हम किताब थे किताब ही रह गए…… तुम कहानी थे और बदलते चले गये……

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )     

देश में 70 साल में विकास नहीं हुआ,2014 के बाद ही विकास हुआ है ऐसे दावे की चर्चा के बीच खुलासा भी जरुरी है।पंडित जवाहर लाल नेहरू,श्रीमती इंदिरा गाँधी और राजीव‌ गांधी का सम्पूर्ण कार्यकाल 37 वर्ष 9 मास 23 दिन का रहा जिसमें देश को बदलने वाले बड़े बड़े फैसले किये गए। लगभग इस‌ 38 वर्ष को 70 साल कहना कहां तक ठीक है? इस अवधि में गुलजारी लाल नंदा का दो बार 13–13 दिन, श्री लालबहादुर शास्त्री का 1 वर्ष 216 दिन, श्री पीवी नरसिंह राव का 4 वर्ष 303 दिन और डॉक्टर मनमोहन सिंह का 10 वर्ष 4 दिन अर्थात कुल 16 वर्ष 184 दिन जोड़ दें तो भी कांग्रेस पार्टी का पूरा कार्यकाल 54 वर्ष 3 माह 27 दिन का होगा। इस अवधि को भी 70 साल कह कर बुलाना न्यायसंगत नहीं है।70 साल के महावाक्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए श्री मोरारजी भाई देसाई, चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह, चंद्रशेखर,एच डी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल और 6 साल‌ बेमिसाल अटल बिहारी बाजपेयी का कालखंड जोड़ना पड़ जाएगा‌। तब भी 3 साल बाकी ही रहेंगे। दुर्भाग्यवश इसकी पूर्ति हेतु मोदी सरकार को अपना शुरू का तीन साल उधार देना पड़ेगा। तब कहीं जाकर 70 साल की अवधि पूरी हो पाएगी। अब जरा सोचिए कि 70 साल को देश की बर्बादी का काल कहने में वाजपेयी का 6 साल और अपना शुरू का 3 साल भी शामिल है। आजादी के बाद बिना ढोल नगाड़े बजाए वाजपेयी का 6 साल कोई कम या कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता।जाहिर है कि 1947 से 70 वर्ष‌ की गणना 2017 में ही पूरी होती है। अब अगर अपने शुरू के 3 साल देने में कोई कश्मकश है तब ब्रिटिश पीरियड का 3 साल शामिल करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता…..?

पीएम नहीं, इंदिरा बड़ा
नाम है बस्तर में…….  

बस्तर का आदिवासी अंचल नेहरू-गाँधी परिवार क़ो पसंद करता रहा है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जो राजीव गाँधी की सुरक्षा में लगे थे, उन्होंने मुझे बताया था कि बतौर पीएम दौरे पर एक आदिवासी के झोपड़े में पहुंचे और वहीं के एक स्थानीय व्यक्ति ने हल्बी में बताया कि ये देश के प्रधानमंत्री हैं तो उसने उठना भी जरुरी नहीं समझा पर ज़ब उसे बताया गया कि ये इंदिरा गांधी के बेटे हैँ तो वह न केवल उठा बल्कि राजीव गाँधी से माफ़ी भी मांगने लगा यानि बस्तर में पीएम का नही पर इंदिरा गाँधी का अलग स्थान है। खैर पहली बार प्रियंका बस्तर प्रवास पर पहुंची थी।उनके परनाना तथा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बस्तर प्रवास के 68 साल बाद प्रियंका गांघी पहली बार बस्तर प्रवास पर रहीं हैं। वैसे इस आदिवासी अंचल में प्रियंका की दादी इंदिरा गाँधी सहित उनके पिता राजीव गाँधी, माताजी सोनिया सहित राहुल गाँधी भी आ चुके हैं।एक बात उल्लेखनीय है कि नेहरू 13 मार्च 1955 क़ो आए थे और प्रियंका भी 13 अप्रेल 2023 क़ो बस्तर पहुंची थी।वैसे बस्तर में प्रियंका का प्रवास, मंच से भूपेश की तारीफ से यह तो तय है कि अगला विस चुनाव बघेल के नेतृत्व में ही होगा।राजनीतिक जानकारों की मानें तो बस्तर के आदिवासियों के लिए प्रियंका गांधी केवल एक कांग्रेस नेता नहीं, बल्कि इंदिरा की पोती भी हैं। लिहाजा आदिवासियों का भावनात्मक लगाव भी प्रियंका गांधी से जुड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में इस वक्त बस्तर लोकसभा समेत विधानसभा की सभी 12 सीटों में कांग्रेस के विधायक हैं और पार्टी इस बात को बखूबी जानती है कि छ्ग में सत्ता तक जाने की राह आदिवासी बाहुल्य बस्तर से होकर ही गुजरती है। इसलिए चुनाव से पहले प्रियंका के दौरे से कांग्रेस अपनी जमीन और ज्यादा मजबूत करना चाह रही है, वैसे बस्तर में जिस तरह भाजपा के नेता लगातार सक्रिय हैं, हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आकर गये हैं,आदिवासी आरक्षण से लेकर नारायणपुर, सुकमा में जिस तरह एक वर्ग विशेष क़ो लेकर विपक्ष माहौल बनाने प्रयासरत हैं ऐसे समय में प्रियंका का दौरा कॉंग्रेस के लिये वातावरण बनाने में निश्चित ही मदद करेगा।

तब के कलेक्टर ने नहीं
पहचाना,नक्सली बरी…..!    

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कलेक्टर रहे आईएएस एलेक्स पाल मेनन ने अपरहण,2 सुरक्षा कर्मियों की हत्या और शर्तों में 13 दिन बाद रिहाई के चर्चित मामले में तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स द्वारा आरोपी नक्सली क़ो नहीं पहचानने के कारण रिहा कर दिया गया है।एनआईए कोर्ट में एलेक्स पाल मेनन के सामने कलेक्टर के अपहरण मामले में आरोपी रहे हार्डकोर नक्सली भीमा कमला उर्फ आकाश को पेश किया गया, लेकिन आईएएस ने उसे पहचानने से मना कर दिया।दरअसल 11 साल पहले सुकमा जिले के पहले कलेक्टर रहे आईएएस अधिकारी एलेक्स पॉल मेनन को 21 अप्रैल 2012 को नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था और करीब 13 दिनों तक अपने साथ रखा।इसके बाद 4 मई 2012 को उन्हें रिहा किया गया,इस मामले में बकायदा एनआईए ने भी नक्सलियों द्वारा कलेक्टर के अपहरण की जांच के लिए टीम बनाई थी।घटना के 11 साल बाद अपहरण के मामले में दंतेवाड़ा जिले में बने एनआईए कोर्ट में कथित तौर पर इस वारदात में शामिल रहे भीमा कमला उर्फ आकाश को कोर्ट में एलेक्स पाल मेनन के सामने पेश किया गया. इस दौरान एलेक्स पाल मेनन ने नक्सली को पहचानने से इंकार कर दिया।

कलेक्टर की गरिमा क़ो ठेस
एक सीन ऐसा भी …..    

कलेक्टर जिले का मालिक होता है,उनकी अलग गरिमा होती है। कभी राजनेता उनसे मधुर सम्बन्ध बनने प्रयासरत रहते थे पर कुछ वर्षो से राजनेताओं से निकटता बनाने कलेक्टर अपनी गरिमा क़ो ठेस पहुंचाने में पीछे नहीं हैं, हाल ही में मनेन्द्रगढ़ के कलेक्टर पी एस ध्रुव की चिरमिरी में एक मैच के पुरस्कार वितरण समारोह में विधायक डॉ विनय जायसवाल और उनकी पत्नी महापौर कंचन जायसवाल पैरों के पास बैठे दिखाई दे रहे हैं….!आखिर इसका क्या मतलब है….?

और अब बस….

0बेमेतरा जिले के छोटे से गांव बिरनपुर में छोटे से झगडे क़ो सम्पदायिक तनाव में बदले जाने के पीछे क्या प्रशासनिक चूक भी हुई है…?क्या कलेक्टर, एसपी की बिदाई होगी?
0 छ्ग मानव अधिकार आयोग में कार्यकारी अध्यक्ष का पद किसी वरिष्ठ आईपीएस क़ो बनाने रिक्त रखा गया है?
0कलेक्टर, एसपी की तबादला सूची निकलने में देरी क्यों हो रही है?

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