{किश्त16}
सालों तक केंद्र में मंत्री तथा राजनीति के केंद्र बिंदु रहे,महासमुंद-रायपुर से 8बार सांसद रहे विद्याचरण शुक्ल व्यक्तिगत तौर पर जितने मुलायम और सौहार्द्र से भरे थे,एक नेता के बतौर उतने ही दबंगऔर कठोर भी थे।मृदुभाषी और सबके साथ निभा ले जाने वाले उनके बड़े भाई मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल के ठीक उलट उनका स्वभाव था और नेता दबंग हो तो उसके कार्यकर्ता स्वच्छन्द हो जाते हैं।1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी प्रत्याशी का प्रचार करने उनके समर्थकों के दबदबे वाले मोहल्ले में उनके उद्दंड कार्यकर्ताओं ने सीपीआई के बुजुर्ग पूर्व विधायक सुधीर मुखर्जी और जनता पार्टी प्रत्याशी पुरुषोत्तम लाल कौशिक से न केवल मारपीट की बल्कि उनके कपड़े तक फाड़ दिये थे।ये मामला चर्चा में रहा तो कांग्रेस में अंदरुनी झगड़ों का सतह पर आना नई बात नहीं है।उसका राजनीतिक इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें प्रतिद्वंद्वी गुटों के नेताओं ने एक-दूसरे पर तेज हमले किये।आरोप प्रत्यारोप से लहुलूहान किया। याद आता वर्ष 1982 में अविभाजित मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस में शुक्ल बंधुओं का बोलबाला था,पार्टी के तत्कालीन महासचिव अजीज कुरैशी की शामत आ गई थी।। मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. रविशंकर शुक्ल के संबंध में उन्होंने भोपाल में कथित अप्रिय टिप्पणी की थी। नतीजन जब एक दिन वे पार्टी के कामकाज के सिलसिले में रायपुर के लिए निकले तो रायपुर रेलवे स्टेशन पर ही विद्याचरण शुक्ल के समर्थकों ने उन्हें जूतों की माला पहनाई,झूमा-झटकी की और वापस लौटने विवश कर दिया। एक और मामले की भी चर्चा जरुरी है।छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद अजीत जोगी कोसीएम बनाने की घोषणा के बाद ज़ब मप्र के तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिँह,विद्याचरण शुक्ल के फार्म हॉउस पहुंचे तो उनसे कुछ शुक्ल समर्थकों द्वारा दुर्व्यवहार की भी लम्बे समय तक चर्चा होती रही।केन्द्र की राजनीति में इंदिरा गांधी के इनर सर्कल में रहे विद्या भईया की राजीव गांधी से कभी नहीं बनी. 1989 में वी.पी. सिंह के जनता दल के एक अहम रचनाकार शुक्ल भी थे लेकिन उसकी टिकट पर जीतने के बावजूद वीपी सिंह ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया,जब कांग्रेस में लौटे तो पीवी नरसिंह राव ने उनकी सुध ली लेकिन उसके बाद राज्य और केंद्र की राजनीति में वे धीरे-धीरे हाशिए पर ढकेले जाते रहे।छग राज्य बनने पर उसके पहले सीएम पद पर सबसे मजबूत दावा विद्या भईया का ही था लेकिन कांग्रेस आलाकमान की सरपरस्ती से छत्तीसगढ़ पर थोपे गये अजीत जोगी ने किनारे कर दिया।छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पहला विभाजन वर्ष अप्रैल 2003 में हुआ था जब श्री विद्याचरण शुक्ल ने पार्टी से बगावत करके शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल होने का ऐलान किया था।इसे विभाजन ही कहा जाएगा क्योंकि उनके साथ बड़ी संख्या में कांग्रेसजनों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। प्रदेश कांग्रेस में यह बड़ी टूट-फूट थी।जिसका नतीजा उसे राज्य विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। नवंबर-दिसंबर 2003 में हुए चुनाव में विद्याचरण शुक्ल के नेतृत्व में एनसीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। उसे लगभग 7 प्रतिशत वोट मिले। वैसे पार्टी का एक ही प्रत्याशी नोबल वर्मा ही जीत सका किन्तु उसने कांग्रेस को ऐसा नुकसान पहुंचाया की लगातार 3 बार भाजपा की सरकार बनती रही।2004 का लोकसभा चुनाव महासमुंद से बतौर भाजपा की टिकट पर विद्याचरण को लड़ना पड़ा जिससे वे जीवन भर लड़ते रहे और अजीत जोगी से पराजय का सामना करना पड़ा।विद्या भईया अपने संध्याकाल में अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में थे और तमाम अपमान के बावजूद एक निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में पार्टी का काम कर रहे थे।वैसे छ्ग के विकास के लिये उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।