शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
भारतीय सिनेमा सहित समूचे भारतीय उपमहाद्वीप की महानतम गायिका लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता की आवाज़ आज खामोश हो गईं । इंदौर में जन्मी ऐसी आवाज़ जो सदियों में कभी एक बार ही गूंजती है। लता मतलब सन्नाटे को चीरती कोई रूहानी दस्तक। जैसे जीवन की तमाम आपाधापी में सुकून और तसल्ली के कुछ अनमोल पल। जैसे एक बयार जो हमारी-आपकी भावनाओं को अपने साथ ले उड़े। नूरज़हां, शमशाद बेग़म और राजकुमारी के दौर में कुछ मराठी गीत गाने के बाद 1947 की हिंदी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ के एक गीत से साधारण शुरूआत करने वाली लता जी की आवाज़ को तब कई संगीतकारों ने यह कहकर खारिज़ कर दिया था कि उनकी आवाज़ बेहद पतली और उस दौर की नायिकाओं के लिए अनुपयुक्त है। चौतरफा तिरस्कार के उस दौर में एक अकेली नायिका मधुबाला थी जिन्हें लगता था कि लता जी की आवाज़ शायद उनके लिए ही बनी है। उन्होंने कुछ फिल्में स्वीकार करने के पहले यह शर्त रखी कि उन्हें अपने लिए लता जी की आवाज़ से कम कुछ भी स्वीकार नहीं है। अंततः लता जी को अपार शोहरत मिली 1949 की फिल्म ‘महल’ में मधुबाला पर फिल्माए गए कालजयी गीत ‘आएगा आने वाला’ से। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।
लता जी ने अपनी शालीन, नाज़ुक, गहरी और रूहानी आवाज़ से उन्होंने लगभग सात- आठ दशकों तक हमारी खुशियों, शरारतों, उदासियों, दुख, अकेलेपन और हताशा को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की कई पीढ़ियों के प्रेम को सुर दिए, व्यथा को कंधा और हमारे आंसुओं को तकिया अता की। देश की तीस से ज्यादा भाषाओं में तीस हज़ार से ज्यादा गाने गाने वाली लता जी की संगीत के प्रति आस्था ऐसी कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में घुसने के पहले अपनी चप्पलें बाहर ही उतार देती थी। आवाज़ की विविधता ऐसी कि प्रेम का श्रृंगार और वियोग, ख़ुशी और उदासी, बचपना और प्रौढ़ता, मोह और वैराग्य – सब एक ही व्यक्तित्व में समाहित हो गए हों। मानवीय भावनाओं और सुरों पर पकड़ ऐसी कि यह पता करना मुश्किल हो जाय कि उनके सुर भावनाओं में ढले हैं या ख़ुद भावनाओं ने सुर की शक्ल अख्तियार कर ली हैं। उनके बारे में कभी देश के महानतम शास्त्रीय गायक मरहूम उस्ताद बडे गुलाम अली खा ने स्नेहवश कहा था – ‘कमबख्त कभी बेसुरी नही होती।’ उस्ताद आमिर ख़ान कहते थे कि ‘हम शास्त्रीय संगीतकारों को जिसे पूरा करने में डेढ़ से तीन घंटे लगते हैं, लता वह तीन मिनट मे पूरा कर देती हैं।’ पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के शब्दों में – ‘कभी-कभार ग़लती से ही लता जी जैसा संपूर्ण कलाकार पैदा हो जाता है।’ महान अभिनेता दिलीप कुमार के शब्दों के साथ – ‘जिस तरह फूल की ख़ुशबू का कोई रंग नहीं होता, जिस तरह पानी के झरनों और ठंढी हवाओं का कोई घर, कोई देश नहीं होता, जिस तरह उभरते सूरज की किरणों या किसी मासूम बच्चे की मुस्कराहट का कोई मज़हब नहीं होता, वैसे ही लता जी की आवाज़ क़ुदरत की तखलीक का एक करिश्मा है !’ लता जी एकमात्र ऐसी महिला गायिका रहीं जिनके नाम से संगीत के सबसे सम्मानित पुरस्कारों में एक ‘लता मंगेशकर सम्मान’ दिया जाता है। यह पहली बार हुआ था कि स्टेज पर उन्हें ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी’ गाते सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु के आंसू निकल आए थे। लता जी सांगीतिक जीवन जितना सार्वजनिक है, उनका व्यक्तिगत जीवन उतना ही रहस्यमय। उन्होंने शादी नहीं की। पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां बड़ी थीं। भाई-बहनों को आत्मनिर्भर बनाने में उनका आधा से ज्यादा जीवन गुज़र गया।
भारतरत्न लता मंगेशकर के हमारी पीढ़ी को गर्व रहेगा कि वह लता जी के युग में पैदा, जवान और बूढ़ी हुई।