भोपाल। चम्बल में डाकुओं के द्वारा की गयी हिंसा और अराजकता सन पचास साठ और सत्तर के दशक में देश के लिए के कानून व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय बन गई थी। इसका अंत सन 1977 में बागियों के आत्मसमर्पण से इस बुरे दौर का अहिंसक तरीके से हुआ। आत्मसमर्पण के पचास वर्षों के अवसर पर मुरैना के जौरा स्थित महात्मा गाँधी सेवाश्रम में बहुत से आयोजन किये जा रहे है। छत्तीसगढ़ से डॉ सत्यजीत साहू के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने भी जौरा के महात्मा गांधी आश्रम के आयोजनों में हिस्सा लिया।
समस्त आयोजन के सूत्रधार पी वी राजगोपाल जी है जिन्हे पुरे चम्बल क्षेत्र में राजू भाई के नाम से जाना जाता है। राजू भाई ने प्रसिद्ध गाँधीवादी सुब्बाराव जी के साथ चम्बल के सबसे ज्यादा हिंसाग्रस्त जिले मुरैना के जौरा में आकर 1969 में गाँधी आश्रम की स्थापना की। राजू भाई ने सुब्बाराव ,विनोबा जी ,जे पी के साथ मिलकर बारह साल लगातार शांति के लिए अहिंसक तरीके से प्रयास किया तब जाकर चरण बद्ध तरीके से चम्बल के बागियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने का निर्णय लिया।।
डॉ सत्यजीत साहू को राजू भाई ने चम्बल के सबसे खतरनाक मोहर सिंग गैंग में रहे पूर्व बागी अजमेर सिंह से मिलाया। राजू भाई ने बताया की पुरे शांति प्रक्रिया के दौरान सबसे बड़ी चिंता दो सबसे खूंखार डाकू दल मान सिंह और मोहर सिंह के आत्मसमर्पण की थी। कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार दोनों डाकू गैंग ने अपनी रजामंदी दी।
पूर्व बागी अजमेर सिंह ने डॉ सत्यजीत साहू को बताया की सत्तर के दशक में राजू भाई जब बीहड़ में आकर हमारे मोहरसिंह गैंग से शांति की बातचीत की तब हमने अपने हतरह से रोटियां बना कर खिलायीं थी। अब भी राजू भाई हमारे पुरे चम्बल के बड़े भाई है। आज भी हम अपनी कई समस्याओं को लेकर राजू भाई के पास सलाह के लिए आते हैं।
जौरा के आश्रम में केरल से आये शिवकुमार जी ,ओडिशा से आये मधु बाबू , ,एकता परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार , एकता परिषद् के भाई रमेश शर्मा , तिल्दा गाँधी आश्रम के सीताराम सोनवानी इत्यादि गाँधीवादी कार्यकर्ताओं से डॉ सत्यजीत साहू के साथ सूरज दुबे और एडवोकेट ठाकुर संतोष ने कई दौर में बातचीत की।
जौरा गाँधी आश्रम में राजू भाई को निवानो विश्व शांति पुरुस्कार मिलने पर पुरे चम्बल क्षेत्र से आये लोगों से सम्मानित भी किया। छत्तीसगढ़ के टीम से बात करते हुए पी वी राजगोपाल ने छत्तीसगढ़ के अपने कामों को याद करते हुए कहा की भूमिहीन आदिवासियों और गरीबों के लिए किये गए देशव्यापी अहिंसक आंदोलन में छत्तीसगढ़ ने के लोगों ने प्रमुखता से भूमिका निभाई थी। अब जरुरत है भूमिसुधार कानून को जमीनी स्तर पर लागु करने की। छत्तीसगढ़ में जारी हिंसा के बारे में पी वी राजगोपाल ने संदेश दिया की गाँधी के अहिंसक तरीके से ही विश्व भर में हिंसा का समाधान ढूंढा जाना चाहिए। चम्बल का उदाहरण तो इस विषय में और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है जहाँ गाँधी वादी अहिंसक तरीके से दशकों की हिंसा का समाधान खोजा गया। विश्व शांति पुरुस्कार विजेता पी वी राजगोपाल ने अगले माह जून में छत्तीसगढ़ प्रवास में आने की सहमति भी दी है।