समाजवादी नेता कौशिक जिन्होंने वीसी,चंदूलाल और सेठ नेमीचंद को हराया था

{किश्त 17}

छत्तीसगढ़ की राजनीति में समाजवादी घटक के पुरुषोत्तम कौशिक का भी प्रमुख स्थान रहा है।देश के एक बड़े नेता विद्याचरण शुक्ल को पहली बार हराने का श्रेय भी कौशिक के खाते में है। कौशिक चिंतक भी थे तथा छत्तीसगढ़ के किसानों के विषय में हमेशा चिंतित रहते थे।आपातकाल के बाद रायपुर लोकसभा के चुनाव में उस समय के ताकतवर राजनेता विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने के कारण ही उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई के मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया था।इनके साथ ही बृजलाल वर्मा भी केन्द्रीय मंत्री बने थे।रायपुर से 2 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का यह पहला और अंतिम अवसर था।(अटलजी के मंत्रिमंडल में शामिल दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैस तथा डॉ रमनसिंह तीनों राज्यमंत्री थे )छत्तीसगढ़ के महासमुंद में 24 सितंबर 1920 को जन्में पुरुषोत्तम कौशिक सालेम स्कूल रायपुर में स्कूली शिक्षा लेकर सागर विश्वविद्यालय एवं नागपुर से बी.ए. एलएलबी की उपाधि ली थी।किसान परिवार में जन्में पुरुषोत्तम कौशिक का खेती-किसानी तथा किसानों से बहुत अधिक लगाव था।1967 में महासमुंद विधानसभा से कांग्रेस के राईसकिंग नेमीचंद श्रीश्रीमाल से पराजित होने वाले कौशिक ने 1972 के विस चुनाव में सेठ नेमीचंद श्रीश्रीमाल को पराजित भी किया था।जबकि उस समय कांग्रेस की देश-प्रदेश में सरकार थी।1977 मेंआपातकाल के बाद रायपुर लोकसभा से बतौर भालोद पार्टी से पुरुषोत्तम कौशिक ने तब के तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को 83612 मतों से पराजित किया।जबकि उस समय विद्याचरण शुक्ल के अग्रज पं.श्यामाचरण शुक्ल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अपने जीवन का पहला चुनाव विद्याचरण शुक्ल इन्हीं से हारे थे। तब विद्याचरण शुक्ल को पराजित करने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया था। मार्च 1977 से जुलाई 79 तक वे केन्द्रीय पर्यटन एवं नागरिक विमानन मंत्री भी रहे।बाद में जब चरणसिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंत्रिमंडल में जुलाई 79 से जनवरी 80 तक केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया था। जनता पार्टी के विघटन के बाद पुरुषोत्तम कौशिक उस समय के राजनीतिक हालात को देखकर खेती-किसानी से जुड़ गये और सक्रिय राजनीति से एक तरह से किनारा कर लिया था।बाद में लगातार दबाव के चलते छठवीं लोकसभा के बाद वे नवमी लोकसभा के लिए दुर्ग से चुनाव समर में उतरे। उन्होंने दुर्ग के कांग्रेसी प्रत्याशी तथा पत्रकार चंदूलाल चंद्राकर को एक लाख 11 हजार 33 मतों से पराजित कर रिकार्ड भी बनाया।उन्हें दुर्ग लोकसभा में 3 लाख 35 हजार 131 कुल मत मिले जो 1957 से उस चुनाव तक किसी प्रत्याशी को सर्वाधिक मत हासिल करने का रिकार्ड रहा। एक बात यह रही कि हवाई उड़ान से रायपुर को जोडऩे कौशिक ने काफी मेहनत की। राजनीति में आने के बाद नेता अपने लोकसभा क्षेत्र से अपनी उम्मीदवारी छोड़ता नहीं है। पर पुरुषोत्तम कौशिक इसके अपवाद रहे। महासमुंद से 1972 में विधानसभा में विजयी होने के बाद 1977 में रायपुर लोकसभा से विजयी रहे पर बाद के लोस चुनाव में वे प्रत्याशी ही नहीं बने उसी तरह 1989 में दुर्ग लोकसभा से जीतने के बाद वे अगले चुनाव के प्रत्याशी नहीं बने। बहरहाल उनके निधन को समाजवादी आंदोलन के एक नेता की मौत के रूप में देखा गया था। आपातकाल में भी उन्होंने कुछ माह जेल में भी गुजारा था।

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