शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक )
चार राज्यों तथा एक केंद्र शासित राज्य के चुनावों में पश्चिम बंगाल मे टीऍम सी, असम में भाजपा, केरल में आई डीएफ, तमिलनाडु में डीऍम के +कांग्रेस तथा पंडिचेरी में एनडीए की सरकार बनने का रास्ता साफ होता दिख रहा है.. पर इन चुनावों में सबसे दिलचस्प चुनाव परिणाम पश्चिम बंगाल के नतीजे आ रहें हैँ.. विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा होने का दावा करने वाले, विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता होने की बात करने वाले, राजनीति के चाणक्य कहे जाने वालों को सबक सिखाकर एक सामान्य सा जीवन जीने वाली ममता बेनर्जी को तीसरी बार सत्ता की चाबी जनता ने सौंप दी है… भाजपा की केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित कई केंद्रीय मंत्रियोँ, मुख्य मंत्री योगीनाथ, शिवराज सिंह चौहान आदि का भी प्रचार प्रसार को जनता ने अमान्य कर दिया, वहां की जीत ममता की नैतिक जीत मानी जा सकती है। अब साफ है, “दीदी ओ दीदी “की वह आवाज सुनाई नहीं देगी जिससे कान पक गए थे। अब मोटा भाई का दावा 200 सीट जीतने का दावा भी खोखला साबित हो गया है। बंगाल में खेला ऐसा खेला गया उसकी समीक्षा राजनीति के पँडित करेंगे। ममता जी ने एक मात्र सीट नन्दीग्राम से चुनाव लड़ा अगर वह दोहरी सीट से चुनाव लड़ती तो दो नाव की सवारी में फंस कर बाकी सीटों पर वह जादू नहीं दिखा पाती जो अब दिखा दी अभी नन्दीग्राम में शुभेंन्द्रू अधिकारी और ममता जी में अंतिम मतगणना चल रही है। नतीजा जो भी हो ममता बनर्जी ने बंगाल जीत कर दूसरा पैर दिल्ली के लिए जमा लिया है। बंगाल में भाजपा हिंदू कार्ड औंधे मुंह गिरा है वही मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप भी मतदाता ने नाकार दिया है। बंगाल और यूपी में अंतर है। बंगाल का ब्राह्मण, मुस्लिम होटल में बनी मछली भात,या बिरियानी खाने में कोई गुरेज नहीं करता।
भाजपा के विकास के सारी बातें बंगाल में विश्वास के तराजू में खरे नहीं उतरे, भाजपा ने चुनाव में हर फार्मूले पर पूरी ताकत लगाई। लेकिन जुझारू ममता बनर्जी के हठ औऱ आत्मविश्वास के सामने परस्त हो गई।
लग रहा है भाजपा ने बड़ी फौज और नेताओं को रोड शो जमा कर कराया लेकिन,बंगला अपनी विपक्ष की भूमिका पर संतोष करना पड़ेगा। जय श्री राम का नारा जनता को प्रभावित नहीं कर पाया,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की बेटी हैं ममता। जब पिता ने अंग्रेजों के सामने हार नहीं मानी तो उनकी बेटी अंग्रेजों के दलालों के सामने कैसे हार मान ले ती? सामने चुनाव आयोग था,ईडी था,सीबीआई था ,केंद्र सरकार था,मीडिया थी, पर दीदी अकेली थी। सूती साड़ी और हवाई चप्पल के साथ वो जनता के बीच थी। बंगालियों की अपनी ममता। न झूठे वादे न आसमान से तारे तोड़ लाने का भाषण।भाषण सुरक्षा की ,रोटी की ,वंचित, अल्पसंख्यक सबको सुरक्षा की,एनआरसी की विरोध की।दीदी पर हमला हुआ।पैर टूटा।पर इरादा नहीं टूटा।व्हीलचेयर में नाप लिया बंगाल को।अब दीदी की ओर देश देख रहा है।2024 में जो लोकसभा चुनाव होना है उसमे निश्चित ही ममता बेनर्जी विपक्षी एकता के लिये एक मील का पत्थर साबित होंगी.. मोदी के खिलाफ कौन….? निश्चित ही ममता एक बड़ा नाम बनकर उभरा है. यह ठीक है कि भाजपा पिछले चुनाव में 3सीट से बहुत आगे निकलने में सफल रही वहीं कांग्रेस पिछली बार 44सीटों पर जीत तय की थी पर इस बार कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन 1सीट पर दिख रहा है.. लगता है कि इन दोनों पार्टियों के मत भी ममता की पार्टी को चला गया.।