पन्नों से परे भी है एक जिंदगी….. सब किरदार, किताबों में नहीं होते….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )     

भाजपा के राष्ट्रीय स्तर से वार्ड स्तर के नेता अक्सर आरोप लगाते हैँ कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है…..?
उदयपुर में कांग्रेस के नव संकल्प शिविर में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस नेताओं का सम्मान करती है, उन्हें बोलने का मौका देती है। यहां जनता को संवाद करने का मौका मिलता है। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि इस देश का कौन सा राजनीतिक दल इस प्रकार की बातचीत की अनुमति देगा? निश्चित तौर पर बीजेपी और आरएसएस ऐसा कभी नहीं होने देंगे। भारत राज्यों का एक संघ है, भारत के लोग संघ बनाने के लिए एक साथ आते हैं।
कॉंग्रेस को आजादी के बाद देखें तो देश के पहले पीएम पंडित नेहरू के बाद जब देश की बागडोर लाल बहादुर शास्त्री से होते हुए इंदिरा गांधी के पास आयी तो कांग्रेस अध्यक्ष के.कामराज से इंदिरा गांधी की कई मुद्दों पर खटपट रही और कामराज ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया। बाद में इंदिरा गांधी ने इंदिरा कांग्रेस बनायी और फिर जो कुछ हुआ वो इतिहास में दर्ज है। 1975 मेंआपातकाल के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वाले ज़्यादातर नेता पूर्व कांग्रेसी थे। जय प्रकाश नारायण, मोरारजीभाई देसाई, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम समेत जितने भी बड़े नेता इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ बिगुल फूंक रहे थे, ज़्यादातर कांग्रेसी थे।इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी आए….। राजीव गांधी के ख़िलाफ़ बोफ़ोर्स मुद्दे पर बिगुल फूंकने वाले वी॰पी॰सिंह भी कांग्रेसी थे। वीपी सिंह के साथ, विद्या चरण शुक्ला,अरुण नेहरू, आरिफ़ मुहम्मद खान जैसे नेता भी पूर्व कांग्रेसी थे। राजीव गांधी के बाद नरसिम्हा राव गद्दी पर बैठे। उनको शरद पवार और अर्जुन सिंह समेत कई कांग्रेसियों की मुख़ालिफ़त झेलनी पड़ी। सोनिया गांधी और राजीव गांधी के करीबी नेता हमेशा उनके सर का दर्द बने रहे।नरसिम्हा राव के बाद सीताराम केसरी को कांग्रेस की बागडोर मिली तो उन्हें माधवराव सिंधिया, अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी का ज़बर्दस्त विरोध झेलना पड़ा। सीताराम केसरी के बाद सोनिया गांधी के पास बागडोर आयी तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष का पद पाने के लिए जितेंद्र प्रसाद से चुनाव लड़ना पड़ा। उसके बाद शरद पवार, संगमा और तारिक अनवर ने उनके ख़िलाफ़ बिगुल बजाया और पार्टी को तोड़ दिया। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव जीती और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनके विदेश मंत्री नटवर सिंह ने उनके ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी। कांग्रेस सरकार के जाने के बाद भी इतने बुरे हालात में भी कांग्रेस में कोई ना कोई लगातार सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता रहा। अमरिंदर सिंह से लेकर वीरभद्र सिंह तक कैसे बग़ावत करके मुख्यमंत्री बने, यह किसी से छिपा नहीं है। अभी हाल ही में कांग्रेस के 23 दिग्गज नेताओ ने कांग्रेस आला कमान को चिट्ठी लिखकर पार्टी की वर्किंग पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है….। नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस का नेतृत्व किसी के भी हाथ में रहा हो, कांग्रेस के नेताओ में इतनी रीढ़ हमेशा रही कि वो किसी भी मुद्दे पर शीर्ष नेतृत्व के ख़िलाफ़ बोलने या बग़ावत करने से कभी नहीं हिचके….। मुद्दा भ्रष्टाचार हो, देश का हो, तानाशाही का हो या खुद को साइडलाइन करने का हो, कांग्रेस में हमेशा बाग़ी पैदा हुए जिन्होंने सामने वाले के क़द और पद को नज़रअन्दाज़ करके बग़ावत की।
इसके उलट अगर भाजपा पर नज़र डाले तो मोदी जी के उदय से पहले तो पार्टी में छिटपुट घटनाएँ बग़ावत की हुई है। कल्याण सिंह, उमा भारती, वसुंधरा राजे, यदुरप्पा , शंकर सिंह वाघेला जैसे लोगों ने अपनी गद्दी या सम्मान बचाने के लिए बग़ावत की है लेकिन मोदी का दौर आने के बाद किसी की इतनी हिम्मत ना हुई कि सर उठाकर चल सके। आडवाणी, जोशी, शत्रुघन सिंहा, यशवंत सिंह, जसवंत सिंह, अरुण शोरी सब मोदी से इस बात को लेकर नाराज़ रहे कि उन्हें साइडलाइन कर दिया गया लेकिन पार्टी तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया……बल्कि खुद ही चुपचाप धीरे धीरे पार्टी छोड़कर चले गए। कुछ अभी भी पार्टी में जमे हुए हैं।मोदी सरकार का एक भी मंत्री आज तक एक शब्द मोदी या शाह के विरुद्ध नहीं बोल पाया। आज तक मोदी शाह के किसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ किसी एक मंत्री का मुँह नहीं खुला…..। जेटली के ऑफ़िस में जासूसी कैमरा लगा, लेकिन जेटली चू नहीं कर पाए और सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनी लेकिन विदेश जाने को तरस गयी…। सरकार के किसी फ़ैसले में वो अपनी बात ना रख पायी….. पर्रिकर रक्षा मंत्री बने लेकिन राफ़ेल डील से बाहर कर दिए गए… । वो सारे अपमान सह कर चुपचाप गोवा चले गए और राजनाथ सिंह गृह मंत्री से रक्षा मंत्री बना दिए गए लेकिन उनके मुँह से एक शब्द भी निकला ….। जो लोग अपने अपमान को ही चुपचाप बर्दाश्त कर गए, उनके मुँह से देश के या जनता के लिए बाग़ी होना तो असम्भव ही है।नोटबंदी,ज़ीएसटी,अर्थ
व्यवस्था पर नाकामी, मॉब लिंचिंग, गौ गुंडई, कोरोना, चीनअतिक्रमण, मोदी का पाकिस्तान दौरा, आतंकी हमले, आईएसआई की जाँच, पुलवामा जैसे हज़ारों मुद्दे थे, जिन पर तो ज़रूर कोई बोलता….?मोदी के कुछ मंत्री जब मुँह से लोकतंत्र बोलते हैं तो हंसी आती है….?

बुजुर्गों के टाइमपास
का एक यह भी तरीका….    

ओल्ड सिटीजन्स यानि 60साल से अधिक उम्र के बुजुर्गो को देश की मोदी सरकार ने मार्गदर्शन मण्डल की श्रेणी (आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि )में मानकर उपेक्षित कर रखा है…. पेशन तो अटलजी की सरकार ने बंद कर रखा था… मोदी सरकार ने बैंकों में जमा एफ डी पर ब्याज लगभग आधा कर रखा है… जीवन रक्षक दवाइयाँ मॅहगी कर रखी है… रेल टिकट की छूट बंद कर दी है… फिर भी बुजुर्ग जिंदादिली से ज़ी रहे हैँ.. एक सरकारी ऑफिस से रिटायर कर्मचारी के जीवन की एक झलक….। रिटायर हो चुके एक कर्मचारी को फ़िल्म-टीवी देखने में रुचि है और न ही अखबार-किताबे पढ़ने में इंटरेस्ट….। इसलिए रिटायरमेंट के बाद वह टाइम पास कैसे करते हैं , ये एक बड़ा पेचीदा सवाल उनके दोस्त के सामने खडा हुआ था।
“उसने पूछा कि तुम्हें न कोई शौक, न पढ़ने की आदत न फ़िल्म टीवी में रुचि, ना ही ध्यान अध्यात्म में इंटरेस्ट में…..। रिटायरमेंट के बाद आखिर टाइम पास कैसे करते हो तुम ?”उस रिटायर कर्मचारी ने कहा
“बताता हूँ… कल की ही बात है,”मैं और श्रीमतीजी बाजार गये थे , एक ज्वेलर्स के शोरूम से केवल पांच ही मिनट में बाहर आ गये.दुकान के सामने पार्क की हुई कार के पास ट्रैफिक पुलिस का सिपाही खड़ा हुआ था, हाथ में चालान बनाने के लिए रसीद बुक लिए।हम दोनों थोड़ा घबरा गए, उसके पास जाकर विनती करने लगे-“भैया, मुश्किल से पांच मिनट के लिए ही शोरूम में गए थे, छोड़ दो ना भाई इस बार!”तो वह कहने लगा, “सभी लोग हर बार ऐसा ही बोलते हैं। खुद की गलती मानता ही नहीं कोई। एक बार हजार रुपये की रसीद कटेगी, तब ही अगली बार गलती नहीं होगी।””ऐसा नहीं है, हम मानते हैं हमसे गलती हुई है। आगे से ऐसा नहीं होगा, और हजार रुपये भी बहुत ज्यादा होते हैं। हम तो रिटायर्ड कर्मचारी हैं, हमारे सफेद बालों की ओर तो देख लो।”
“लाखों की गाड़ी चला रहे हो, बड़े-बड़े शोरूम पर खरीददारी कर रहे हो, कानून तोड़ते हो, फिर भी हजार रुपये आपको ज्यादा लग रहे हैं? चलिए, बुजुर्ग होने के नाते इस बार सिर्फ दो सौ रुपये लेकर छोड़ देता हूँ !”‘उन दो सौ रुपयों की रसीद मिलेगी?’ मैंने मासूमियत से पूछा…
“ओ काका , रसीद चाहिए तो हजार की ही बनेगी, दो सौ की कोई रसीद-वसीद नहीं मिलेगी।””ऐसे कैसे? पैसे देने पर रसीद नहीं दोगे क्या? नियम कायदे से होना चाहिए के नहीं सब कुछ? सीधे-सीधे बोलो ना कि तुमको रिश्वत चाहिए।”मेरे यह बोलते ही वो और भड़क गया और मेरी बात पकड़ कर ही बैठ गया।”अच्छा? ये बात है? नियम-कायदे से चाहते हो सब कुछ? फिर तो हो जाये। मैं सोच रहा था, बुजुर्ग लोग हैं, थोड़ा सबूरी से काम लेते हैं, तो आप उल्टे मुझे ही कायदे और अकल सिखाने चल पड़े हो। चलिए, अब तो सारे नियम कायदे बताता हूँ।” हवलदार ने अब रौद्ररूप धारण कर लिया।अब वह हाथ धोकर गाड़ी के पीछे पड़ गया। एक मिरर टूटा हुआ है, पीछे वाली नम्बर प्लेट सही नहीं है, पीयूसी अपडेट नहीं है… करते-करते मामला तीन चार हजार तक पहुंच गया।ये तो काफी बढ़ता ही जा रहा था, यह देख कर मैंने पत्नी से कहा- “जरा तुम बोल कर देखो, शायद तुम्हारी बात मान जाए।”वह हवलदार से कहने लगी, “बेटा, ऐसे गुस्सा मत हो। इनकी बात का बुरा मत मानो। छोड़ भी दो। इनकी ओर तुम ध्यान मत दो, ये लो दो सौ रुपये पकड़ो।”
लेकिन वह हवलदार कुछ भी सुनने को राजी नहीं था।”मुझे नहीं चाहिए आपके दो सौ रुपये। अब तो रसीद ही कटेगी।”
अगले आठ-दस मिनट यही सब चलता रहा। वह उसे समझाने की कोशिश करती रही और वो दिलजला सिपाही रसीद फाड़े बिना मानने को तैयार नहीं था।” “अरे बाप रे! दो सौ रुपये बचाने के चक्कर में इतनी बात बढ़ गई? फिर क्या किया आप लोगो ने?- दोस्त ने सवाल किया।
“कुछ नहीं! तभी हमारी बस आ गई, उसमें सवार हो कर घर लौट आए।”
“ऐं…फिर गाड़ी…? वो चालान और रसीद का क्या हुआ…? और वो हवलदार…?” दोस्त को कुछ समझ नहीं आ रहा था।”वो गाड़ी वाला जाने और हवलदार जाने…., हमें क्या? गाड़ी हमारी थी ही नहीं, हम तो बस से गए थे…तुम अभी पूछ रहे थे ना….? टाइमपास कैसे करते हो, वही बता रहा हूं…..

9 जिलों के एसपी
और अब आईजी दुर्ग….     

आईपीएस बद्री नारायण मीणा ने पुलिस अधीक्षक की पोस्टिंग का अपना ही रिकार्ड तोड़ दिया है। छत्तीसगढ़ में आठ जिलों के एसपी रह चुके मीणा दुर्ग को पुलिस अधीक्षक बनकर 9वें जिले की कप्तानी का रिकार्ड बनाया…..।और अब वें दुर्ग रेंज के आईजी बन चुके हैँ।2004 बैच के आईपीएस मीणा इसी जुलाई में सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटे हैं। 2018 में डीआईजी प्रमोशन के बाद वे प्रतिनियुक्ति पर इंटेलिजेंस ब्यूरो में चले गए थे।मीणा के नाम सबसे अधिक जिलों का कप्तान रहने का रिकार्ड दर्ज है। उन्होंने बलरामपुर से एसपी की पारी शुरू की थी। इसके बाद कवर्धा,राजनांदगांव, जगदलपुर, कोरबा, जांजगीर,बिलासपुर, रायपुर रायगढ़ और फिर दुर्ग जिले के एसपी रहे.. राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर के पास एक गांव में जन्म लेकर जयपुर में ही पढ़ाई करके आईपीएस बनने वाले बद्री काफ़ी संवेदनशील अफसर माने जाते हैँ तभी तो पूर्व की रमन सरकार हो या भूपेश सरकार हो उनकी अच्छी पदस्थापना होती रही है.एक संयोग यह भी है कि रायपुर एसपी का चार्ज बद्री मीणा ने ओ पी पाल से लिया था तो दुर्ग आईजी का चार्ज भी ओ पी पाल से ही लिया…..

डोमन सिंह को छठवें
जिले की कमान…      

प्रमोटी आईएएस डोमन सिंह को मुंगेली, कोरिया, कांकेर,पेंड्रारोड गौरेला, महासमुंद के बाद अब बलौदाबाजार में कलेक्टर की कमान सम्हाल रहे हैं…. एक छत्तीसगढ़िया प्रमोटी आईएएस अफसर की इस उपलब्धि कई लोगों के लिए ईर्ष्या का कारण भी बन सकती है… खैर 2009 बैच के डोमन सिंह रायपुर में एडीऍम भी रह चुके हैँ…..बालोद जिले के रहने वाले डोमनसिंह कांकेर में अधिक समय नहीं रह सके क्योंकि उनकी पदस्थापना के बाद ही लोक सभा चुनाव की घोषणा हो गई और कांकेर लोक सभा के अंतर्गत बालोद आता है इसलिए गृह जिला होने के कारण वे जल्दी हटा दिये गये.. बहरहाल अभी तक छ्ग राज्य बनने के बाद 4जिलों में कलेक्टर बनने का रिकॉर्ड सुबोध सिंह, ठाकुर रामसिंह, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, सोनमणि वोरा, दयानन्द, भीम सिंह तथा एक मात्र महिला अधिकारी किरण कौशल के नाम दर्ज है। ठाकुर राम सिंह प्रमोटी आईएएस होने के साथ ही रायपुर, बिलासपुर रायगढ़ तथा दुर्ग जैसे बड़े जिले में सफल कलेक्टरी करने का रिकॉर्ड बना चुके हैँ।खैर prmoti आईएएस डोमनसिंह का अमित,अजीत जोगी को आदिवासी नहीं मानकर मरवाही से विस उप चुनाव नहीं लड़ने देने का फैसला चर्चा में रहा…..क्योंकि अजीत जोगी की जाति का मामला छग राज्य बनने के बाद से ही उठता रहा था….

और अब बस..

0पहले हम चंद्रमा पर पानी खोजते थे…मंगल ग्रह पर जीवन खोजते थे……!
अब मस्जिद के नीचे मूर्ति और ताजमहल के नीचे मंदिर खोज रहे हैं….?
0 महिला आईपीएस पारुल माथुर भी बतौर एसपी 5जिलों की कमान सम्हाल चुकी हैँ….
0किस मंत्री का आदेश उसके गृह जिले के कलेक्टर और एसपी भी नहीं मानते हैँ…?
0आदिवासी अंचल में पदस्थ एक कलेक्टर के एक बड़े जिले में कलेक्टर बनाए जाने की संभावना है…? जिसके करीबी रिश्तेदार केंद्र में एक महत्वपूर्ण पद पर हैँ।

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