इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पांचवीं बार पीएम पद की शपथ लेने वाले हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों और तीन बार चुनावों में बहुमत न मिलने के बावजूद उन्होंने राजनीतिक गठजोड़ से पीएम पद पा लिया। पांचवीं बार पीएम बनने के लिए उन्होंने अपने विपक्षी बेनी गांत्ज से हाथ मिलाया है।
गांत्ज पूर्व सेना प्रमुख हैं। नेतन्याहू को हराने के लिए उन्होंने दक्षिणपंथी और लिबरल दोनों नीतियों का सहारा लिया। चुनावों के दौरान वे नेतन्याहू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप उठाते रहे। ये भी वादा किया कि वो नेतन्याहू के साथ सरकार नहीं बनाएंगे। अब दोनों नेता कह रहे हैं कि कोरोना काल में देश को स्थिर सरकार की जरूरत है इसीलिए गठबंधन जरूरी है। नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते काफी मजबूत हैं। बेनी गांत्ज भी कई बार भारत को मजबूत लोकतंत्र और उभरती हुई ताकत करार दे चुके हैं। इस्राइल के राजनीतिक विश्लेषक योहानन प्लेसनेर ने इस डील को ‘लोकतांत्रिक युद्धविराम’ बताया था।
एक साल में तीन बार चुनाव…
बता दें कि इस्राइल में एक साल में तीन बार आम चुनाव हो चुके हैं। नेतन्याहू की लिकुड पार्टी और गांत्ज की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी में से किसी को भी बहुमत नहीं मिल पाया। अब दोनों मिलकर सरकार बना रहे हैं। नेतन्याहू पांचवीं बार देश की बागडोर संभालेंगे। जबकि वो चौथी बार पीएम पद की शपथ लेंगे।
इस्राइल कोरोना से निपटने में तो काफी हद तक सफल रहा है। लेकिन, उसके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। देश में लगभग 10 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं। नेतन्याहू ने चुनाव में वादा किया था कि वेस्ट बैंक के उन इलाकों का विलय करेगें, जहां यहूदी बस्तियां बसाई गईं हैं। गठबंधन सरकार में भी इस पर सहमति बनी है। एक जुलाई से विलय शुरू होगा। इसके चलते फिलिस्तीन से संघर्ष बढ़ेगा। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक भी यह विलय गैरकानूनी है। नेतन्याहू के दौर में राष्ट्रवादी पार्टियों का सत्ता में दबदबा था। बेनी उदारवादी माने जाते हैं। ऐसे में गठबंधन सरकार में भविष्य की नीतियों पर कई तरह के विवाद होने की आशंका है।
भारत का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी है इस्राइल …
प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू ने एक-दूसरे के देशों के दौरे करके करीबी संबंध स्थापित किए हैं। नेतन्याहू ने अपने चुनाव प्रचार में पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के पोस्टरों का भी इस्तेमाल किया था। व्यापार, निवेश, आईटी, हाई टेक्नोलॉजी और रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंध से दोनों देशों को लाभ हुआ है। इस्राइल भारत का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी है। किसी भी नई सरकार से इन संबंधों के प्रभावित होने की संभावना नहीं है।