म्यामांर में सैन्य तख्तापलट के बाद प्रतिनिधित्व पर संयुक्त राष्ट्र मानविधाकार परिषद में छिड़ी बहस

जिनेवा : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सोमवार को सत्र शुरू होने पर म्यामांर के प्रतिनिधित्व को लेकर एक बहस छिड़ गई। बहस में पश्चिमी देशों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के साढ़े तीन हफ्तों के सत्र में म्यामांर में मानवाधिकार की स्थिति पर प्रस्तावित चर्चा आगे बढ़नी चाहिए, भले ही म्यामांर खुद इसमें शामिल नहीं हो। लेकिन चीन, फिलीपीन्स और वेनेजुएला ने उसे इसमें शामिल करने पर जोर दिया।

बता दें कि फरवरी में म्यामांर में सैन्य तख्तापलट होने के बाद असैन्य सरकार के प्रतिनिधि के वैश्विक संस्था से स्वदेश लौट जाने के बाद से संयक्त राष्ट्र में म्यामांर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। चीन के राजदूत चेन शु ने कहा, यदि हम संबद्ध देश को बाहर कर देते हैं तो यह निष्पक्ष नहीं होगा।

हालांकि, पश्चिमी देशों के राजदूतों ने जोर दिया कि म्यामांर में मानवाधिकार के हालात पर तुरंत विचार करने की जरूरत है, खासतौर पर कथित मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर। मानवाधिकारों के लिए ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय राजूदत रीता फ्रेंच ने कहा, हम ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जो पहले कभी पैदा नहीं हुई।

बता दें कि म्यामांर में सैन्य तख्तापलट के बाद वहां के नागरिक भारत में आकर शरण ली है। नागिरकों में एक मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। चिन प्रांत के मुख्यमंत्री सलाई लियान लुआइ समेत 9 हजार 247 लोगों ने मिजोरम में शरण ली है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘चिन प्रांत के मुख्यमंत्री अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके सोमवार रात को चंफाई शहर में पहुंचे। उन्होंने कहा कि लुआई समेत आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के 24 सांसदों ने भी मिजोरम के अलग-अलग हिस्सों में शरण ली है। सीमावर्ती राज्य में शरण लेने वालों में से अधिकांश चिन के हैं, इन्हें ‘जो’ समुदाय के रूप में जाना जाता है। इस वंश के लोग मिजोरम के मिजो के समान वंश, जातीयता और संस्कृति को साझा करते हैं।

तख्तापलट के बाद आपातकाल लागू…
गौरतलब है कि 1 फरवरी को सेना द्वारा राष्ट्रपति यू विन मिंट और स्टेट काउंसलर आंग सान सू की को हिरासत में लिए जाने के बाद म्यांमार में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया गया है। इसके बाद सत्ता वरिष्ठ जनरल मिन आंग हलिंग को देश की कमान सौंप दी गई थी।

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