इंदौर: एक ऐसा गांव जहां आज़ादी के बाद पहली बार लोग चलेंगे पक्की सड़क पर, कांग्रेसी सरपंच की मेहनत रंग लाई

    विशाल यादव 

 इंदौर। यूं तो इंदौर और उसके आस-पास में मेट्रो सिटी की तरह विस्तार और विकास दोनों हो रहा है। लेकिन इंदौर की महू विधानसभा में लगने वाले एक इलाके में आज़ादी के बाद अब लोगों को सड़क नसीब हो रही है। कई सरपंच देख चुकी इस गांव की पीढ़ियां कच्ची और पत्थरों वाली सड़कों पर ही अपना सफर तय करती रहीं हैं। जन समूहों की सुविधाओं के मांग के लिए लिखे पत्र भी अधिकारियों के यहां दफ्तर दाखिल होते रहे। नतीजा सिफर ही रहा। फिर कड़े संघर्ष के बाद ही सही जनता को उम्मीद की किरण गांव के ही कांग्रेसी सरपंच शिवप्रसाद दुबे में दिखाई दी। सरपंच चुने जाने के बाद दुबे ने सबसे पहला लक्ष्य रखा चोरल से गुंजार ( कालाकुंड पंचायत का हिस्सा ) तक पक्की सड़क निर्माण कराने का। आज़ादी के बाद पहली बार यहां सड़क निर्माण के लिए काम चल रहा है। यहां के लोगों में इसे देखकर उनकी खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है।।           
– चार हजार की आबादी , चार सुविधाएं भी ठीक से नहीं
 जहां सरपंच शिवप्रसाद दुबे रहते हैं वहां चार हजार की आबादी है। सुविधाओं के नाम पर कुल जमा चार सरकारी सुविधाएं भी ठीक से नहीं मिल पाती है। किसी में कुछ दिक्कत तो किसी में कुछ। लेकिन इसके बाद भी सड़क निर्माण होते देख यहां के लोगों के चेहरे पर एक अलग ही सुकून नजर आता है। कई बार लोग सिर्फ ये देखने निकलते हैं कि आखिर सड़क बनी कहां तक …।।                         
–  घाट पर महंगी गाड़ियों का काफिला , नीचे देखते ही बदहाली
 यहां एक साथ दो नज़ारे साफ दिखाई देते हैं। चोरल घाट पर नज़र दौड़ाएंगे तो कई महंगी गाड़ियों के काफ़िले दिखाई देंगे और कुछ दूरी पर नीचे आते ही ये गांव का हिस्सा अपनी बदहाली बताने में देर नहीं करता ।।
  दस किलोमीटर की सड़क और सरपंच   
 कालाकुंड पंचायत के इस हिस्से में प्राकृतिक सुंदरता कूट कूट कर भरी हुई है। पहाड़ियों की घेराबंदी और नदियों की छोटी छोटी पगडंडियां भी खूब मन को भांति हैं। अब आजादी के बाद दस किलोमीटर की सड़क बन जाने के बाद यहां जरूरी सुविधाएं भी मिलने लगेंगी। खासकर स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था ठीक हो जाएगी।.   
 – गर्भवती महिलाओं को सातवें महीने में छोड़ना पड़ता है गांव       
 सड़क नहीं होने के कारण सबसे ज्यादा परेशानी गांव की गर्भवती महिलाओं को होती रही है। सरपंच शिवप्रसाद दुबे ने बताया कि प्रसव की लिए महिलाओं को सातवें महीने में ही इस गांव से बाहर ले जाना पड़ता था। स्वास्थ्य सुविधाओं की परेशानी होती थी। अब सड़क बन जाने के बाद ये हालात बदलेंगे ये उम्मीद जरूर बंधी है।

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