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पहले वर्तमान तथा पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच काफी मधुर संबंध हुआ करते थे।राजनीतिक विरोध तो ठीक था पर व्यक्तिगत संबंध भी अच्छे होते थे,वही उनको महत्व भी मिलता था। सत्ताधारी तथा प्रतिपक्षी दल के नेताओं के बीच भी अच्छी समझ होती थी। ज़ब सीपी एण्ड बरार (म.प्र.,महाराष्ट्र,छग आदि हिस्सा थे)के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल थे तो नेता प्रतिपक्ष ठाकुर प्यारेलाल सिंह थे और दुर्ग से ही विधानसभा अध्यक्ष घनश्याम दास गुप्ता (तीनों छग के ही)थे। एक ही ट्रेन, एक ही रेल बोगी में दोनों पंडितजीऔर ठाकुर साहब साथ-साथ नागपुर (तब की राजधानी) जाते थे, विधानसभा में एक दूसरे का नीतिगत मामलों में विरोध करते थे फिर एक ही रेल बोगी में वापस छग लौटते भी थे।अविभाजित म.प्र. के मुख्य सचिव तथा बस्तर में डीसी (कलेक्टर के समतुल्य)रह चुके आर.सी.बी नरोन्हा का एक संस्मरण का उल्लेख जरूरी है वह नेताओं- नौकरशाहों के बीच के उस समय के रिश्तों का चित्रण करने काफी है। नरोन्हा सीपी एण्ड बरार में 1938 बैच के आईसीएस थे। वे लंबे समय तक बस्तर में उपायुक्त (डीसी/कलेक्टर) भी रहे। बाद में 1967-68 तथा उसके बाद 1973-74 में अविभाजित म.प्र. के मुख्य सचिव भी रहे। वहीं 1960 में पंजाब के राज्यपाल के सलाहकार भी रहे। उन्होंने म.प्र. में सीएम कैलाशनाथ काटजू,डीपी मिश्र तथा गोविंद नारायण सिंह का कार्यकाल भी देखा। उन्होंने एक संस्मरण में तब के मुख्यमंत्रियों के विषय में अनुभव भी साझा किया हैे, जो आजकल के राजनेताओं के लिए प्रेरणास्पद हो सकता है….। उन्होंने लिखा है कि जब म.प्र. के मुख्यमंत्री बदले तो मैंने (नरोन्हा)नये मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कहा… साहब यह मेरी पुरानी कलम पहले जैसे चलेगी या नहीं…? नये मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कलम पहले जैसे ही चलेगी।इससे संकेत मिल गया कि मुख्य सचिव नहीं बदल रहे हैं..?उस समय प्रोटोकाल के तहत सरकारी वाहन उपलब्ध कराना राजधानी में मुख्य सचिव के जिम्मे होता था। नरोन्हा ने संस्मरण में उल्लेख किया है कि जब वे निवृत्तमान सीएम के आवास पर गये थे तो वहां उन्हें अकेले पाया..। उनके आवास पर कोई चौपहिया वाहन (कार-जीप) भी नहीं थी उस समय वैसे भी निजी कार-जीप की कमी ही रहती थी। कल तक चकाचौंध तथा भीड़-भाड़ से घिरे रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री की हालत उनसे देखी नहीं गई और उन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था तक एक चौपहिया वाहन उपलब्ध कराने का आश्वासन भी पूर्व मुख्यमंत्री को दे दिया।जब यह जानकारी नरोन्हा ने नये मुख्यमंत्री को दी तो उन्होंने इस कदम का स्वागत ही नहीं किया बल्कि यह भी आदेश दिया-निवृत्तमान सीएम सुबह-सुबह रोज मंदिर जाते हैं उन्हें मंदिर जाने के पहले वाहन उपलब्ध हो यह व्यवस्था आप स्वयं देख लें। ये थे उस समय के राजनेताओं के बीच के आपसी रिश्ते..
नरोन्हा साहब ने अपने प्रशासनिक अनुभवों को लेकर एक दिलचस्प किताब लिखी थी ‘ए टेल टोल्ड बाय एन ईडियट’। उन्होंने उसमें एक वाकये का जिक्र किया है। तब के मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह तथा मुख्य सचिव नरोन्हा एक खुली जीप में सतपुड़ा के जंगल की सैर कर रहे थे। दोनों एक दूसरे को बाघों के शिकार के किस्से सुना रहे थे। तभी नरोन्हा साहब ने कहा कि सीएम साहब अभी कोई शेर सामने आएगा तो आप क्या करेंगे? गोविंद नारायण सिंह ने कहा कि उसके पुट्ठे पर दो लात जमा देंगे…., इत्तफाक से कुछ देर बाद एक बाघ सड़क पर बैठा मिला… सिंह साहब ने जीप रुकवाई,उस शेर के पुट्ठे पर एक धौल जमाई और वापस जीप में आकर बैठ गये… उस घटना से सन्न नरोन्हा ने बाद में सीएम साहब से पूछा कि शेर से डर नहीं लगा….? डॉ. गोविंद नारायण सिंह ने कहा कि शेर का डर मेरे डर से बड़ा था… हमला मैंने किया था…अपने बचाव के बाद जब तक शेर हमले की सोचता तब तक मैं अपनी जीप में सुरक्षित पहुंच गया था… खैर यह संस्मरण उस समय के प्रशासनिक अफसर और मुख्यमंत्री के बीच के रिश्तों का गवाह तो है ही….।