रायपुर। बीजेपी ने अपने 21 टिकट घोषित कर दिए हैं। भाजपा की पहली ही सूची बहुत शानदार आई है।लेकिन बावजूद इसके कुछ नए नवेले नेता भी खुद को टिकट का दावेदार बता रहे हैं। इनमें एक की चर्चा तो जोरों पर है, जो पिछले कुछ साल से मीडिया विभाग में सक्रिय हैं। हर नेता के बगल में दिखने वाले इन नेता के बारे में चर्चा है कि ये अपना टिकट तय मानकर चल रहे हैं।
मामला उत्तर विधानसभा का है, जो राजनीतिक गलियारों की सबसे हॉट सीट बनी हुई है। यूं तो यहां से कई नए- पुराने नेता टिकट की आस लगाए हुए हैं। लेकिन बीजेपी के ये नेता उससे भी आगे हैं, दबी जुबान में उनके लिए कहा जा रहा है कि वो अपना टिकट ऊपर (दिल्ली) से तय बता चुके हैं। आपको बता दें कि ये नेता मीडिया विभाग का हिस्सा हैं और उनकी ये दावेदारी किस आधार पर है और वो इतने मुतमइन कैसे हैं, ये तो वे ही जानें। उत्तर विधानसभा से आधा दर्जन से ज्यादा नेता टिकट की लाइन में हैं। इधर एक तरफ तो प्रदेश के बड़े – बड़े नेता अपने टिकट को लेकर संशय में हैं ऐसे में इन नेता जी तो चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इधर चर्चा है कि 23 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि केंद्रीय संगठन द्वारा प्रदेश चुनाव समिति का गठन भी नहीं किया और प्रत्याशियों की घोषणा प्रारंभ कर दी है। ऐसे में कुछ विरोध के स्वर भी सामने आने लगे हैं। चाहे डौंडीलोहारा हो चाहे भटगांव, चाहे राजिम चाहे सरायपाली, भाजपा प्रदेश नेतृत्व डैमेज कंट्रोल में भी लग गई है। लेकिन नेताओं व कार्यकर्ताओं में चर्चा इस बात को लेकर है कि क्या भाजपा में नई परंपरा शुरू हो चुकी है कि चुनाव समिति का गठन किए बगैर ही टिकट बांटे जा रहे हैं। रायपुर उत्तर को लेकर भी खासी चर्चा है कि क्या किसी संत को या उनके शिष्य को केंद्रीय संगठन ने कोई संकेत दे दिया है ?
यह हम नहीं कह रहे हैं प्रदेश भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में कार्यकर्ताओं के हुजूम के बीच यह चर्चा और नाराजगी भी तेजी से फैल रही है।
राजिम के कद्दावर भाजपा नेता भी प्रदेश भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में आकर राजिम के प्रत्याशी को लेकर अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं।
लेकिन रायपुर उत्तर की चर्चा पार्टी प्रदेश कार्यालय में आग की तरह फैल गई है और वहां से निकलकर रायपुर उत्तर तक पहुंच गई है। चर्चा तो ये है कि क्या भाजपा में तथाकथित संत इतने पावरफुल हो गए हैं कि उनके अनुयायी कहने लगे हैं कि केंद्रीय संगठन का कोई भी नेता आता है तो संत के दरबार में हाजिरी लगाने जरूर जाते हैं और संत को संकेत दे दिया गया है। इस तरह के कथित दावों से तो प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या भाजपा में नई परंपरा शुरू हो गई है…?