जो खानदानी रईस हैं वो, मिजाज रखते हैं नम्र अपना….. तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई नई है…..

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )        

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले चुकी हैं।वो जमीन से जुड़ी हैं, उनका लंबा राजनीतिक अनुभव है और छवि बिल्कुल बेदाग है। आजादी के बाद पहला मौका है जब कोई आदिवासी समुदाय का व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर पहुंचा है। महामहिम द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाकर पीएम नरेन्द्र मोदी एक राजनीतिक दांव खेला है। 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले 18 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर देश के एक बड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश की है। मुर्मूजी संथाल समुदाय से आती हैं. देश में भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है। देश में कई राज्यों की कई सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक हैं। ऐसे में भाजपा ने मुर्मूजी को राष्ट्रपति पद तक पहुंचाकर अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की बड़ी कोशिश की है…..।मुर्मूजी को राष्ट्रपति बनाने से देश के करीब 9 फीसदी अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को बड़ा संदेश जाएगा….?इस कदम के जरिए भाजपा ने संदेश देने का प्रयास किया है कि वो आदिवासी समाज की सबसे बड़ी हितैषी है..,दूसरा ये कि पीएम मोदी वंचित तबके के लिए काम करते हैं. साथ ही ये भी संदेश देने का प्रयास है कि मुख्य धारा से कटे समाज को भाजपा हिस्सेदारी देती है।

लोस, विस चुनावों में
आदिवासी वोटबैंक ….?    

प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की नजर अगले दो सालों में 18 राज्यों में होने वाले चुनावों पर भी है।इनमें चार बड़े राज्य ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में (भाजपा का खास असर नहीं है)शामिल हैं, वहीं, पांच राज्य ऐसे भी हैं जहां अनुसूचित जनजाति और आदिवासी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है…..छत्तीसगढ़,और राजस्थान (कांग्रेस शासित राज्य )झारखंड(गैर भाजपा की सरकार) और महाराष्ट्र (मिली – जुली सरकार) गुजरात (भाजपा की सरकार)शामिल हैं. इन सभी राज्यों की 350 से ज्यादा सीटों पर मुर्मू फैक्टर भाजपा को फायदेमंद साबित हो सकता है….?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि 2024 के चुनाव में उनके दस साल के कार्यकाल के बाद कुछ राज्यों में एंटी-इंकंबेंसी फैक्टर आ सकता है. ऐसे में नए राज्य, नये समुदाय, नए समीकरणों की उन्हें तलाश है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो देश के अलग-अलग राज्यों में 495 विस सीटें ऐसी हैं जो शेड्यूल ट्राइब्स के लिए रिजर्व हैं. इसी तरह लोकसभा की 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. राज्यों की बात करें तो गुजरात की 27, राजस्थान की 25, महाराष्ट्र की भी 25, मध्यप्रदेश में 47, छत्तीसगढ़ में 29, झारखंड में 28 और ओडिशा की 33 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समाज के मतदाता हार जीत का फैसला करते हैं पीएम मोदी इनकी अहमियत को अच्छी तरह से समझते हैं. शायद यही वजह है कि मोदी सरकार ने 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया है…..!

स्मृति ईरानी माफ़ी
मांगे:स्पीकर को पत्र..     

देश में राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कहने का विवाद… केंद्र सरकार की मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा लोस के भीतर बार बार सोनिया गाँधी से ‘ माफ़ी मांगने ‘ की बात करना और बाद में सोनिया-स्मृति विवाद के बीच अब स्मृति से माफ़ी मांगने का मसला भी तेज हो गया है……?कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को एक चिट्ठी लिखकर मांग की है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी को “बिना शर्त माफ़ी” मांगनी चाहिए,चौधरी का आरोप है कि इरानी ने राष्ट्रपति का नाम चिल्लाते हुए लिया और नाम के पहले “राष्ट्रपति या मैडम” जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया.अपनी चिट्ठी में अधीर रंजन ने लिखा है कि उनकी एक गलती के कारण राष्ट्रपति को “ग़ैर ज़रूरी विवाद” में घसीटा गया.उन्होंने कहा, “मैं हिंदी में अच्छा नहीं हूं, इसलिए मुझसे गलती हो गई. मैंने इस पर दुख ज़ाहिर किया है और माननीय राष्ट्रपति से माफ़ी मांगी.”हालांकि उन्होंने कहा कि जिस तरीके से केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रपति का नाम लिया, वो बिल्कुल गलत था और राष्ट्रपति की गरिमा के ख़िलाफ़ था.उन्होंने कहा, “वो बार बार द्रौपदी मुर्मू कह रही थीं, बिना माननीय, राष्ट्रपति या मैडम या श्रीमती का उपयोग किए…..! ये साफ़तौर पर राष्ट्रपति कार्यालय की गरिमा को गिराना है.”पिछले हफ़्ते ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द के इस्तेमाल को लेकर चौधरी को बीजेपी ने घेरा था, स्मृति इरानी ने लोकसभा में उनपर राष्ट्रपति के अपमान का आरोप लगाया था. चौधरी ने इस पर राष्ट्रपति से माफ़ी मांग ली है।

नवा कलेक्टर हे.. अच्छा
काम करहि…..    

छ्ग के सीएम भूपेश बघेल ने शिवरी नारायण में एक समाज के सम्मेलन के मंच से छत्तीसगढ़िया अंदाज में सामान्य लोगों से बातचीत करते हुए जिले के कलेक्टर तारणप्रकाश सिन्हा की तारीफ करते हुए कहा – नवा कलेक्टर हे, अच्छा काम कर ही।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने मंच से कहा कि आने वाले समय में जिले का विकास तेजी से होगा।आपके जिला में नवा कलेक्टर आ गे हे…। लकठा परोस के रहइया हे, बिलासपुर के हे..। अच्छा काम करही। ये ह पहिले मोर पास रहिस.. जनसम्पर्क में डीपीआर के साथ सह आयुक्त रहिस.., बाद में एला राजनांदगाँव कलेक्टर बना के भेजे रहेन… वहाँ ले आप मन के जिला में भेजे हों… तब जनता जनार्दन की तरफ़ से आवाज आई … सिन्हा साहेब पहिली हमर जिला में जिला पंचायत के सीईओ ऱह चुके हे… तब सीएम ने कहा इहा के जिला पंचायत सीईओ रह चुके हे, तब तो कलेक्टर बनकर अउ सुघर काम करहि…अब निरन्तर विकास हो ही। यहाँ यह बताना जरुरी है कि सीएम बनते ही भूपेश ने पहला आदेश तारण सिन्हा का ही जनसम्पर्क में पदस्थापना का किया था। सिन्हा, सीएम के डिप्टी सेक्रेटरी भी रहे। वैसे वे पहले मुख्य सचिव के सचिव भी ऱह चुके हैँ। याने मुख्यमंत्री तथा प्रशासनिक मुखिया के सचिव की जिम्मेदारी सम्हालने वाले छ्ग में संभवत: पहले अफसर होंगे। बतौर कलेक्टर जांजगीर उनका दूसरा जिला है।

औसत 25 दिन में
उठती है एक अर्थी…..?

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले स्थित सुपेबेड़ा मौतों की चीखों से सिसक रहा है। यहां मौत दबे पांव नहीं बल्कि पहले से बताकर आ रही है। बावजूद इसके लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिल पा रहा है। छह साल में यहां किडनी की बीमारी से 81 लोगों की मौत हो गई है। हर 25 दिन में यहां एक घर से अर्थी उठती है.सुपेबेड़ा छत्तीसगढ़ का एक ऐसा गांव है, जहां किडनी की बीमारी से पांच साल में 81 लोगों की मौत हो चुकी है।गांव की हालात में कोई भी बदलाव नहीं आया है.स्वास्थ्य विभाग इसके लिये दूषित पेयजल को जिम्मेदार मानता है तो पीएचई स्वाथ्य विभाग की लापरवाही की बात करता है। प्रदेश की सर्वोच्च संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल सुश्री अनसुया उइके भी वहाँ गईं थीं पर हालात में कोई खास तब्दीली नहीं आई है….?

महंगाई भत्ता और
पेंशन योजना….?

कोरोना की मार और केंद्र सरकार के असहयोग की वजह से छत्तीसगढ़ में बड़े आर्थिक फैसले नहीं हो पा रहे हैं। सरकार के समक्ष एक विचारणीय प्रश्न खड़ा हो गया है कि वह कर्मचारियों को केंद्र के समान महंगाई भत्ता दे या पुरानी पेंशन स्कीम को प्राथमिकता दे….! राज्य के सामने उस समय और चुनौती खड़ी हो गई जब केंद्र ने पीएफआरडीए (पेंशन स्कीम) के हजारों करोड़ लौटाने से इंकार कर दिया। पुरानी पेंशन स्कीम के लिए राज्य को अभी से पेंशन निधि सृजित करनी होगी और एक नियमित बचत को उसमें डालना होगा। केंद्र के समान डीए देने पर सरकार पर सालाना 22 सौ करोड़ का वित्तीय भार आएगा। बता दें कि अभी सरकार कर्मचारियों को 22 प्रतिशत डीए दे रही है, जिसपर 55 सौ करोड़ का खर्च आ रहा है। राज्य सरकार केवल वेतन भत्तों पर 25 हजार करोड़ खर्च कर रही है।केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को 34 प्रतिशत डीए दे रही है। कर्मचारियों की मांग है कि उनको भी उनके समान ही डीए दिया जाए। वित्तीय मामलों के जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में जहां आमदनी कम हुई और अतिरिक्त खर्चे बढ़ गए। इस कारण राज्य की वित्तीय स्थिति पर विपरीत असर पड़ा। ऐसे में सरकार को वित्तीय प्रबंधन की दृष्टि से संसाधनों की दीर्घकालीन प्लानिंग करनी होगी।

और अब बस….

0छ्ग में आईपीएस ओ.पी. पाल को पहले दुर्ग फिर रायपुर रेंज के आईजी पद से जल्दी -जल्दी हटाने के पीछे कुछ टास्क पूरा करना तो नहीं है…?
0सरगुजा के कमिश्नर जी. आर.चुरेंद्र कोअचानक हटाने के पीछे कहीं उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा तो नहीं….?
0छ्ग की राजधानी रायपुर में एक न्यूज़ पोर्टल में आयकर का छापा चर्चा का केंद्र बना हुआ है….?

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