कभी उम्मीदें उधड़ जाय, तो मेरे पास ले आना…! मैं हौसलों का दर्जी हूँ , मुफ़्त में रफ़ू कर दूंगा…!

शंकर पांडे  ( वरिष्ठ पत्रकार )    

छ्ग में सरकार बनाने का रास्ता बस्तर -सरगुजा से निकलता है.. पिछले विस चुनाव में कॉंग्रेस ने यहाँ की सभी सीटें(बस्तर की एक सीट उपचुनाव में विजयी)जीतकर भाजपा को विपक्ष की भूमिका में भेज दिया…?
इसी लिए सीएम ने छत्तीसगढ़ में सबसे पहले बस्तर – सरगुजा की टोह लेने की शुरुआत की है।90 विधानसभा क्षेत्रों में भेंट-मुलाकात के लिए निकले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी योजनाओं का फीड-बैक तो ले ही रहे हैं, साथ ही बड़ी खूबसूरती से प्रदेश की संस्कृति की भी लोगों को याद दिला रहे हैं। इस यात्रा के दौरान वे ऐसे हर उस मौके का इस्तेमाल कर लेते हैं, जिससे छ्ग की संस्कृति, रीति-रिवाज और खान-पान का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार हो सक…। भेंट-मुलाकात की उनकी हर दोपहर तब और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाती है, जब सब की नजरें बघेल की थाली में सजे ठेठ छत्तीसगढ़िया भोजन पर केंद्रित हो जाती है। उनके दोपहर के भोजन में कभी ‘बासी’ होती है तो कभी मड़िया-पेज…, वे कभी पेहटा-तिलौरी का स्वाद ले रहे होते हैं तो कभी लकड़ा-चटनी और कोलियारी भाजी का….।
सरगुजा संभाग के बाद अब वे बस्तर के प्रवास पर हैँ ।भेंट-मुलाकात अभियान पर निकलने से पहले बघेल ने एक मई मजदूर दिवस पर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आहार बोरे-बासी को प्रमोट किया था। सीएम बघेल की सरगुजा-बस्तर की यात्रा ने उनकी योजनाओं और नीतियों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के पकवानों को भी चर्चा में ला दिया है। राज्य के विकास की अपनी रणनीति में संस्कृति और स्वाभिमान को महत्वपूर्ण घटक मानने वाले भूपेश बघेल की पहल पर अब तीजा-पोरा, हरेली, कर्मा जयंती, छठ, विश्व आदिवासी दिवस और मां शाकंभरी जयंती जैसे लोकपर्वों पर सार्वजिनक अवकाश होता है। प्रदेश के हर जिले में कल्चरल रेस्टोरेंट ‘गढ़-कलेवा’ की स्थापना कर ठेठरी, खुरमी, धुसका, चीला जैसे स्थानीय व्यंजनों को प्रमोट किया जा रहा है।वैसे उनके दौरे से काम नहीं करने वाले नौकरशाह भी चिंतित तो हैँ ही……।

झीरम का सच क्या
सामने आएगा….?

झीरमघाटी की घटना नक्सली वारदात थी या यह कोई राजनीति साजिश थी…. इसका खुलासा छ्ग का आम जन, पीड़ित परिवार के सदस्य चाहते हैँ पर क्या यह हो पाएगा !25 मई 2013 को बस्तर के सुकमा से कांग्रेस नेता राज्य में सत्ता परिवर्तन यात्रा का शंखनाद करने निकले और सवा सात बजे सुकमा से जगदलपुर मार्ग में दरभा घाटी में नक्सलियों के नरसंहार में 2 दर्जन कांग्रेस के बड़े-छोटे नेता, सुरक्षा कर्मी शहीद हो गये। इस परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठाये गये पर अभी भी दोषी कौन है यह अतीत के गर्त में है….हाँ उस समय वहाँ पदस्थ अफसर तो अभी भी बड़े पदों पर हैँ… उनकी लगातार पदोन्नति भी होती जा रही है….? दिवंगत लोगों के परिवारजनों के लिए तो यह त्रासदी सालती ही रहेगी कि झीरम घाटी हमले को 9 साल पूरे हो चुके हैं पर अभी भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित अन्य लोगों की मौत के मामले में कई खुलासे बाकी ह….? देश की सबसे बड़ी संस्था एनआईए की तीन साल जांच चली पर घटना से बचकर लौटे लोगों से भी पूछताछ की जरूरत नहीं समझी….., जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता 2013 में घटना के बाद ही गठित जांच आयोग की जांच चलती रही…कॉंग्रेस की सरकार बनने के बाद आयोग ने और समय माँगा था वहीं इस पर निर्णय के पहले ही आनन-फानन में सचिव द्वारा राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी.. भूपेश सरकार ने कुछ और बिंदु जोड़कर 2सदस्यीय आयोग बनाया और उसी के बाद नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक उसकी वैधानिकता को लेकर हाईकोर्ट पहुंच गये….। खैर तब विपक्ष में होने पर कांग्रेस ने तो आयोग के सामने तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तथा तत्कालीन गृह मंत्री ननकीराम कंवर को गवाही के लिए बुलाने आयोग को आवेदन भी दिया था । कांग्रेस का तर्क था कि बाबरी मस्जिद तथा इंदिरा की मृत्यु के बाद सिक्ख दंगों के मामले में तत्कालीन मंत्रियों सहित राज्यपाल की गवाही हो चुकी है तो झीरम जैसे बड़े नक्सली हमले में आयोग ने महत्वपूर्ण लोगों को गवाही के लिए क्यों नहीं बुलाया….? एनआईए की जांच चली, इस एजेन्सी ने जिन्हें आरोपी बनाया उनमें से कई अभी भी कानून के शिकंजे के बाहर हैं। बाद में विधानसभा में कार्यवाहक गृहमंत्री अजय चंद्राकर ने इस मामले में सीबीआई जांच की घोषणा की पर भिलाई में पदस्थ सीबीआई के प्रभारी डीएसपी ने एनआईए जांच के बाद सीबीआई जांच की जरूरत नहीं बताई और जांच नहीं हुई…. सवाल उठता है कि डीएसपी बड़ा या छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल….?
बहरहाल कई सवालों का जवाब अभी भी नहीं आया… महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने में थे पर नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को नक्सली घटनास्थल से दूर ले जाकर क्यों हत्या कर दी.. नक्सली उनसे क्या बात करना चाहते थ.. ? विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार को तो क्रॉस फायरिंग में गोली लग गई पर कांग्रेस का एक विधायक वहां से एक मोटर सायकल से कैसे निकलने में सफल रहा…। हमलावर नक्सलियों में युवतियों की संख्या अधिक थी वे क्रूरता से हत्या कर रही थीं …., गोलियां मारने के बाद चाकूओं से भी हमला किया गया ….आखिर महेन्द्र कर्मा को छोड़कर बाकी कांग्रेसियों से उनकी क्या दुश्मनी थी..?नक्सली तो कई कांग्रेसी नेताओं को पहचानते भी नहीं थे, हमले के बाद किसी देवा नाम के नक्सली नेता से लगातार सेटेलाइट फोन पर निर्देश ले रहे थे ये देवा कौन है…? किस रमन्ना नामक नक्सली नेता ने सभी की हत्या के निर्देश दिये बाद में बचे लोगों को छोड़ दिया गया….। पीड़ित पक्ष 9 साल पूरे होने पर भी घटना से परदा नहीं उठने पर कहते हैँ कि हमने अपने परिवार के मुखिया को खो दिया है क्या हमे झीरम घाटी की सच्चाई जानने का हक भी नहीं है सरकार 9साल में किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंची है…।

नक्सलियों के दो
नये कारिडोर……?   

बस्तर में अपनी गतिविधियाँ सीमित कर नक्सली दो नए कॉरिडोर का निर्माण कर रहे है… जिसमे एक वेस्टर्न घाट रीजन, दूसरा एमएमसी ज़ोन में….. |नक्सलियों की इस योजना से मप्र ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की मुसीबत भी बढ़ सकती है…बड़ी खबर यह है कि नक्सल संगठन के मिलिट्री चीफ कमांडर देवजी उर्फ तिरूपति उर्फ चेतन उर्फ थिप्पली को महाराष्ट्र, मप्र और छत्तीसगढ़ का नया प्रभारी बनाया गया है…नक्सल कामरेड देवजी हिंसक प्रवृत्ति का माना जाता है। सूत्रों की माने तो मप्र के इतिहास में वहां के परिवहन मंत्री की हत्या के अलावा नक्सलियों की ओर से अब तक ऐसी कोई बड़ी वारदात नहीं हुई जो राजनीतिक मुद्दा या फिर पुलिस अफसरों के लिए चुनौती बनी हो पर छ्ग में झीरम घाटी की बड़ी वारदात हो चुकी है, राजनांदगाव के एसपी विनोद चौबे की हत्या हो चुकी है… और उस समय वहाँ पदस्थ अफसर महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैँ… ?इधर बस्तर में नक्सलियों के कुशल संगठक रहे गणेश उइके को ट्राई जंक्शन की कमान सौपी गई है वही सीएमसी की कमान सम्हाल रहे तिरुपति उर्फ़ देवजी को मिलिंद तेलतुम्बड़े के स्थान पर एमएमसी कॉरिडोर विकसित करने की जिम्मेदारी दिए जाने की खबर हैं बस्तर रेज में नक्सली काफी कमजोर हो चुके हैं…इधर पता चला है कि नक्सलियों ने मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को मिलाकर नया कॉरिडोर बनाया है नक्सलियों के केंद्रीय समिति के सदस्य मिलिंद तेलतुंबड़े इसके प्रभारी थे किंतु दो माह पूर्व गढ़चिरौली में महाराष्ट्र की सी 60 फोर्स के साथ हुई मुठभेड़ में तेलतुंबड़े की मौत के बाद यह अधर में लटक गया था…..किन्तु सूत्रों के मुताबिक नक्सलियों ने इसे पूरा करने अपने सेंट्रल मिलिट्री कमीशन(सीएमसी) प्रभारी देवजी उर्फ पिपरी तिरुपति को इलाके में तैनात किया है इसके साथ बस्तर से 100 से अधिक लड़ाके भी उस इलाके में तैनात किया है जो कि इस अधूरे काम को पूरा करने में जुट गए है
बस्तर ,मानपुर,राजनांदगांव ,कवर्धा ,बालाघाट,और गढ़चिरौली जिलों को आपस मे जोड़ा गया है….इसमें अमरकंटक को भी शामिल करने की चर्चा है ।

नक्सली प्रदेश में कई एडीज़ी देख
रहे हैँ गैर पुलिस का काम…..         

नक्सली नया कारिडोर बना रहे हैँ, अपनी ताकत में इजाफा करने में लगे हैँ वहीं पुलिस अफसरों की कमी झेल रहे छ्ग में एडीशनल डीज़ी स्तर के कई अफसर गैर पुलिस कार्यों में पदस्थ हैँ….?
छग की प्रदेश सरकार ने नक्सली मामले के डीजी रहे आईपीएस अशोक जुनेजा को राज्य का नया पुलिस डीजी बनाया है । जुनेजा 1989 बैच के आइपीएस हैं। राज्य कैडर में जुनेजा से वरिष्ठ आइपीएस दुर्गेश माधवअवस्थी(1986बैच )तो 1987 बैच के स्वागत दास और 1988 बैच के संजय पिल्ले,मुकेश गुप्ता, रवि सिन्हा हैं। इसमें मुकेश गुप्ता को सरकार ने निलंबित कर रखा है। संजय पिल्ले का कार्यकाल जुलाई 2023 तक बचा है, सरकार ने पहले ही उन्हें पीएचक्यू के बाहर कर रखा है। पिल्ले,जेल विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।वहीं हाल ही में पदोन्नत विशेष डीजी राजेश मिश्रा को फॉरेन्सिक विभाग का प्रमुख बनाया गया है। नक्सली प्रभावित छ्ग में कुछ एडीज़ी अभी भी पुलिस व्यवस्था से बाहर अन्य काम देख रहे हैँ। मुख्यालय में कम ही एडीज़ी हैँ ।एडीजी एडी गौतम होमगार्ड औरअग्निशमन के मुखिया बनकर पीएच क्यू से बाहर हैँ तो एडीज़ी पवन देव पुलिस हाऊसिंग का काम देख कर बाहर हैं तो हाल ही में पदोन्नत दीपांशु काबरा परिवहन और जनसम्पर्क के कमिश्नर बनकर वैसे भी पुलिस के मूल काम से अलग काम कर रहे हैं,अभी तक इन पदों पर वरिष्ठ आईएएस अफसरों की नियुक्ति होती रही है।छ्ग बनने के बाद अभी तक महत्वपूर्ण जनसम्पर्क विभाग में वरिष्ठ आईएएस सुनील कुमार, विवेक ढांड, ऍम के राऊत आदि पदस्थ रह चुके हैँ … उसी जनसम्पर्क विभाग में दीपांशु की कौन सी विशेष योग्यता देखकर पदस्थापना की गईं हैँ यही चर्चा में हैँ…?यह ठीक है कि मप्र में जरूर आईपीएस आशुतोष सिंह जनसम्पर्क के मुखिया हैँ पर उसके पीछे वहाँ के सीएम शिवराज सिंह का भांजी दामाद होना बड़ा कारण है….?महाराष्ट्र के मूल निवासी दीपांशु के तो छ्ग सरकार में कोई रिश्तेदार भी नहीं हैँ…..? खैर इधर एक अन्य एडीज़ी विवेकानंद सिन्हा जरूर नक्सली अभियान के मुखिया हैँ।प्रदीप गुप्ता,हिमांशु गुप्ता,शिवराम कल्लूरी बस पुलिस मुख्यालय में नौकरी कर समय बिता रहे हैं।एक अन्य एडीजी गुरविंदर पाल सिंह को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में निलंबित किया गया है वे हाल ही में करीब 120दिन जेल में रहकर लौटे हैँ। इधर राज्य के सब कुछ ठीक- ठाक रहा तो जुनेजा जून 2023 तक पद में रहेंगे। जबकि प्रदेश में विधानसभा चुनाव नवंबर 2023 में होगा। ऐसे में चुनाव से पहले नए डीजीपी की नियुक्ति होगी। सर्विस रूल और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी डीजीपी को दो वर्ष से पहले नहीं हटाया जा सकता। हालांकि राज्य के पुलिस अधिनियम में इस बात का प्रावधान है कि सरकार जब चाहे तो डीजीपी बदल सकती है।पर अभी छ्ग सरकार के पास फिलहाल ‘काम से काम’ रखनेवाले अशोक जुनेजा का कोई विकल्प नहीं है..?

और अब बस…..

0कुछ कलेक्टर और एसपी को जल्दी बदल दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
0छत्तीसगढ़िया सीएम भूपेश बघेल के प्रचार प्रसार विभाग में दिल्ली में रह चुके किस अफसर को छत्तीसगढ़िया मिडिया की जगह दिल्ली की मिडिया से अधिक प्रेम है.. क्या दिल्ली की मिडिया से प्रभावित होकर जनता अगले विस चुनाव में मतदान करेगी …..?
0 साहू समाज के किस युवक का राज्यसभा में जाना लगभग तय माना जा रहा है….?

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