म्यांमार में सेना के तख्तापलट के खिलाफ लोगों ने बर्तन बजाकर किया विरोध, आंग सान सू की की आजादी की मांग के नारे लगाए।

म्यांमार  :  म्यांमार में सेना के तख्तापलट के खिलाफ देश की जनता सड़कों पर उतर आई है। इन विरोध प्रदर्शनों में जनता के साथ अब मेडिकल स्टाफ भी शामिल हो गया है। देश के 30 शहरों के 70 अस्पतालों में चिकित्सा कर्मचारियों ने बुधवार को काम करना बंद कर दिया है। देश के सबसे बड़े शहर यंगून में बड़ी संख्या में लोगों ने कारों के हॉर्न और बर्तन बजाकर सैन्य तख्तापलट का विरोध किया।

वहीं, इंटरने सेवा प्रदाता कंपनियों ने फेसबुक बंद कर दिया है। लगातार बढ़ते विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर ये फैसला लिया गया है।

पहला सार्वजनिक विरोध…
देश में सैन्य तख्तापलट के विरोध में संभवत: यह पहला सार्वजनिक विरोध है। तख्तापलट का विरोध कर रहे मेडिकल समूह ने कहा कि सेना ने कोरोना महामारी के दौरान एक कमजोर आबादी के ऊपर अपने हितों को थोपा है। कोरोना से म्यांमार में अब तक 3,100 से अधिक जानें जा चुकी है।

समूह ने कहा, हम अवैध सैन्य शासन का आदेश नहीं मानेंगे। उधर, सैन्य तख्तापलट का विरोध कर रहे यंगून और पड़ोसी क्षेत्रों में हुए प्रदर्शन के दौरान हिरासत में ली गई प्रमुख नेता आंग सान सू की की अच्छी सेहत की कामनाएं की गईं और आजादी की मांग के नारे लगाए गए।

बताया गया कि म्यांमार की संस्कृति में ड्रम बजाने का अर्थ शैतान को बाहर भेजना होता है। देश के कई लोकतंत्र समर्थक समूहों ने तख्तापलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शित करने के लिए लोगों से मंगलवार रात आठ बजे शोर मचाने का आव्हान किया था।

सविनय अवज्ञा की अपील
नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी के नेता विन तीन ने कहा, हमारे देश पर तख्तापलट का अभिशाप है और इसी लिए हमारा देश गरीब बना हुआ है। मैं अपने देश और नागरिकों भविष्य को लेकर चिंतित हूं। उन्होंने लोगों से सविनय अवज्ञा के जरिए सेना की अवहेलना करने की अपील की।

नजरबंद सांसदों को घर भेजना शुरू
एनएलडी के प्रवक्ता की तोए ने बताया कि सेना ने राजधानी के सरकारी आवासीय परिसर में नजरबंद रखे गए सैकड़ों सांसदों पर लगे प्रतिबंध मंगलवार को हटाने आरंभ कर दिए और नई सरकार ने उन्हें अपने घर जाने को कहा है।

उन्होंने बताया कि सू की का स्वास्थ्य अच्छा है और उन्हें एक अलग स्थान पर रखा गया हैं, जहां उन्हें कुछ और वक्त तक रखा जाएगा। हालांकि उनके इस बयान की पुष्टि नहीं हो सकी है।

चीन की चाल : सुरक्षा परिषद को निंदा से रोका
म्यांमार संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में एक आपात बैठक हुई जिसमें सैन्य तख्तापलट के बारे में साझा बयान को लेकर सहमति नहीं बन पाई। चीन ने एक और चाल चलते हुए म्यांमार में हुए तख्तापलट के मुद्दे पर यूएनएससी को निंदा करने से रोक दिया। साझा बयान के लिए चीन के साथ रूस ने भी फिलहाल और अधिक समय मांगा है। वार्ता अभी आगे जारी रहेगी।

बैठक में मौजूद एक राजनयिक ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बंद दरवाजे हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग को लेकर बताया कि बैठक में म्यांमार के रक्तहीन तख्तापलट के बाद सरकार की बहाली पर चर्चा हुई। इसमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार और देश की प्रमुख नेता आंग सान सू की की रिहाई पर भी बात हुई।

सुरक्षा परिषद की यह बैठक भारतीय समयानुसार बुधवार तड़के हुई जिसमें वीटो शक्ति रखने वाले स्थायी सदस्य चीन के दखल के चलते साझा बयान को लेकर सहमति नहीं बन पाई।

हालांकि वीटो शक्ति वाले अन्य देश ब्रिटेन ने अवैध रूप से म्यांमार में हिरासत में लिए गए नेताओं और अधिकारियों को तुरंत रिहा करने की मांग की। मसौदे में यह मांग थी कि देश में एक साल का आपातकाल निरस्त किया जाए और सभी पक्षों के लिए लोकतांत्रिक मानदंडों का पालन सुनिश्चित हो। मसौदे में प्रतिबंधों का जिक्र नहीं है।

अमेरिका ने की समीक्षा, कहा- यह सैन्य तख्तापलट ही था
अमेरिका ने एक बार फिर म्यांमार में निर्वाचित सरकार को हटाने की निंदा करते हुए कहा है कि यह एक सैन्य तख्तापटल है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका आंग सांग सू की समेत तमाम नेताओं की गिरफ्तारी से बेहद चिंतित है। उन्होंने कहा कि घटना की समीक्षा के बाद हमारा आकलन है कि निर्वाचित सरकार के प्रमुख को हटाना सैन्य कार्रवाई या सैन्य तख्तापलट के समान है।

स्वदेश वापसी से भयभीत हैं रोहिंग्या मुस्लिम
बांग्लादेश के शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों ने म्यांमार में तख्तापलट की निंदा करते हुए कहा कि अब वे अपने देश लौटने को लेकर पहले से भी अधिक डरे हुए हैं।

म्यांमार में 2017 में उग्रवाद के खिलाफ सैन्य अभियान के दौरान सामूहिक दुष्कर्म, हत्या और गांवों को जलाने की घटनाएं हुई थीं, जिसके बाद 7,00,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को पड़ोसी बांग्लादेश जाना पड़ा था। उन्होंने कहा कि हम लोकतंत्र और मानवाधिकार चाहते हैं, हमें हमारे देश में यह नहीं मिलने की चिंता है।

 

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