आसँदी की और जूता उछालने और माईक तोड़ने के कारण छ्ग के 2विधायकों की सदस्यता गई थी…

      (किश्त-3)

छ्ग के कसडोल से उप चुनाव जीतकर डी पी मिश्र ने सीएम बने रहने की औपचारिकता पूरी की और उन्ही के कार्यकाल में जनसंघ के 2 विधायकों द्वारा मप्र विधानसभा में जूता उछालने का प्रकरण भी चर्चा में रहा… हालांकि दोनों विधायकों की सदस्यता चली गई और सुप्रीम कोर्ट से भी इन्हें राहत नहीं मिली।
3मार्च 1966को मप्र का विधानसभा सत्र चल रहा था, उस समय छतीसगढ़ में बड़ा सूखा पड़ा था। विस में दोपहर को सदन की अध्यक्षता विस उपाध्यक्ष नर्मदा प्रसाद श्रीवास्तव कर रहे थे। चर्चा के दौरान ही धमतरी से चुने गये जनसंघ के विधायक पंढरीराव कृदत्त ने आसंदी की तरफ जूता उतारकर फेंका और कुरुद से चुने गये जनसंघ के विधायक यशवंतराव मेघावाले ने आसंदी के पास रखा माईक भी तोड़ दिया। आजादी के बाद सदन में जूता चप्पल फेंकने की यह पहली घटना थी। तब के सीएम डी पी मिश्र सदन की गरिमा के विरुद्ध आचरण के लिये नये विस चुनाव तक दोनों विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव रखा जो बहुमत से पारित हो गया। दोनों विधायक इस निर्णय के विरोध में हाईकोर्ट भी गये पर उनकी याचिका यह कहकर अस्वीकार कर दी गई कि विधानसभा में इस तरह का आचरण सार्वजनिक जीवन की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है। दोनों विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की पर वहाँ भी विधानसभा और हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा। विस की सदस्यता निरस्त किये जाने का संभवत:यह पहला मामला था और छ्ग के 2 विधायक इसका कारण बने थे। अगले विस चुनाव में कृदत्त और मेघावाले पराजित भी हो गये।

अविभाजित मप्र का पहला विधानसभा भवन

(राज्‍य के पुनर्गठन के कुछ पहले सितम्‍बर, 1956 में ही नयी एकीकृत विधानसभा के भवन के लिए भोपाल की एक खूबसूरत इमारत मिंटो हॉल का चुनाव कर लिया गया था। अंग्रेजी राज, नवाबी हुकूमत के दौर और बाद में लोकतंत्रीय शासन के साक्षी मिंटो हॉल की कहानी 12 नवम्‍बर, 1909 से शुरू होती है। तत्‍कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो इस दिन अपनी पत्‍नी के साथ भोपाल आए।भोपाल की शासक नवाब सुल्‍तान जहां बेगम को यह कमी महसूस हुई कि लॉर्ड मिंटो को ठहराने के लिए भोपाल में कोई अच्‍छा भवन नहीं था। उन्‍होंने तुरत-फुरत एक नायाब इमारत बनवाने का फैसला किया। इसी दिन उन्‍होंने लार्ड मिंटों के हाथों इस भवन का शिलान्‍यास करवाया था। अंग्रेज इंजीनियर ए.सी. रबेन की देखरेख में इस भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। इस भवन की लागत आई 3 लाख रूपये, लेकिन इसको बनने में बहुत लंबा वक्‍त लगा करीब 24 साल। इस नई इमारत का नाम मिंटो हॉल रखा गया। अतिथि गृह के रूप में मिंटो हॉल का इस्‍तेमाल बहुत कम ही हो पाया। इस भव्‍य भवन का उपयोग भोपाल राज्‍य की सेना के मुख्‍यालय, आर्थिक सलाहकार के दफ्तर, पुलिस मुख्‍यालय और होटल के रूप में हुआ। इस इमारत के भव्‍य हॉल में स्‍केटिंग रिंग के रूप में नवाबी घरानों के लड़के-लड़कियॉं स्‍केटिंग सीखते रहे। सन् 1946 में इसमें इंटर कॉलेज की स्‍थापना हुई जो कि बाद में हमीदिया कॉलेज के रूप में जाना गया। 1 नवम्‍बर,1956 से यह भवन विधानसभा भवन के रूप में परिवर्तित हुआ। तब से लेकर अगस्‍त,1996 तक यह भवन मध्‍यप्रदेश की चालीस वर्ष की संसदीय यात्रा का हमकदम और मप्र के लोकतांत्रिक इतिहास का साक्षी बना रहा।

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