अब न मैं वो हूँ न बाकी हैं ज़माने मेरे…. फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )   

देश की सबसे की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इस समय अपने इतिहास के जिस चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, उसमें उसे जैसा अध्यक्ष चाहिए था, वह उसे मिल गया है।कांग्रेस को न तो शशि थरूर जैसे अंग्रेजीदां अध्यक्ष की जरूरत थी और न अशोक गहलोत जैसे अनमने या दिग्विजय सिंह जैसे विवादस्पद बयानबाजी करने वाले अध्यक्ष की…!उसे मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे अध्यक्ष की ही जरुरत थी।कांग्रेस को जरूरत थी एक बेदाग छवि वाले अध्यक्ष की, उसे जरूरत थी पार्टी के कोर बिंदुओं को समझने वाले अध्यक्ष की और जरूरत थी ऐसे अध्यक्ष की जिसे गांधी परिवार का पूरी तरह भरोसा हासिल हो।इन सभी कसौटियों पर खड़गे हर तरह से खरे उतरते हैं।कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में मल्लिकार्जुन खरगे 65वें और दलित समुदाय से आने वाले तीसरे अध्यक्ष हो गए हैं। इससे पहले दामोदरन संजीवैया और बाबू जगजीवन राम कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले क्रमशः पहले और दूसरे दलित नेता थे।कई लोगों ने मजाक बनाते हुए कहा कि 75 साल की सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी 80 साल के खड़गे हो गये हैँ…। उनकी सेहत और उनके हिंदी बोलने को लेकर भी सवाल उठाए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी तुलना करते हुए कहा गया कि वे डायनेमिक नहीं हैं और ज्यादा मेहनत नहीं कर पाएंगे। यह भी कहा गया कि वे अध्यक्ष के रूप में गांधी परिवार के रिमोट से संचालित होंगे। इस तरह का सवाल उठाने में सरकार और भाजपा के ढिंढोरची की भूमिका निभाने वाला मीडिया भी पीछे नहीं रहा।दरअसल खड़गे की क्षमता पर उन लोगों ने ही सवाल उठाए हैं और अभी उठा रहे हैं,जो उनकी समूची राजनीतिक पृष्ठभूमि से अनभिज्ञ हैं या जो उन्हें उनकी क्षेत्रीय और जातीय पृष्ठभूमि तथा उनकी उम्र संबंधी पूर्वाग्रहों के आधार पर उनको देख रहे है। ऐसे लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि मल्लिकार्जुन खड़गे उस समय लोकसभा मे कांग्रेस के नेता बने थे, जब कांग्रेस ऐतिहासिक हार के बाद 44 सांसदों की पार्टी रह गई थी।इन 44 सांसदों में से भी ज्यादातर सांसद हमेशा सदन से अक्सर नदारद रहते थे। ऐसे में गिने-चुने सांसदों को साथ लेकर लोकसभा में 300सांसदों के प्रचंड बहुमत वाली भाजपा के साथ जिन लोगों ने भी खड़गे को जूझते देखा है, वे उनकी क्षमताओं से परिचित हैं। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नही लड़ना है या उनको चुनौती नहीं देनी है। उनको 2024 के चुनाव का नेतृत्व नहीं करना है। सबको पता है कि यह काम राहुल गांधी करेंगे लेकिन उससे पहले और उस समय के लिए भी कांग्रेस को एक ऐसे नेता की जरूरत है, जो पार्टी आलाकमान के लिए आंख और कान का काम कर सके।कांग्रेस को अध्यक्ष के रूप में हर समय खुला रहने वाले एक मुंह की जरूरत नहीं है। इसलिए कांग्रेस को शशि थरूर या दिग्विजय सिंह की नहीं, बल्कि खड़गे की जरूरत है, जो धीरज के साथ पार्टी मुख्यालय में बैठ कर दूसरे नेताओं के सुझाव और शिकायतें सुन कर उन्हें यकीन दिलाएं कि उनकी बात सही जगह पहुंचेगी और उनकी शिकायत या सुझाव पर कार्रवाई होगी, तो यह अपने आप मे बहुत बड़ी बात होगी।नेहरू-गांधी परिवार पर कांग्रेस की निर्भरता के लिए राजनीतिक हलकों और मीडिया में अक्सर उसका मजाक भी उड़ाया जाता है।भाजपा किस हद तक संघ पर आश्रित है या संघ का भाजपा में कितना दखल है, इसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। वैसे भी अनौपचारिक तौर तो भाजपा को संघ की राजनीतिक शाखा ही माना जाता है। इस सिलसिले में भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष की स्थिति को भी देखा जा सकता है। कहने को जेपी नड्डा पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर पार्टी वैसे ही चल रही है जैसे अमित शाह के अध्यक्ष रहते चल रही थी। पार्टी का प्रचार करने, चुनाव लड़ने और संगठन चलाने का तरीका आदि सब कुछ वैसा चल रहा है, जैसा अमित शाह के अध्यक्ष रहते चलता था। विपक्ष शासित राज्य सरकारों को गिराने या विधायकों को तोड़ने आदि का काम भी पहले की तरह जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि अध्यक्ष की कुर्सी पर अमित शाह की जगह जेपी नड्डा बैठे हैं, जो अध्यक्ष बनने के डेढ़ साल बाद भी अपनी पसंद के पदाधिकारियों की नियुक्ति नहीं कर पाए थे।बहरहाल यह तय हो गया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे अब कांग्रेस के अध्यक्ष हो गये हैं , लेकिन परोक्ष रूप से पार्टी पर नियंत्रण राहुल गांधी का ही रहेगा, क्योंकि निर्विवाद रूप से पार्टी का चेहरा तो वही हैं।

सोनिया गाँधी,कमला
और ऋषि सुनक..!        

कमला हैरिस और ऋषि सुनक को अमेरिका
में विदेशी माना जाता तो हमें गर्व करने का अवसर नहीं मिलता…? इन दोनों को बधाई देने वालों में वे लोग अधिक हैं जो सोनिया गाँधी के विदेशी मूल होने का जमकर विरोध कर रहे थे..?यदि सोनिया की तरह इनको भी विदेशी समझा जाता तो क्या ये लोग वहाँ तक पहुंच पाते……?भारतीय राजनीति की ही बात करें तो वर्ष 1991 से राजनीति में जो परिवर्तन आ रहे थे उससे यह लगने लगा था कि आगामी भविष्य में भारत की अगली प्रधानमंत्री और कोई नहीं बल्कि सोनिया गांधी ही होंगी और कहीं न कहीं यह आंकलन सही भी होने लगा था। जब 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार चली गयी थी तो यह अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस अब सोनिया गांधी का ही चयन करेगी। इस बीच 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जब राजनीतिक गलियारों में सोनिया गांधी के पीएम बनने और कांग्रेस की सत्ता वापसी की चर्चाएं तेज हुई तब भाजपा की बड़ी नेत्री स्व.सुषमा स्वराज ने एक ऐलान कर दिया। दरअसल कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी संसद पहुंच गयी थीं। कांग्रेस ने सोनिया गांधी को पीएम बनाने का ऐलान किया कांग्रेस के इस ऐलान से सुषमा स्वराज बिफर गयी और उन्होंने कह दिया था कि “अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो अपने पद को त्यागने के साथ ही वे अपने बाल कटवा लेंगी और पूरा जीवन एक भिक्षु की तरह बिताएंगी। रंगीन वस्त्र के स्थान पर सफेद कपड़े पहनेंगी।” उमा भारती सहित अन्य नेताओं ने भी जमकर विरोध किया था…. हालांकि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और उनकी जगह डॉ.मनमोहन सिंह देश के अगले प्रधानमंत्री बने। बात सत्य भी थी कि भारत को चलाने वाला/वाली भारतीय होना चाहिए। यह कोई भी नहीं चाहेगा कि उसके ऊपर शासन करने वाला/वाली कोई गैर भारतीय हो। ऐसे में अगर एक भारतीय के रूप में सोनिया गांधी के चयन पर ऐसी सोच थी तो निश्चित रूप से ब्रिटेन के लोगों में भी यही सोचा होता उनके मूल का ही कोई हो….तो क्या होता?खैर कमला और ऋषि को बधाई देने वालों में वही लोग हैं जो सोनिया का विरोध करने वालों में पहले नंबर पर थे।

दिवाली, धान
की झालर और सोंटा..    

छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री भूपेश धान बघेल ने दिवाली की सांस्कृतिक परंपरा के अनुसार अपने आवास के गेट पर धान की झालर लगाकर इस रस्म की शुरुआत की।बाद में दीवाली के दूसरे दिन गौरी-गौरा पूजा में सोँटा का प्रहार भी खाया, मान्यता है कि इससे शारीरिक परेशानी दूर होती है और खुशहाली आती है। इधर दीपावली के दौरान खेतों में जब नई फसल पककर तैयार हो जाती है, तब गांववाले धान की नर्म बालियों से कलात्मक झालर तैयार करते हैं।छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार, धान की झालर को अपने घरों की सजावट कर लोग अपनी सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें पूजन के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका यह आमंत्रण उन चिड़ियों के माध्यम से देवी तक पहुंचता है, जो धान के दाने चुगने आंगन और दरवाजे पर उतरती हैं।

झारखण्ड मेँ ‘एटम बम’
के मायने……       

झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने कहा है कि उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े लाभ के पद मामले में ‘एक और राय’ मांगी है। दीपावली मनाने के लिए अपने गृह जिले रायपुर में मौजूद बैस ने ‘भारत 24’ समाचार चैनल की छ्ग ब्यूरो चीफ प्रियंका कौसल से बातचीत में कहा कि झारखंड में कभी भी ‘एटम बम’ फट सकता है। बैस से जब पूछा गया कि झारखंड में सोरेन सरकार के सहयोगियों ने उन पर राज्य सरकार को अस्थिर करने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया है तो उन्होंने कहा, “अगर मेरी सरकार को अस्थिर करने की मंशा होती तो मैं चुनाव आयोग की जो सिफारिश आई है, उसके आधार पर निर्णय ले सकता था। लेकिन मैं बदले की भावना से या किसी को बदनाम करने के लिए कोई भी कार्रवाई करना नहीं चाहता।”बैस ने कहा, ”चूंकि, मैं एक संवैधानिक पद पर हूं, मुझे संविधान की रक्षा करनी है। संविधान के अनुसार चलना है। मेरे उपर कोई उंगली न उठाए कि इन्होंने बदले की भावना से ऐसा किया है। इसलिए मैंने ‘एक और राय’ मांगी है।” हालांकि, उन्होंने चुनाव आयोग की सिफारिश के बारे में विस्तार से नहीं बताया और न ही यह स्पष्ट किया कि दूसरी राय किससे मांगी गई है। यह पूछे जाने पर कि क्या एक और राय मिलने के बाद कोई बड़ा फैसला सामने आएगा, राज्यपाल ने कहा, “दिल्ली में तो पटाखों पर पाबंदी है। लेकिन झारखंड में पटाखा प्रतिबंधित नहीं है। हो सकता है कि एकाध ‘एटम बम’ फट जाए” लाभ के पद मामले में सोरेन को विधानसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की याचिका के बाद चुनाव आयोग ने 25 अगस्त को झारखंड के राज्यपाल को अपना फैसला भेजा था। हालांकि, चुनाव आयोग के फैसले को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन चर्चा है कि आयोग ने खनन पट्टे के मामले में एक विधायक के रूप में मुख्यमंत्री को अयोग्य ठहराने की सिफारिश की है।

छ्ग में आईएएस और
अगला विस चुनाव……      

छ्ग में विस चुनाव अगले साल नवम्बर में होगा पर अभी से कुछ आईएएस अफसरों के कांग्रेस और भाजपा चुनाव लड़ने की चर्चा तेज हो गईं है….!भाजपा से 2 पूर्व आईएएस सहित वर्तमान में कमिश्नर पद से हटाए गये एक अफसर के चुनाव लड़ने की संभावना है तो कांग्रेस से एक पूर्व आईएएस तथा विधायक शिशुपाल सोरी सहित वर्तमान में एक सचिव पद पर कार्यरत एक आईएएस के भी चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है। छ्ग में एसडीऍम से प्रमुख सचिव तक की जिम्मेदारी तय करनेवाले गणेश शंकर मिश्रा 1994 बैच के आईएएस थे, वे कवर्धा, राजनांदगाव, बेमेतरा, धरसींवा, बलौदाबाजार बस्तर में आदि क्षेत्रों में अच्छी पहचान रखते हैं एसडीऍम से कमिश्नर के पद पर पदस्थ रह चुके हैं, महात्मा गांधी के अनुयायी तथा फ़्रीडम फाइटर परिवार से आते हैं तो दूसरे 2005 बैच के आईएएस ओ पी चौधरी हैं,रायपुर की कलेक्टरी करते करते 13साल की नौकरी के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, वे पिछला विस चुनाव भी खरसिया से हार चुके हैं, आजकल उन्हें छ्ग भाजपा का महासचिव बनाया गया है, अनुभव के मामले में उनका कद गणेश शंकर मिश्रा के सामने काफ़ी छोटा है यह बात और है कि उन्हें भाजपा में अच्छा रिस्पान्स मिल रहा है। वहीं हाल ही में एक आईएएस को उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते कमिश्नर पद से हटाया गया है वे भी भाजपा से चुनाव लड़ सकते हैँ?इधर कॉंग्रेस से पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी विधायक हैं वहीं छ्ग शासन के एक सचिव भी अगला विस चुनाव लड़ने की तैयारी में है… रायगढ़ जिले की एक विस से उनकी तैयारी भी शुरू हो गईं है?

और अब बस…

0छ्ग में कुछ आईएएस और आईपीएस के तबादला होने की चर्चा है, इसमें जिले से लेकर सचिवालय, पुलिस मुख्यालय भी शामिल होंगे।
0छत्तीसगढ़ के दो आईएएस अफसर एडिश्नल सिकरेट्री इम्पैनल हुए है। दोनों अफसर अभी केंद्र में ही प्रतिनियुक्ति पर है। सुबोध कुमार और निहारिका बारिक केंद्र में एडिश्नल सिकरेट्री प्रमोट हुए हैं ।

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