शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
आजकल अन्य पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी सभी राजनीतिक दलों की आंखों का तारा है। केंद्र में सत्ताधारी भाजपा ने संविधान के अनुच्छेद 342 (ए) 338 (बी) तथा 366 में संशोधन का विधेयक लोकसभा/राज्यसभा में पारित करा लिया है। मजे की बात तो यह है कि सभी विपक्षी पार्टियों ने इस 127 वें संविधान संशोधन विधेयक का साथ दिया है। लोस/रास में पेगासस जासूसी, किसान आंदोलन जैसे मुद्दे वह उभार नहीं पा सके जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
दरअसल अगले साल उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा तथा मणिपुर में विस चुनाव होने हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव के परिणाम ही केंद्र में अगली सरकार किसकी बनती है उसका सेमीफाइनल होगा यह तय है। इसी को लेकर जातीय गोलाबंदी शुरू कर दी गई है। दरअसल महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पाटीदार ,राजस्थान में गुर्जर ,हरियाणा में जाट, कर्नाटक में लिंगायत के साथ ही साथ बिहार, उत्तरप्रदेश में कई जातियां खुद को ओबीसी सूची में शामिल करआरक्षण का लाभ देने की मांग कर रही है।
उत्तरप्रदेश में तो विस चुनाव भाजपा के साथ साथ विपक्षी दलों के लिए भी अहम है। यदि योगी आदित्यनाथ सरकार की सत्ता में वापसी होती है तो विपक्ष को हाल ही में पश्चिम बंगाल में मिली जीत की खुशी काफूर हो जाएगी? जीत मिली तो केंद्र की मोदी सरकार की पुन: वापसी नहीं होने का मनोबल बढ़ेगा साथ ही विपक्षी एकता की भी संभावना बढ़ जाएगी। वैसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ओसीबी आरक्षण लागू होने पर राज्यों को यह अधिकार मिल जाएगा और वे अपने राज्यों की ओबीसी की सूची बनाने में सक्षम हो जाएगी, वैसे 1993 में ही राज्य अपने अपने यहां के ओबीसी की सूची तैयार करते थे पर केंद्र सरकार ने 2018 (मोदी सरकार) ने कानून में संशोधन करके यह अधिकार राज्यों से छीन लिया था अब सवाल यह भी उठ रहा है कि विधेयक के कानून बन जाने के बाद आरक्षण का दायरा बढ़ जाएगा और सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से तय की गई सीमा 50 प्रतिशत खत्म हो जाएगी? इस विधेयक के कानून बनने से कोई भी राज्य मौजूदा ओबीसी की सूची में कुछ जातियों को शामिल कर सकता है या हटा सकता है लेकिन आरक्षण का दायरा 27 प्रतिशत ही रहेगा।
असल में भाजपा केंद्र के साथ-साथ अभी उत्तरप्रदेश, म.प्र., हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल, कर्नाटक, असम, त्रिपुरा समेत कुछ अन्य राज्यों में सत्ता में है या हिस्सेदारी में है। ये राज्य सरकार नया कानून आते ही ओबीसी सूची में उन जातियों को शामिल कर पाएंगी जो उन्हें चुनावी फायदा पहुंचा सकती है। वैसे उप्र में 79 जातियों को ओबीसी का दर्जा है और 39 जातियों को शामिल करने की चर्चा है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय (पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और वर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई) भाजपा से जुडे हैं। ऐसी ही स्थिति गुजरात, बिहार, म.प्र., महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों में भी देखने को मिल सकती है। ज्ञात रहे कि केंद्रीय सूची में ओबीसी की कुल 2700 जातियां शामिल है जबकि आरक्षण का लाभ 1 हजार जातियों को ही मिल रहा है। महाराष्ट्र में जहां भाजपा सत्ता से बाहर हो चुकी है वहां भी मराठा आरक्षण देकर अपनी पैठ जमाने की भी योजना का प्रयास भाजपा कर सकती है। वैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान में भी ओबीसी आरक्षण की मांग उठती रहती है ।मद्रास हाईकोर्ट के कड़े फैसले के बाद स्नातक, स्नातकोत्तर, मेडिकल सीटों पर ओबीसी को 27 प्रतिशत तथा आर्थिक रूप से कमजोर अगड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला हुआ है। देश में करीब 45 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है तो छत्तीसगढ़ में करीब 40-45 प्रतिशत ओबीसी, 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (आदिवासी )और 15 प्रतिशत बच्चे अनुसूचित जाति के हैं। वैसे हाल ही में मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में 27 ओबीसी मंत्रियों को शामिल किया गया है जिसमें 5 कबीना स्तर के मंत्री भी हैं। कुल मिलाकर भाजपा ओबीसी वर्ग को साधकर अगली सरकार फिर बनाने का जतन शुरू कर चुकी है।
अटल-आडवाणी के क्षत्रप?
नरेन्द्र मोदी-अमित शाह क्या अटल-आडवाणी के समय के भाजपा के क्षत्रपों को किनारे लगाकर नया नेतृत्व विकसित कर रहे हैं….?मिले संकेेतों से तो लग रहा है कि ये लोग पूरी तरह से अपने युग की भाजपा तैयार करने की कवायद शुरू कर चुके हैं।
केंद्र में सत्ता सम्हालने के बाद जिस तरह लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को संरक्षण मंडल में डालकर निपटा दिया गया वहीं एम वेंकैया नायडू को सक्रिय राजनीति से उपराष्ट्रपति बना दिया गया, के. जना कृष्णमूर्ति कहां है यह पता नहीं है। हाल ही में अपने मंत्रिमंडल में विस्तार के बाद रविशंकर प्रसाद, संतोष गंगवार, प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. हर्षवधन, रमेश पोखरियाल आदि को हटाकर अपनी पसंद के लोगों को मंत्री बनाया है वहीं अब संकेत मिल रहे हैं कि वे अपने समकालीन मुख्यमंत्रियों को भी एक-एक कर निपटाना शुरू कर चुके हैं.. छ्ग के पूर्व सीएम रमन सिंह, राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे वैसे भी सरकार नही बनने से हासिये में हैं तो हाल ही में कर्नाटक के सीएम येदुरिप्पा को हटाकर बसवराजू बोममई की ताजपोशी की गई है अब क्या मप्र के सीएम शिवराज सिंह की बारी है…..? अब केंद्र में राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी तथा मुख्तार अब्बास नकवी ही अटल आडवाणी युग के मोदी मंत्रिमंडल में बचे हैं….!
और अच्छे दिन आएंगे….?
15 लाख खाते में डालने , 2 करोड़ लोगों को सालाना रोजगार देने के वादे से शुरू हुआ सफर …7 साल में 5 किलो अनाज मासिक देने तक पहुंच गया है अभी यह सफर कहां तक जाएगा पता नहीं…..? सरकारी आकड़ो के मुताबिक उप्र में 15 करोड़, गुजरात मे 3.5 करोड़ और मध्यप्रदेश में 4.83 करोड़ लोगों को मुफ्त 5 किलो राशन दिया जा रहा है । उप्र की कुल आबादी लगभग 23 करोड़, गुजरात की 6 करोड़ और मध्यप्रदेश की 8.5 करोड़ है. मतलब उप्र में लगभग दो तिहाई और गुजरात और मध्यप्रदेश मे आधी से ज्यादा आबादी अपने लिए रोटी जुटाने मे असमर्थ है और वह अपनी भूख मिटाने के लिए मुफ्त अनाज पर निर्भर है. पूरे देश मे 80 करोड़ लोग इस योजना के दायरे मे हैं अर्थात सरकार ये मानती है कि देश मे 80 करोड़ लोग इतने गरीब हैं कि वो अपने लिए रोटी का जुगाड़ नहीं कर सकते .?….. मध्यप्रदेश और गुजरात मे करीब 20/ 25 वर्षों से भाजपा की सरकार काबिज है. प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदी 14 वर्षो तक गुजरात में मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उप्र में भी अब तक भाजपा के चार मुख्यमंत्री हो चुके हैं. क्या भाजपा के नारे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास यही है….
पूर्व आईएएस भाजपा में
छग में एक पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है, एसडीएम से प्रमुख सचिव तक का सफर तय करने वाले मिश्रा ने कवर्धा से एसडीएम के रूप में अपनी प्रशासनिक सेवा शुरू की थी, निगम प्रशासक, एडिशनल कलेक्टर, नक्सली प्रभावित बस्तर में कलेक्टर, कमिश्नर, सचिव, प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी पूरी कर अब समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश लिया है, कांग्रेसी तथा स्वतंत्रता संग्राम परिवार के मिश्रा के संबंध विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, डा. रमन सिंह से वर्तमान में छग के कांग्रेसी सरकार के कई मंत्रियों से भी अच्छे हैं, दरअसल इनकी छवि काम करने तथा परिणाम देने वाले अफसर के रूप में बनी थी, उनके भाजपा प्रवेश से निश्चित ही मूल छत्तीसगढिय़ा सहित सवर्णों का लाभ भाजपा को मिलेगा यह तय है वहीं बस्तर में भी उनके कलेक्टर/कमिश्नर पदस्थापना के दौरान किए गए विकास कार्योँ से उनकी आदिवासी समाज में अच्छी छवि है उसका लाभ भी भाजपा को मिल सकता है, आज के हालात में बस्तर भाजपा मुक्त है, वहां से एक भी विधायक नही है। इसके पहले पिछले विस चुनाव के पहले ओम प्रकाश चौधरी ने भाजपा ज्वाइन किया था, हालांकि वे पिछले विस चुनाव में पराजित हो गए। इधर कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी पुनिया तथा शिशुपाल सोरी भी पूर्व आईएएस अफसर रह चुके हैं…..
और अब बस…..
0 मुख्य सचिव बनने से वंचित पूर्व एसीएस सीके खेतान इंदौर से अपनी नई पार्टी की शुरूवात करने वाले हैं क्योंकि छग की भूपेश सरकार ने उन्हें भाव नहीं दिया..?
0 दो भाजपाई बात कर रहे थे कि भाला फेंकने में ओलंपिक में गोल्ड लाने वाले नीरज चोपड़ा को भाजपा में लाना चाहिये….. दूसरे ने कहा कि यह संभव नहीं है क्योंकि फेंकने वाले भाजपा में पहले से मौजूद हैं।
0 सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना सांसदों, विधायकों के खिलाफ सरकार कोई मुकदमा वापस नहीं लेगी।
0 राज्य के दो निलंबित एडीजी मुकेश गुप्ता और जीपी सिंह की लोकेशन नहीं मिल रही है क्या दोनों साथ-साथ हैं।
0कांगेस की राज्य सभा में सचेतक छग की छाया वर्मा बनाई गई हैं, पहले भाजपा की तरफ से लोकसभा में रमेश बैस सचेतक रह चुके हैं।