शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार ) कांग्रेस के कुछ नेताओं के बगावती सुर फिर चर्चा में है। बिहार विधानसभा चुनाव के समय इन्हीं नेताओं की चिट्टी चर्चा में रही तो 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय फिर मोदी की तारीफ तथा कांग्रेस नेतृत्व तथा पार्टी के खिलाफ बयानबाजी के आखिर क्या मायने हैं?
कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल जिनके उलजलूल बयानों से कांग्रेस गाहे-बगाहे परेशानी में फंसती रही है, इन्होंने दिल्ली में एक बार लोकसभा सीट को छोड़कर कभी भी जमीनी राजनीति नहीं की जिन्होंने राजनीति की जगह अपनी वकीली को अधिक महत्व दिया आज वो भगवा पगड़ी पहनकर कांग्रेस को सेक्युलिरिज्म सिखा रहे हैं? दूसरे नेता आनंद शर्मा है जिन्होंने कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा लेकिन वीरभद्र जैसे वरिष्ठ नेता को सदा राजनीति का पाठ पढ़ाने का अवसर नहीं चूकते हैं…। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से प्रदेश में राज्यसभा सांसद से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक बनाया वे आज पश्चिम बंगाल में राजनीति का ककहरा सिखा रहे हैं। उन्हें केरल में मुस्लिम लीग से गठंबधन नजर नहीं आ रहा है लेकिन वामदलों का आईएसएफ को सीट देना अखर रहा है।
एक और नेता है गुलाम नबी आजाद जिन्होंने अपनी अभी तक की पूरी जिंदगी नेहरू और गांधी परिवार की कृपा पर निकाल दी लेकिन आजकल इनके अंदर लोकतंत्र जाग रहा है, उन्हें कांग्रेस का वशंवाद नजर आ रहा है, गुजरात दंगों के समय “साहब “इनको शैतान नजर आ रहे थे पर अब एक राज्यसभा सीट के लिए भगवान नजर आ रहे हैं। राज्यसभा केन्द्रीय मंत्री, कश्मीर के मुुखिया, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष उन्हें गांधी परिवार ने ही बनाया था…? अन्य नेता राज बब्बर, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा आदि नेताओं के विषय में तो चर्चा ही बेकार है। क्योंकि इनकी राजनीति हैसियत का सभी को अंदाज है। ये जमीनी नेता तो है नहीं… वैसे कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है पर उसे भाजपा से भी कुछ सीखना चाहिये…. जिसने वक्त पडऩे पर जसवंत सिंह, कल्याण सिंह जैसे नेताओं को निकाल बाहर किया था….।
कर्ज का मर्ज
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने अपने 21 माह के कार्यकाल में 30 हजार 632 करोड़ कर्ज लिया है, कोरोना के चलते केन्द्र सरकार ने छग सरकार को जीएसटी तथा अन्य मद का हिस्सा नहीं दिया, पिछली भाजपा सरकार ने 15 साल तक राज्य में सरकार चलाई तथा विरासत में भूपेश बघेल सरकार पर 41 हजार 695 करोड़ का कर्ज छोड़ा था। इधर प्रदेश की भूपेश सरकार को केन्द्र से करीब 18 हजार करोड़ का भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है। वर्तमान में राज्य सरकार को 5330 करोड़़ से अधिक का भुगतान कर्ज के एवज में बतौर ब्याज भुगतान करना पड़ रहा है। भाजपा 15 वर्षों तक शासन चलाने वाली भाजपा ने जब 2003 में सत्ता सम्हाली थी तब उन्हें विरासत में कोई कर्ज नहीं मिला था। अब भाजपा ने भूपेश सरकार को कर्ज लेने पर निशाना बनाना शुरू किया है। कांग्रेस की भूपेश सरकार का कहना है कि केंद्र से उनके हिस्से की रकम मिल जाती तो उन्हें कर्ज लेने की जरूरत नहीं थी फिर स्काईवॉक, मोबाईल वितरण, कांक्रीट के जंगल खड़ी करने वाली भाजपा सरकार ने कर्ज लिया था हम तो किसान की धान खरीदी, बोनस, गरीब-गुरबे, ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधारने कर्ज ले रहे हैं। खैर अब मुफ्त अनाज वितरण, मुफ्त विवाह, मुफ्त इलाज, मुफ्त पढ़ाई से निम्न वर्ग की बेफिक्री बढ़ गई है, राज्य सरकार को चाहिये कि रोजगार के अवसर बढ़ाए…
राजभवन से मुख्य सचिव…
छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव बनने का रास्ता राजभवन से भी गुजरता है, ……
राजभवन के 2 सचिव अभी तक प्रदेश के मुख्य सचिव बन चुके हैं वहीं रायपुर के कलेक्टर तो मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित मुख्यसचिव भी बन चुके हैं।
छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों में राज्यपाल के सचिव पद को डमी माना जाता है, इसीलिए राजभवन में कोई सचिव बनना नहीं चाहता वहीं सचिव को राजभवन के साथ ही अन्य विभाग की भी जिम्मेदारी दी जाती है, तर्क दिया जाता है कि राजभवन में सचिव के पास खास काम नहीं होता पर ऐसा है नहीं… राजभवन के वर्तमान सचिव अमृत कुमार खलखो को कृषि विभाग की भी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है खैर छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्य सचिव अमिताभ जैन, राजभवन में 27 सितंबर 2013 से 15 जुलाई 14 तक सचिव रह चुके हैं तो पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुमार कुजूर 15 जुलाई 14 से 16 मई 2016 तक राजभवन में सचिव रह चुके है्ं। यानि राजभवन से भी मुख्य सचिव का द्वार खुलता है इधर रायपुर में कलेक्टर रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी तो छग के पहले मुख्यमंत्री बने थे तो रायपुर के ही कलेक्टर रहे नजीब जंग बाद में दिल्ली के राज्यपाल बने थे तो रायपुर में कलेक्टर रहे सुनील कुमार, राजेन्द्र प्रसाद मंडल भी मुख्य सचिव बने तो रायपुर में ही कलेक्टर रहे अमिताभ जैन वर्तमान में मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत है तो कभी रायपुर में एडीशनल कलेक्टर पदस्थ रहे शिवराज सिंह भी छग के मुख्य सचिव बन चुके हैं।
सुरता पवन दीवान के …
छत्तीसगढ़ का गांधी कहे जाने वाले भावुक किस्म के राजनेता, फक्कड़, धर्म संस्कृति के अध्येता पवन दीवान सभी को छोड़कर चले गये पूरे छत्तीसगढ़ में उनकी पहचान थी, भागवत पर छत्तीसगढ़ी में प्रवचनकर्ता के रूप में गांव गांव में उनकी पहचान थी, मान था, संवेदनशील इतने की छोटी सी छोटी बात भी उनके दिल को छू जाती थी, वे यशस्वी कवि भी थे। हिन्दी, छत्तीसगढ़ी की उनकी कविता छग ही नहीं पूरे देश में चर्चा में रही। ऐसा व्यक्ति राजनीति के रंगढंग में कैसे रच बस सकता था? वैसे राजनीति में वे असहज ही रहे और छग निर्माण के बाद तो वे राजनीति से एक तरह से अलग-थलग कर दिये गये। पावन सलिला महानदी के किनारे ब्रम्हचर्य आश्रम में नदी की कल-कल ध्वनि से ताल मिलाते हुए उनके उन्मुक्त ठहाकों से संपूर्ण प्रदेश गुंजायमान रहता था। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में उनके भागवत प्रवचन पर जिस तरह जनसमूह एकत्रित होकर मुग्ध होकर रसस्वादन करता था, वह किसी से भी छिपा नहीं है। छत्तीसगढ़ का हर व्यक्ति पवन दीवा न को पहचानता था और उनके स्वभाव से भी परिचित था।
छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाले राजिम (महानदी पैरी और सोंढूर नदी का जीवंत संगम) के पास स्थिति किरवई गांव में एक जनवरी 1945 को प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार में जन्मे पवन दीवान की प्रारंभिक शिक्षा फिंगेश्वर में हुई। मेरा भी सौभाग्य रहा कि जहां दीवान जी ने प्राथमिक शिक्षा ली उसी गांव में मेरा भी जन्म हुआ था। अक्सर दीवान जी मुझसे कहा कहते थे कि ‘मोर गांव के पास ही तेँ ह जनम ले हस’। बहरहाल हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में एम.ए. करने वाले पवन दीवान जब संस्कृत कालेज रायपुर में पढ़ते थे तब आचार्य रजनीश भी वहां व्याख्याता थे। छात्र जीवन से ही साहित्य सृजन करने वाले दीवानजी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में कविता भी करने लगे थे वैसे उन्होंने कुछ कविताएं अंग्रेजी में भी लिखी थी। कविता करते करते वे भागवत प्रवचन में लग गये और छत्तीसगढ़ की हालत,दलितों की पीड़ा और अन्यत्र कारणों से व्यथित होकर उन्होंने स्वर्गधाम मैनपुरी ऋषिकेश के स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा लेकर वैराग्य के मार्ग पर बढ़ चले। उनका नाम भी दीक्षा के बाद स्वामी अमृतानंद हो गया हालांकि वे पवनदीवान के नाम से पहचाने जाते थे। पता नहीं कब और कैसे उनके नाम के साथ संत और कवि भी आगे जुड़ गया। वे छत्तीसगढ़ पृथक राज्य के लिए भी प्रयास करते रहे.
आपातकाल के समय उन्होंने ‘पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी’ से भी रायपुर से चुनाव लड़ा उन्हें सफलता तो नहीं मिली पर ‘पृथक छत्तीसगढ़ राज्य’ के लिए अलख जगाने का बीज उन्होंने रोपित कर ही दिया। स्व. खूबचंद बघेल से लेकर स्व. चंदूलाल चंद्राकर के सतत् संपर्क में रहकर उन्होंने ‘पृथक छत्तीसगढ़’ के लिए जमकर संघर्ष भी किया। उनके बारे में एक नारा बहुत उछला था ‘पवन नहीं वह आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है’..
छत्तीसगढ़ की पीड़ा और लगातार हो रहे शोषण पर उन्हें काफी पीड़ा होती थी उन्होने जनजागरण तो किया ही साथ ही कविता को भी माध्यम बनाया। उनकी एक कविता…
छत्तीसगढ़ में सब कुछ है
पर एक कमी है स्वाभिमान की
मुझसे सही नहीं जाती है
ऐसी चुप्पी वर्तमान की….।
छत्तीसगढ़ के शोषकों को वे कविता के माध्यम से चेतावनी भी देने में पीछे नहीं रहते थे। वे छत्तीसगढ़ महतारी तथा यहां के सीधे सादे मानस के शोषण से भी व्यथित होकर अपनी व्यथा कविता के माध्यम से कुछ यूं बयां करते थे।
घोर अंधेरा भाग रहा है
छत्तीसगढ़ अब जाग रहा है
खौल रहा नदियों का पानी
खेतों में उग रही जवानी
गूंगे जंगल बोल रहे हैं
पत्थर भी मुंह खोल रहे हैं
धान कटोरा रखने वाले
अब बंदुक तोल रहे हैं…
वैसे दीवान जी 1977 के बाद राजनीति में कदम रखा। उन्होंने राजिम विधानसभा से अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री पं.श्यामाचरण शुक्ल को पराजित किया और म.प्र. के जेलमंत्री भी बनाये गये थे। तब कैलाश जोशी म.प्र. के मुख्यमंत्री थे। बाद में अर्जुनसिंह के प्रयास से कांग्रेस में शामिल हो गये। 1989 में उन्हें महासमुंद लोकसभा से कांग्रेस की टिकट दी गई पर वे विद्याचरण से मात्र 12894 मतों से पराजित हो गये। उसके बाद 91 तथा 96 में वे चंद्रशेखर साहू को पराजित कर सांसद बने। पर 98 में यही से चंद्रशेखर साहू से पराजित भी रहे। बाद में इनकी लोकसभा से कांग्रेस ने पं. श्यामाचरण शुक्ल को प्रत्याशी बनाया था। इसी के बाद वे राजनीति से स्वयं को पृथक करने लगे। बाद में कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा की टिकट की चर्चा होती रही पर इन्हें टिकट से वंचित रखा गया। संवेदनशील दीवानजी ने फिर भागवत कथा के साथ पृथक छत्तीसगढ़ आंदोलन अभियान में सक्रिय हो गये। बाद में कांग्रेस-भाजपा में आने जाने का दौर चलता रहा। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य तो बना उन्हें गौसेवक आयोग का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा भी दिया गया पर पृथक राज्य के लिए आंदोलनकर्ताओं में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पवन दीवान को वह मुकाम तो कम से कम नहीं मिला जिसके वे निश्चित तौर पर हकदार थे। उन्होंने माता कौशल्या का मंदिर बनाने तथा श्रीराम की मां कौशल्या छत्तीसगढ़ की महतारी थी इस रूप में छत्तीसगढ़ की पहचान बनाने की मुहिम में लगे थे। जयपुर में बन रही मां कौशल्या की मूर्ति छत्तीसगढ़ लाने के लिए भी प्रयासरत थे। हालांकि कल ही उनके समाधिस्थ होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने राजिम में मां कौशल्या के मंदिर की स्थापना की घोषणा कर दीवानजी के एक सपने को पूरा करने की कोशिश की है। वैसे यह तय है कि अब राजिम प्रयाग के साथ राजिम कुंभ (कल्प) मां कौशल्या का मंदिर सहित संत कवि पवन दीवन की समाधि भी छत्तीसगढ़ ही नहीं प्रदेश से बाहर से आने वालों के लिए एक दर्शनीय स्थल के रूप में उभरेगी यह तय है l
और अब बस…..
0 रेल यात्री स्टेशन मे कम आएं इसलिये प्लेटफार्म टिकट 50 रुपए करने की खबर…. रियायत तो पहले ही खत्म कर दी गई है फिर भीड़ कहां…..
0बिलासपुर हाईकोर्ट के आसपास किस आईएएस ने बहुत जमीन खरीद ली है….?