दी पहनते हैं और वर्दी पर स्टार भी लगाते हैं।हालांकि कंगला मांझी की सेना के सैनिकों का रास्ता अहिंसा और शांति वाला है। पर यह सेना विवाद में भी रही…?आजादी के बाद बस्तर में कुछ सैनिकों के खिलाफ जुर्म भी दर्ज किया गया था….इन पर समानात्तर सरकार चलाने का आरोप भी लगा था।वैसे अभी भी दावा किया जा रहा है कि देशभर में कंगला मांझी की सेना के करीब 2 लाख सैनिक हैं,जो आदिवासियों की रक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करते है… पर बस्तर सहित अन्य आदिवासी इलाकों में नक्सली आतंक पर इस सेना ने कोई आंदोलन किया हो ऐसा हाल फिलहाल तो देखने नहीं मिला है….कंगला मांझी स्मृति दिवस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे लोग टेंट,पेड़ों के नीचे कड़ कड़ाती ठंड में रात गुजारते हैं। 5 दिसंबर को कंगला मांझी स्मृति कार्यक्रम में एक बार छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्यपाल अनुसूईया उइके ने भी शिरकत की थी।इस दौरान राज्यपाल ने कंगला मांझी की जमकर तारीफ कीऔर आदिवासियों के उत्थान में उनकी भूमिका की खूब सराहना की। वैसे यह तो तय है कि कंगला मांझी के निधन के बाद यह संगठन बिखर गया था ….वैसे कंगलामांझी ने पूर्व पीएम इंदिरा,राजीव गाँधी से भी मुलाक़ात की थी।साल 1984 में कंगला मांझी का निधन हो गया,जिसके बाद उनका ये संगठन कमजोर होता गया।लेकिन 1992 के आसपास महाराष्ट्र में टाडा कानून लागू हुआ था, जिसके चलते रात में नक्सली और दिन में पुलिसकर्मी आदिवासी इलाकों में आते थे।धारा 144 लागू होने के चलते कई ग्रामीणों को पुलिस उठाकर भी ले गई। ऐसे में उत्पीड़न से परेशान होकर कुछ आदिवासियों ने जहर पीकर जान दे दी। ऐसे हालात में कंगला मांझी का संगठन फिर से सक्रिय हुआ और उन्होंने एक बड़ा आयोजन किया था।जिसके बाद कंगला मांझी की सेना के सैनिक टाडा कानून के तहत पकड़े गए हजारों आदिवासी लोगों को कानूनी लड़ाई के द्वारा छुड़ाकर ले आए। इस तरह कंगला मांझी की सेना फिर सक्रिय हो गई थी।वैसे बस्तर जहां कभी कंगला माझी की समानात्तर सरकार चला करती थी वहां अब यह अस्तित्व ख़ो चुकी है…..