जुगनूओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिये…. रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी….

 शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )       

पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों के ठीक पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्यों के बीच आईएएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति के मसले पर जबर्दस्त टकराव चालू हो गया है।मौजूदा नियमों के तहत किसीआईएएस,आईपीएसआईएफएस अफसर को दिल्ली में पदस्थापना देने के पहले संबंधित राज्य सरकार से सहमति लेनी होती है।यह देश में सालों से चलीआ रही संघीय व्यवस्था का हिस्सा है।केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य पर्याप्त अफसरों को दिल्ली नहीं भेज रहे हैं।केंद्र सरकार में आईपीएस के करीब 645 पद हैं, लेकिन इसमें से केवल 390 ही अफसर उपलब्ध हैं. यही हाल आईएएस के पदों का है. राज्यों के काडर वाले 40 फीसदी अफसरों को प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में होना चाहिए. पर वर्तमान में यह केवल 18 फीसदी है. अफसरों के संकट को देखते हुए केंद्र सरकार अब नियमों में बड़ा बदलाव करने जा रही है. केंद्र जिस अफसर को चाहेगी, उसे प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुला लेगी. इसमें राज्यों के पास सहमति नहीं देने या अफसर को रिलीव ना करने जैसे विकल्प भी नहीं होंगे।इसमें भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अफसर भी आएंगे. छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, केरल, झारखंड, तमिलनाडु जैसे गैरभाजपा शासित राज्यों के अलावा कुछ एनडीए शासित राज्यों ने भी नियमों में किए जा रहे बदलाव का विरोध किया है।उनको डर है कि इससे राज्यों के पास अच्छे अफसरों की कमी हो जाएगी और अफसरों की कार्यप्रणाली पर भी इसका असर होगा।राज्यों की चिंता ये भी है कि इससे नौकरशाही पर अपरोक्ष रूप से केंद्र का पूरा नियंत्रण हो जाएगा. राज्यों के पास काबिल अफसरों का भी संकट हो सकता है। आईएएस अफसरों का एक बड़ा खेमा भी केंद्र सरकार के प्रस्ताव से बहुत खुश नहीं है. आमतौर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्तियां अखिल भारतीय सेवाओं के लिए आकर्षक मौका मानी जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में ये धारणा तेजी से बदली है. आईएएस, आईपीएस अफसरों को केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत दिल्ली के दफ्तरों में बैठकर काम करने की जगह राज्यों में आजादी, नई चुनौतियों और मौलिक सोच के साथ काम करना बेहतर लगने लगा है. कई बड़े और अहम पदों पर लेटरल एंट्री से केंद्रीय सेवा में जाने की आईएएस की बची – खुची रुचि भी घटी है. इसके अलावा ढेर सारी और सही-गलत वजहें भी हैं. राज्य काडर में रहने वाले आईएएस या आईपीएस को पता होता है कि वह अपनी सेवा के ज्यादातर सालों तक राज्य में ही रहने वाला है।इसके चलते कुछ अफसरों की सत्ताधारी दलों के साथअत्याधिक निकटता के दर्जनों उदाहरण हमारे सामने हैं. छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर जीपी सिंह के बारे में कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कठोर टिप्पणी की थी. अक्टूबर में सीजेआई एनवी रमना ने जीपी सिंह मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि आप हर मामले में सुरक्षा नहीं ले सकते….आपने पैसा वसूलना शुरू कर दिया, क्योंकि आप सरकार के करीब हैं। यही होता है अगर आप सरकार के करीब हैं और इन चीजों को करते हैं, तो आपको एक दिन वापस भुगतान करना होगा….चिंता की बात ये है कि इस तरह के अफसर इकलौता उदाहरण नहीं हैं. आज हर राज्य में इस मानसिकता वाले कई अफसर मिल जाएंगे. इनको राजनीतिक संरक्षण भी मिला होता है. सत्ता बदलने के साथ इन अफसरों के चेहरे बदलते जाते हैं. पिछले कुछ महीनों में केंद्र सरकार के कई फैसलों को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच टकराव हो चुका है. केंद्र और राज्यों के बीच के रिश्तों में एक गांठ लग जाएगी, जिसे खोलना कहीं मुश्किल होगा।सारे मुद्दों पर विमर्श के साथ रास्ता निकालना हमेशा बेहतर होता है।अगर केंद्र के पास अफसरों की कमी है, तो यूपीएससी के माध्यम से ज्यादा अफसरों की भर्ती की जा सकती है।कई राज्यों में सालों से काडर रिव्यू नहीं हुआ है. छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इसके चलते पहले से ही आईएएस औरआईपीएस अफसरों की कमी से जूझ रहे हैं. इस हालत में अगर केंद्र ने प्रतिनियुक्ति को लेकर मनमानी की, तो राज्य में अफसरों का संकट कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएगा।

‘मैं देश नहीं बिकने दूंगा ‘     

यह 2014 का छलावा था देश नहीं बिकने दूंगा…जो 2022 आते आते ‘मै सब कुछ बेच डालूँगा’ में बदल गया।सरकार के एक जवाब के अनुसार उन्होंने अपने कार्यकाल में 23 बड़ी पब्लिक सेक्टरअन्डरटेकिंग ( पीएस.यू) बेच दिया है।जबकि इससे पहले दो ही प्रधानमंत्री और थे- अटल बिहारी वाजपेयी जिन्होंने 07 तथा डा० मनमोहन सिंह जिन्होंने 03पीएसयू ही बेचा था….
एक आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया कि मोदी एकलौते प्रधानमंत्री हैँ जिन्होंने एक भी पीएसयू खड़ा नहीं किया…. जबकि अन्य 11 प्रधानमंत्रियों ने देश की पीएसयू की वृद्धि ही की थी….यहां तक की वाजपेयी को भी 17पीएसयू स्थापित करने का श्रेय जाता है।
अन्य प्रधानमंत्रियों द्वारा स्थापित किये गये पीएसयू पर नजर डाले तो जवाहर लाल नेहरू(33)लाल बहादुर शास्त्री(5)इंदिरा गांधी(66)मोरारजी देसाई (9)राजीव गांधी(16)वी पी सिंह(2)गुजराल(3)तथा डॉ मनमोहन सिंह(23)
पीएसयू को देश की धन संपत्ति मानते थे।लेकिन नरेंद्र मोदी उन्हें कारपोरेट जगत को बेचने में विश्वास रखते हैं…..अभी हाल ही में उन्होंने राष्ट्रीय उड्डयन कंपनी एयर इंडिया को टाटा को बेचा है.बहुत कुछ 2024 तक बेच डालेंगे ऐसा लगता है …?

अगला विस चुनाव और भाजपा नेतृत्व…..  

छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय और विस में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के सामने मुश्किलों की लंबी फेहरिस्त है. विधानसभा चुनाव 2023 में बीजेपी की खोई हुई जमीन वापस दिलाने,चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने,तथाकथित कद्दावर और बड़े नेताओं को एकजुट करने, पुराने चेहरे से थक चुके लाखों कार्यकर्ताओं को नया चेहरा पर विश्वास जताने की और ना जाने ऐसी कितनी अनगिनत चुनौती दोनों नेताओं के सामने खड़ी हैं। शीर्ष नेतृत्व में बदलाव की भी कभी कभी चर्चा सुनाई देती है…. वैसे यह तो तय है कि छ्ग के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल को कोई जिम्मेदारी दी जाएगी। जबकि आम कार्यकर्त्ता उन्हे नेतृत्व देने का की पैरवी करता है। बहरहाल 2018 के विधानसभा चुनाव में 15 सालों तक शासन करने वाली बीजेपी महज 15 सीटों पर कैसे और क्यों सिमट गई और उप चुनाव के बाद 15 से भी कम 14 सीटें पर कैसे आ गई…..भाजपा के कुछ नेताओं ने कभी खुलकर बोला नहीं, मगर वे जानते हैं कि सत्ता के बाहर और भीतर खिचड़ी कैसे पक रही हैं। वैसे वर्तमान नेतृत्व पर दर्जनों लोग उनकी कमियां निकालने, उनको हतोत्साहित करने, उनका नकारात्मक फीडबैक तैयार करने की तैयारी कर चुके हैं, उम्मीदों का पहाड़ इसलिए भी है क्योंकि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार पहाड़ से बड़े बहुमत के साथ पूरे आक्रमक तेवर के साथ धरातल पर डटी हुई है. सत्ता पक्ष के आक्रामक तेवर के सामने विपक्ष अलग-थलग दिखाई देने लगी है। हाल ही में सिंधिया एपिसोड में भी भाजपा के दो पूर्व मंत्रियों के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं।क्या चुनाव पूर्व छ्ग के शीर्ष नेतृत्व में कोई फेरबदल होगा…..?

एक वेब सीरीज:ऐसा नहीं होता छ्ग में…    

एक कत्ल, छह संदिग्ध और दो जांच करने वाले अधिकारी….कुछ कॉन्सेप्ट के आसपास बुनी गई है वेब सीरीज ‘द ग्रेट इंडियन मर्डर…. इस सीरीज में छत्तीसगढ़ की छवि को बिगाडने का प्रयास ही किया गया है… छग में न तो ऐसी राजनीति होती है और न ही ऐसे अपराध…. खैर डिज्नी प्लस हॉटस्टार की यह वेब सीरीज विकास स्वरूप की किताब ‘सिक्स सस्पेक्ट्स’ पर आधारित है. इसके साथ ही अजय देवगन ने ओटीटी जगत में बतौर प्रोड्यूसर कदम भी रख दिया है. लेकिन इसे नाटकीय रूप देने के लिए कुछ चीजों और जगहों को बदला गया है. इस तरह एक बांध कर रख देने वाली मर्डर मिस्ट्री बनाने की कोशिश की गई है लेकिन सवालों के जवाब अधूरे छोड़ दिए जाने की वजह से वेब सीरीज जरूर कुछ चुभती है….द ग्रेट इंडियन मर्डर की कहानी विक्की के कत्ल की है. विक्की बिगड़ैल है और उसके पिता छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं. इस तरह विक्की का कत्ल होता है और उसके कई संदिग्ध भी हैं. ऋचा चड्ढा और प्रतीक गांधी इस कत्ल की गुत्थी से परदा उठाने की कोशिश करते नजर आते हैं. लेकिन गुत्थी सुलझाने की सारी कोशिशों के बावजूद सवाल अधूरे रहे जाते हैं और इतंजार एक और सीजन का करना पड़ेगा. इस तरह पूरी की पूरी कहानी कत्ल और कई तरह की गुत्थियों के ईर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन जवाब अधूरे रह जाते हैं. यह अधूरापन ही सीरीज की सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि 9 एपिसोड का नतीजा कुछ नहीं निकलता है और सीरीज को अधूरा रखने की वजह से यह काफी खींची हुई भी लगती है.इस तरह मर्डर मिस्ट्री के चाहने वालों को यह वेब सीरीज जरूर पसंद आ सकती है, सिर्फ दूसरे सीजन का इंतजार तंग कर सकता है… पर इस सीरीज से छ्ग की छवि को गलत ढंग से पेश करने का प्रयास तो किया ही गया है….

और अब बस

0कुलपति स्थानीय हो या बाहरी… इसको लेकर राजभवन और सरकार में रार सामने आ रही है।
0 छ्ग के निलंबित एडीजी जी पी सिंह एक महीने से जेल में हैँ.. कभी उनकी तूती बोलती थी….
0 एक मिडियामैन की सलाह मानने के कारण आईएएस बाबूलाल अग्रवाल कहीं के नहीं रहे..?नहीं तो मुख्य सचिव की दौड़ में अभी रहते…
0राजनादगांव के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह द्वारा उत्कृष्ठ कार्य करने वाले आरक्षक से निरीक्षक पद के अफसरों को COP OF THE MONTH के रूप में चयनित कर प्रत्येक माह उन्हें प्रमाण-पत्र एवं नगद पुरस्कार देने की शुरूआत की है।
0 छग के एक मंत्री ने एक व्यक्ति को झापड़ रसीद किया तो दूसरे मंत्री ने एक के मुंह में फाइल फेंक दिया….?

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