नया चराग जब भी हम जलाते हैं राणा.. हमें हवाओं के किस्से सुनाए जाते हैं…

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार ) 

शराब दुकाने 28 अप्रैल तक बंद रहेगी, छत्तीसगढ़ में पहली बार करीब एक माह से अधिक समय तक शराब दुकाने बंद रखने का निर्णय लिया गया है। शराबी परेशान हैं उन्हें परेशानी शराब दुकाने बंद होने से तो है ही साथ ही ब्लेक में महंगी शराब मिलने से है। पहले ठेकेदार शराब बेचते थे फिर डॉ. रमन सिंह के समय सरकारी नुमाइंदे शराब बेंचने लगे फिर सरकार बदली और शराबबंदी का वादा करने वाली भूपेश बघेल सरकार भी डॉ. रमन सरकार की तर्ज पर शराब बेचने लगी। शराब बेचने सरकारी कमेटी बनती है फिर शराब नहीं बेचने को लेकर कमेटी बनती है। इन कमेटियों की हालत, इनकी रिपोर्ट की लेटतीफी कोई नई बात नहीं है। कोरोना के कारण लॉक डाऊन के प्रारंभिक दौर में 2 लोगों की शराब के नाम पर स्प्रीट पीने से मौत के बाद ही आदतन शराबियों के हितार्थ शराब दुकानें खोलने की चर्चा उठी थी पर शराब दुकानें नहीं खोली गई। सरकार ने इस बार 5200 करोड़ आय का लक्ष्य रखा है और एक माह में 430 करोड़ का नुकसान हो चुका है .वैसे राज्य सरकार यदि शराबबंदी सही में प्रदेश में करना चाहती है तो यह काल परीक्षण तथा परिणाम के लिए अहम साबित हो सकता है। पर सरकार शराबबंदी करेगी इसको लेकर संदेह है। राजस्व प्राप्ति का एक प्रमुख आधार है शराब। बहरहाल सरकारी शराब दुकाने बंद है और लोगों को महंगी कीमत पर कुछ खास जगह शराब उपलब्ध भी है। जब छत्तीसगढ़ में बनी शराब ही सुलभ है तो म.प्र. की शराब लेकर बेचने का क्या तुक है। इसीलिए म.प्र. की शराब बिक्री पर रोकने पुलिस की विशेष रूचि है। सत्ताधारी दल के एक युवा नेता कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने लगाये गये लॉकडाऊन में शराबियों के लिए मसीहा बनकर उभरे हैं जाहिर है कि पुलिस का भी सहयोग है इसलिए तो राजधानी में शराब ब्लैक में उपलब्ध है। मुझे याद है कि रायपुर जिले में आईपीएस पूरन बत्रिया बड़े अफसर होते थे। उनका मौखिक आदेश होता था कि ठंड और बरसात में शराब खानों, जिस्मफरोशी के अड्डों में दबिश नहीं दी जाए क्योंकि वहां कड़ाई से लोग इधर उधर मुंह मारेंगे और समाज में इसका बुरा असर होगा… पर भीषण गर्मी अप्रैल मई के महीने में लॉकडाऊन के काल में ब्लैक में शराब की बिक्री के पीछे जनसहयोग की भावना है क्या….

1760 से शराब बिक्री
हो रही है इंडिया में      

इतिहास इस बात का गवाह है कि युद्ध में जितने सैनिक शहीद हुए हैं उससे अधिक लोग शराब पीकर या दुर्घनाओं में असमय ही दुनिया से कूच कर गये हैं। दरअसल शराब पीकर एक व्यक्ति की नहीं एक परिवार की मौत होती है। इस्ट इंडिया कंपनी के समय भारत में शराब की दुकाने प्रारंभ हुई थी… पर अब तो सरकार ‘शराब’ को आय का साधन मानती है।
इतिहास की परतें खोलें तो प्लासी युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी थी इस युद्ध की जीत के बाद इस्ट इंडिया कंपनी का एक अफसर फ्रांसिस बेकन भारत आया, जिसने बंगाल लूटने में कंपनी की सहायता की। उसी ने भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरातल पर वार करने सन 1760 में बंगाल में एक शराब ठेका शुरू कराया। तब शराब ठेकेदार ने बताया कि भारत में शराबपीना माने धर्मभ्रष्ट करना माना जाता है। बाद में उसने बंगाल में कई दुकाने खुलवा दी, पहले अंग्रेज शराब पीते थे, फिर बहकावे में आकर भारतीय भी शराब पीने लगे lसन 1832 में भारत में 350 शराब दुकानें भारत में थी। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो वह बढ़कर 1500 हो गई और आज बढ़कर करीब 24 हजार 400 के आसपास शराब दुकानें हो गई है। जबकि गुजरात, बिहार में शराब बंदी है। यह तो अधिकृत दुकानें है पर शराब कोचियों, चखना सेंटरों की भारत में भरमार है। ‘बार’ तो लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। गली-कूचों में शराब की बिक्री जारी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 100 लोगों में औसतन 34 लोग आदतन शराबी हैं…।

कोमाखान और नामकरण       

महासमुंद जिले के बागबाहरा के करीब एक जमींदारी थी कभी कोमाखान….. कोमाखान, सुअरमारगढ़ की बसाहट वाला गांव है। लगभग 300 साल पुरानी गोंडवंश की जमींदारी के नामकरण का भी रोचक इतिहास है।
कहा जाता है कि 17 वीं शताब्दी के आरंभिक काल में दक्षिण भारत के निजाम अब्दुल हसन ने सुअरमारगढ़ पर हमला किया, उनकी सेना में कोमा नामक पठान भी था। हमले में असफल होने पर अब्दुल हसन को तो वापस होना पड़ा पर कोमा पठान घायल होने के कारण वहीं रह गया लोगों ने उसकी जान बचा ली, कोमा वहीं का होकर रह गया। उसने एक आदिवासी लड़की से शादी भी कर ली, वह पास ही जंगल में घर बनाकर रहने लगा। कुछ और लोग भी आसपास बस गये। लोग कहते थे कि ‘कोमाखान’ से मिलने जा रहा है। बस… धीरे धीरे उस जगह का नाम कोमाखान पड़ गया यह करीब 1740 सन की बात है। कहा जाता है कि कोमाखान ने इच्छा प्रकट की थी कि जब उसकी मौत हो तो उसे हिन्दू-मुसलमान दोनों रीति के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाए पर ऐसा नहीं हो सका और उसे बडे तालाब (मोती सागर) के पास दफना दिया गया l उसकी मौत के करीब 100 साल बाद 1856 में कोमाखान के तत्कालीन जमींदार ठाकुर उमराव सिंह ने पानी की कमी के चलते मोतीसागर तालाब का विस्तार करना चाहा तो कोमा पठान की कब्र हटाना जरूरी था। तब सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि कोमाखान की इच्छानुसार कब्र से अस्थियां निकाली जाए.. बाद में उनका हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार किया गया और भस्म को प्रयाग में विसर्जित कराया गया। इस अवसर पर भंडारा भी कराया गया। इसके बाद तालाब का विस्तार करके वहां सरई (साल) के खंबे की प्राण प्रतिष्ठा की गई जो आज भी कोमाखान की याद तथा उसकी हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति की एकता का मिसाल कायम करता प्रतीत होता है।

छतीसगढ़िया बेल्जियम शेफर्ड नस्ल के डॉग..        

पुलिस मुख्यालय से स्वीकृति के बाद छग में अक्टूबर 19 के दौरान बेल्जियम शेफर्ड प्रजाति के कुत्तों का प्रजनन कराया गया और 22 पिल्लों ने जन्म लिया। इन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है। ताकि नक्सल क्षेत्रों सहित अन्य अपराधिक मामलों की विवेचना में इनका उपयोग किया जा सके। ज्ञात रहे कि इस प्रजाति के डॉग अत्यंत बुद्धिमान, सतर्क संयमी माने जाते हैं। इनकी सूंघने की शक्ति काफी तेज होती है इसलिये नक्सली क्षेत्रों में विस्फोटकों की तलाश में इनका उपयोग हो सकता है। छग सशस्त्र बल सातवीं बटालियन भिलाई के कमांडर तथा रायपुर-बिलासपुर के एडीशनल एसपी रह चुके विजय अग्रवाल की मानें तो इन सभी डाग की कीमत 17 लाख के आसपास है। छग में प्रजनन कराकर इतनी बचत तो की गई साथ ही यहीं जन्में इन्हें शुरू से प्रशिक्षण देने के कारण यह मोर्चे में कारगर साबित होंगे। इनके नाम भी छत्तीसगढिय़ा है यानि भूरी, गुड्डू, गेंदू, चोवा, दुलार और सुनीता आदिl ज्ञात रहे कि पहले हैदराबाद और चंडीगढ़ से 73 डाग खरीदकर उन्हें प्रशिक्षित कर राज्य पुलिस और माओवादी मोर्चे पर तैनात किया गया है।

और अब बस…

0 प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर देश के पहले प्रधानमंत्री थे जो प्रधानमंत्री बनने के पहले केंद्र या किसी राज्य में मंत्री नहीं रहे थे।
0 कोरोना के मामले में छत्तीसगढ़ की उपलब्धि के लिए भूपेश बघेल और उनकी टीम बधाई की पात्र हैं।
0 पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह के सेलरी एकाउंट को बहाल करने का आदेश उच्च न्यायालय ने दिया है।
0 कोटा (राजस्थान) पढऩे गये बच्चों के साथ ही काम की तलाश में गये मजदूरों की छग वापसी का निर्णय सराहनीय हैl
O लगभग सभी दुकानें खुल गईं है अब शराब दुकान खुलने का ही इंतजार है…

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