संरचना में बदलाव कितना मजबूत करेगा “कांग्रेस” को

आखिर कांग्रेस की विचारधारा व्यवहारिक रूप में क्या है?

✒️सत्य से साक्षात्कार
संजय त्रिपाठी 
व्यक्तिवाद और परिवारवाद की पारंपरिक संरचना पर खड़ा कांग्रेस का संगठन 3 महीने के टारगेट के साथ खुद को बदलने वाला है ?
कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और शैडो अध्यक्ष श्रीमती प्रियंका वाड्रा गांधी ने यह निर्णय किया है कि कांग्रेस पार्टी अपने ऊपर लग रहे परिवारवाद के आरोप से गांधी परिवार को छोड़कर मुक्ति चाहती है और आने वाले चुनाव में एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अवसर देगी।
बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे कांग्रेस के नेताओं ने अफ्रीका में जन आंदोलन खड़ा करने के बाद भारत आए । मोहनदास करमचंद गांधी को सर्वप्रथम भारत की आत्मा से परिचित होने के लिए भारत भ्रमण का सुझाव दिया था।
भारत की सांस्कृतिक जीवन मूल्यों से परिचित होने के बाद इंग्लिश बोलने वाला बैरिस्टर निरंतर समाज अनुसंधान करता हुआ महात्मा गांधी के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है। और इसी गांधी उपनाम के विशुद्ध लाभ को नेहरू का कुनबा आज तक भुना रहा है।
उम्र के 50 बसंत देख चुके राहुल गांधी आज तक भारत के मूल जीवन मूल्यों से कितने परिचित हो पाए हैं?
कभी लंदन जाकर देश में पेट्रोल छिड़कना लोकतंत्र की हत्या का प्रयास करना जैसे बचकाने बयान दे रहे हैं । कुछ वामपंथी और पुराने कांग्रेसियों की तालियां पाने के लिए विदेशों में दिए गए बयान राहुल गांधी और कांग्रेस को देश में मजबूत नहीं करेंगे । दुनिया के देश भी नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के अंतर और बौद्धिक जन सामर्थ्य को समझते है।
लंदन में बातचीत के दौरान रामनवमी के जुलूस ऊपर हो रहे पथराव का दोष भी वह भाजपा और संघ पर मढ देते हैं , तो अमेरिका के राष्ट्रपति के आने के दौरान दिल्ली में हुए सुनियोजित दंगे को भी भाजपा की सांप्रदायिकता की प्रतिक्रिया के रूप में बताते हैं।
राहुल जी का विवेक तो देखिए की लंदन के चुनिंदा लोगों की तालियों के बीच में राजस्थान व देश की आम जनता पर पड़ने वाले असर के विपरीत में मस्जिद में नमाज के बाद भीड़ के हमले अघोषित रूप से जस्टिफाइड करते राजस्थान के कांग्रेसी वयोवृद्ध मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तर्ज पर भाजपा को दोषी करार देते हैं!
गांधी परिवार को यह समझना होगा की लंदन हो या राजस्थान कहीं पर भी की गई बात का असर पूरे भारत की राजनीति पर पड़ने लगा है।
यह बात और है कि राजस्थान के 90% हिंदू समाज में इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया देखी जा रही है।
अगर अशोक गहलोत और राहुल गांधी जैसे नेता अपरिपक्व बयान बाजी ना करके सिर्फ शांति की अपील करते और दोनों ही पक्षों की गलतियों को उजागर करते तब भी शायद कोई संतुलन बन सकता था। कांग्रस इस सत्य को समझ पाई है कि इस देश का हिंदू समाज जाति के बंधनों को तोड़कर हिंदुत्व के नाम पर एकजुट होना सीख गया है । अपनी धर्मनिरपेक्षता की नीति के अनुरूप ही दोनों धर्म की कमियों को उजागर करते हुए शांति कायम रखने की बात की जाती तो शायद कांग्रेस को नुकसान इतना नहीं होता। सिर्फ हिंदू पक्ष को दोषी करार देने के बाद होना निश्चित हो गया है।
पता नहीं चिंतन शिविर में क्या चिंतन हुआ । पर इतना तो जरूर हुआ कि राजस्थान जैसे अपने मजबूत गढ़ को खुद कांग्रेस ने ही संकट में डाल दिया है।
मेरी दृष्टि से देखें तो कांग्रेस प्रारंभ से ही व्यक्तिवाद और परिवारवाद से ग्रसित रही है। जब देश की सारी कांग्रेस कमेटियों ने उत्तर प्रदेश सहित सरदार वल्लभ भाई पटेल को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए वोट दिया था। तब एक प्रदेश के कांग्रेस कमेटी के समर्थन वाले जवाहरलाल नेहरू को खुद गांधीजी ने अपनी व्यक्तिगत पसंद के चलते कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया था।
उसके बाद की परिवारवाद की डायनेस्टी आज तक कांग्रेस को ऑक्सीजन दे रही है।
मध्यप्रदेश को देखें तो कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और अर्जुन सिंह , कांतिलाल भूरिया के बेटे से लेकर खुद सोनिया गांधी राजीव गांधी प्रियंका , राहुल गांधी परिवार बाद का ही विस्तार है।
कांग्रेसमें आज जनाधार वाले गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कद्दावर नेता नहीं जो राहुलजी को यह बता सके कि देश की संस्कृति सभ्यता और चरित्र को समझें। सबसे पहले अपने कांग्रेस संगठन की जमीन को समझे । इस संगठन की आधारशिला ही व्यक्तिवाद और परिवारवाद पर आधारित है । अगर आधारशिला हटी तो बचा कुचा आधार भी खत्म हो जाएगा।
अगर काग्रेस से व्यक्तिवाद और परिवारवाद हट गया तो कांग्रेस का मूल ढांचा ही गिर जाएगा। क्योंकि भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तुलना में कांग्रेस का मूल संगठन खुद दिग्भ्रमित है कि वह किस मार्ग को अपनाएं। संगठन की वैचारिक अवधारणा शून्य है। वह धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस के ही 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के उस मार्ग को अपनाएं कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है या फिर देश में बढ़ रही सांप्रदायिक हिंसा के लिए सिर्फ हिंदू संगठन दोषी है? आप अशोक गहलोत का बयान देख लीजिए उन्होंने राजस्थान की हिंसा के लिए सिर्फ भाजपा और संघ को दोषी करार दिया!
राहुल बाबा और कांग्रेस पार्टी अगर स्वयं को हिंदू कहेंगे और हिंदू समाज पर आक्रमण होने के बाद अगर हिंदू समाज के साथ खड़े हुए नहीं दिखाई दिए तो राजनीतिक जनेऊ और बनावटी हिंदुत्व को अस्वीकार करने के लिए देश का हिंदू समाज तैयार खड़ा है।
देश में हो रही सांप्रदायिक हिंसा के लिए सिर्फ हिंदू पक्ष को दोषी करार देने वाले बयानों को समझें तो घोषित रूप से मुस्लिम उग्रवादी संगठनों को खुली छूट दे दी । इसकी प्रतिक्रिया निश्चित ही हिंदू समाज में बहुत जबरदस्त हुई है। जिस मंदिर पर राजस्थान में हमला , जिसे राजस्थान सरकार द्वारा तोड़ दिया गया । दंगे के दौरान मस्जिद से नमाज पढ़कर निकली भीड़ ने रमजान के दौरान हिंदू परिवारों पर हमला किया उन पर भी क्रास प्रकरण दर्ज करवा दी गई है। कांग्रेस की सरकार की यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है ?
वहीं तुष्टीकरण की मानसिकता में धंसी हुई कांग्रेस जिसने पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी को उर्वरक जमीन प्रदान की । यह लगातार यह समझने में असमर्थ रही की इस एकतरफा धर्मनिरपेक्षता की प्रतिक्रिया जबरदस्त रूप से हिंदू समाज में हो रही है।
*कांग्रेस के पूर्वज बाल गंगाधर तिलक के गणेश महोत्सव शिवाजी महोत्सव जैसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार आज की आधुनिक कांग्रेसी विरासत से ही जुदा है और जन मान्यताओं के विपरीत भारतीय संस्कृति के प्रति कुंठा से ग्रस्त नहीं है?*
*राहुल बाबा कभी हिंदू और हिंदुत्व की बात करते हैं । कभी घासलेट और पेट्रोल की बात करते हैं । तो कभी हिंदू आतंकवाद की। उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें भाजपा से किस तरह से कैसे लड़ना है । गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्य से हार्दिक पटेल हाथ से खिसक कर चले जाते हैं। जेएनयू के प्रोडक्ट कन्हैया कुमार कांग्रेस में पर पद पा जाते हैं । राहुल बाबा क्या जाने की आम जनता में कन्हैया कुमार की प्रतिष्ठा क्या है ?जहां जहां उनकी सभाएं होंगी वहां वहां कांग्रेस कितनी मजबूत होगी?*
दरअसल लगातार चुनाव में हो रही कांग्रेस की हार की घबराहट और मोदी जी द्वारा परिवारवाद पर हो रहे आक्रमण के घबराहट में कांग्रेस अपने मूल ढांचे पर ही प्रहार करने में जुट गई है । इन बदलाव की घोषणाओं का कितना पालन कांग्रेस कर पाएगी आने वाला समय बताएगा।
पर इतना जरूर सत्य है की कांग्रे स को अब यह तो समझना ही होगा,, उसे सर्वजनहिताय सर्वजन सुखाय की नीति पर सभी की अच्छाइयों को लेकर और सभी की बुराइयों का विरोध करके चलना होगा । सिर्फ हिंदू पक्ष को दोषी दिखाने की धर्मनिरपेक्षता अब प्रतिष्ठित नहीं होने वाली। समझना होगा कि आज की भारत की जनता क्या चाहती है। सिर्फ मुस्लिम और ईसाई वोटों के सहारे अब देश की राजनीति नहीं चल सकती है?

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