शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
छग के पहले मुख्यमंत्री पूर्व आईएएस अजीत जोगी को कलेक्टरी छोड़ने के बाद राज्य सभा, लोकसभा होकर छग का मुख्यमंत्री बनने में कई साल लग गये थे पर लगभग दो साल पहले 22 जून 2019 को भाजपा में प्रवेश करने वाले नए बने भारत के रेल मंत्री किस्मत के धनी हैं। 1994 बैच के आईएएस चयन में भी टॉप करने वाले अश्विनी वैष्णव क़ी पढ़ाई का तो सबको पता चल ही गया होगा कि वो आईआई टी कानपुर से ऍम टेक कर चुके हैं और अमेरिका के टॉप इन्स्टिटूट्स में से एक वॉर्टन से ऍमबीए भी किया है । ये भी पता ही होगा कि वो अटलजी के निजी सचिव की हैसियत से काम कर चुके हैं।
लेकिन जो बात शायद कम लोगों को पता होगी कि 22 जून 2019 को उन्हें भाजपा प्रवेश करवाने के बाद उसी साल यानि 5 जुलाई 2019 को उड़ीसा से राज्यसभा का चुनाव जिताने की स्थिति में भाजपा थी नहीं, क्यूँकि ओड़ीसा की 147 सदस्यों की विधानसभा में 111 सदस्य तो बीजू जनता दल के पास थे और बीजू जनता दल अपने राज्यसभा प्रत्याशियों के नाम भी घोषित कर चुका था।
उसके बाद ख़ुद नवीन पटनायक ने ये बात बताई थी कि उनके पास गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ़ोन आया और उन्होंने नवीन पटनायक से अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा भेजने में मदद करने की गुज़ारिश की इसीलिए बीजू जनता दल अश्विनी वैष्णव को समर्थन किया और इस तरह अश्विनी वैष्णव को मोदी ओड़िशा से चुनाव जितवा कर ले आए जहाँ से भाजपा के पास ख़ुद का प्रत्याशी जिताने लायक़ वोट ही नहीं थे।
अब आप ख़ुद सोचिए, एक व्यक्ति से सिर्फ़ दस दिन पहले पार्टी में प्रवेश लेता है और उसे राज्यसभा में लाने के लिए सरकार और पार्टी के दोनों सबसे बड़े लोग दूसरी पार्टी के नेता से अनुरोध कर रहे थे….। इसका मतलब साफ़ है, अश्विनी वैष्णव को बड़ी ज़िम्मेदारी दिया जाना तय था और दो साल का इंतज़ार इसीलिए कराया गया ताकि वो अपने आप को इस बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए तैयार कर लें।
कांग्रेस में अब ऐसा नहीं होता, किसी समय इंदिरा गांधी ने राजेश पायलट को और राजीव गांधी ने सैम पित्रोडा, अजीत जोगी जैसे काबिल लोगों को इसी तरह अपनी पार्टी में शामिल किया था। लेकिन अब ऐसा नहीं होता, बल्कि अब काबिल लोगों को और दबाया जाता है….?
रेणु पिल्ले फिर निशाने पर…..
छग में सूबे के वरिष्ठ तथा चर्चित आईएएस सी के खेतान इसी माह क़ी 31जुलाई को रिटायर हो रहें हैँ उनका सरकार आगे भी कहीं उपयोग करेगी ऐसा लगता तो नहीं है….? क्योंकि वे भूपेश सरकार के कामकाज पर सवाल उठा चुके हैँ…. उनका अभी तक का सर्विस रिकार्ड भी कम चर्चा में नहीं रहा है राजस्व मंडल के चेयरमेन से उनके रिटायर होने के बाद इस पद पर किसकी नियुक्ति होगी यह चर्चा में है…. काफी वरिष्ठ अफसरों क़ी इस पद पर नियुक्ति होती रही है छग में अभी सीएस अभिताभ जैन के बाद रेणु पिल्ले तथा सुब्रत साहू दो अफसर बचते है… सुब्रत तो सीएम के सचिवालय में है तो उनकी संभावना तो नहीं के बराबर है ऐसे में रेणु को फिर राजस्व मण्डल का चेयरमेन बनाया जा सकता है हाल ही में जिस तरह उन्हें कोविड काल में स्वास्थ्य विभाग से हटाकर पंचायत क़ी जिम्मेदारी दी गईं उससे राज्य सरकार का संकेत मिल गया है…?वैसे इसके पहले भी रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ क़ी सबसे वरिष्ठ महिला आईएएस अफसर रेणु पिल्ले को एक मीडिया हाउस के दबाव में हासिये पर डाल दिया था । रेणु पिल्ले की गलती सिर्फ यही थी कि राजधानी में मीडिया हाऊस ने जिन शर्तों के आधार पर उसे भूमि आबंटित की गई थी उसका उसने जमकर उल्लंघन किया और कलेक्टर की रिपोर्ट पर रेणु पिल्ले ने मीडिया हाउस को अधिक जमीन पर कब्जा हटाने और अवैध निर्माण को भी हटाने का नोटिस दे दिया था। उस मीडिया संस्थान को आबंटित भूमि की लीज समाप्त हो गई थी और कलेक्टर रायपुर ने स्थल निरीक्षण का प्रतिवेदन में पाया की संस्था द्वारा मीडिया के लिए सामान्य पट्टा शर्तों के साथ विशिष्ठ शर्त भी दी गई थी कि उनके द्वारा भूमि का उपयोग केवल प्रेस स्थापना हेतु किया जाएगा। पर वे भूमि का उपयोग भिन्न प्रयोजन के लिए कर रहे थे। वहां सात मंजिला पक्का व्यवसायिक कॉम्पलेक्स बनाया गया था तथा व्यवसायिक प्रयोजन के लिए भूमि का उपयोग हो रहा था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर तब क़ी राजस्व विभाग क़ी प्रमुख सचिव रेणु पिल्ले ने मीडिया संस्थान को नोटिस दिया था। उसके बाद रेणु पिल्ले को हटाकर राजस्व मंडल बिलासपुर में अटैच कर दिया गया। ज्ञात रहे कि महिला आईएएस अफसरों में रेणु पिल्ले तब सबसे वरिष्ठ होने के चलते प्रमुख सचिव के पद पर पदस्थ थी। बाद में भूपेश सरकार में उनकी मंत्रालय में वापसी हुई थी….
जनसंख्या नियंत्रण..मोदी, योगी, रमन से भूपेश तक….
भाजपा के सबसे बड़े नेता और पीएम नरेंद्र मोदी देश विदेश में बखान करते हैँ कि भारत की जनसंख्या उनकी ताकत है उसे वे डेमोग्राफी डिवीडेंड कहते हैँ.. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बताकर निवेशकोँ को निवेश करने आमंत्रित करते हैँ… मोदी की राय है देश की विशाल जनसंख्या “भार नही विकास का आधार” है पर उन्हीं की पार्टी के उप्र के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ बढ़ी जनसंख्या को “विकास में अवरोध” मानकर जनसंख्या नियंत्रण के लिये कठोर नियम बनाने के हिमायती हैँ.. कुछ भाजपा शासित राज्यों में भी समर्थन की मांग जोर पकड़ रही है..क्या यह उप्र के आगामी विस चुनाव की सियासी चाल है….?वैसे हमेशा नेहरू को निशाना बनाने वाले भाजपाई इस बार जनसंख्या वाले मामले में नेहरू को निशाना नहीं बना रहे हैं क्योंकि यदि 1948 में 2बच्चे पैदा करने वाला कानून नेहरू जी ला देते तो मोदी जी पीएम नहीं बन पाते क्योंकि 6भाई बहन हैं, योगीजी सीएम नहीं बन पाते क्योंकि उनके 7भाई बहन है आडवाणी जी उप प्रधानमंत्री नहीं बन पाते उनके 8भाई बहन है……खैर छग के सीएम भूपेश बघेल कहते हैँ कि यही लोग संजय गांघी के जनसंख्या नियंत्रण के फार्मूले का विरोध कर रहे थे..अब इसी मुद्दे का समर्थन कर रहे हैँ….अब छग सरकार की पूर्ववर्ती रमन सरकार की बात कर लें…इसी मसले पर जुलाई 2017में मंत्री मण्डल में लिये गये निर्णय से ‘हम दो, हमारे दो’ वाला परिवार नियोजन को लेकर कई दशकों से चला आ रहा नारा तब छत्तीसगढ़ में प्रभावहीन कर दिया गया था । छत्तीसगढ़ में ही सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को दो से अधिक बच्चे पैदा करने की पाबंदी थी। दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को सरकारी सुविधाओं और वेतन भत्तों के हकदार नहीं होते थे। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के नियम 22 के उपनियम 4 में प्रावधान था कि शासकीय सेवक परिवार कल्याण से संबंधित नीतियों का पालन करेगा। पर रमन मंत्रिमंडल की बैठक शासकीय सेवकों को दो या दो से अधिक बच्चे पैदा करने के अवचार माने जाने वाले प्रावधान को विलोपित करने का निर्णय लिया था । यह फैसला सभी धर्म,जातियों के सरकारी सेवकों पर लागू किया था वैसे तब कांग्रेस भी इसका विरोध कर रही है पर सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ सरकार को इसका निर्णय लेने की क्यों जरूरत पड़ गई थी…? वैसे भाई बृजमोहन अग्रवाल का उस समय तर्क था कि किसी भी सरकारी सेवक का यह मानवाधिकार है कि वे जितने चाहे उतने बच्चे पैदा कर सके इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। इसे किसी जाति/धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। सवाल यह है कि छग की रमन सरकार को 14 साल बाद सरकारी सेवकों तथा मानवाधिकार की याद कैसेआ गईं थी उस समय….
एडीजी सिंह का आरोप…? चर्चा शुक्ला और टुटेजा की…
आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में चर्चा में आए सूबे के निलंबित आईपीएस गुरजीन्दर पाल सिंह पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज हो चुका है, उनके पास से सरकार को अस्थिर करने सम्बंधित कुछ कागजात भी मिले है…. उनका पुराना सर्विस रिकार्ड भी ठीक- ठाक नहीं है…हालांकि उन्होंने हाईकोर्ट में राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैँ… रमन सरकार के 30 हजार करोड़ के नान घोटाला मामले में रमनसिंह तथा उनकी पत्नी को फंसाने का राज्य सरकार का दबाव था….? नहीं फंसाने पर सरकार ने उन्हें इस तरह से प्रताड़ित किया है…अब उनकी बात में कितना दम है… उनके पास इस बात के क्या सबूत है इसका अभी खुलासा नहीं हो सका है….? वैसे नान घोटाला की बात उठने पर फिर आईएएस डॉ आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा का नाम चर्चा में आ गया है, इन दोनों अफसरों को नान घोटाला सामने आने पर रमन सरकार ने बिना काम के मंत्रालय में अटैच कर दिया था, तब की विपक्ष की कॉंग्रेस ने इनकी गिरफ्तारीतथा कड़ी कार्यवाही की मांग भी की थी…पर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ये दोनों सरकार के काफी विश्वसनीय एवं करीबी हो गये हैँ….?डॉ आलोक शुक्ला को तो रिटायर होने के बाद संविदा नियुक्ति देकर स्वास्थ विभाग की जिम्मेदारी दी गई है वहीं अनिल टुटेजा तो सरकार की आंख, नाक तथा कान बने हुए हैं….?
और अब बस
0 लेमरू हाथी प्रोजेक्ट को लेकर राज्य सरकार पर टीका -टिप्पणी का दौर जारी है हालांकि 1595किलोमीटर में यह बनना लगभग तय है..
0कोरोना का कहर नक्सलियों पर भी बरपा है…. तीन हार्ड कोर नक्सली काल के गाल में समा चुके हैं..
0नक्सली रामन्ना के बेटे ने आत्मसमर्पण कर दिया है उसकी मां हार्ड कोर नक्सली सुजाता पामेड़ में अभी भी सक्रिय है…
0निगम /मण्डल में नियुक्ति में आखिर किसकी चली…..