सिलसिला जख्म-जख्म जारी है, ये जमीं दूर तक हमारी है… इस जमीं से अजब ताल्लुक है, जर्रे-जर्रे से रिश्तेदारी है…

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )           

प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सत्यजीत रे ने दूरदर्शन के लिए मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘सद्गति’ पर एक लघु फिल्म 1981 में बनाई थी। इसकी शूटिंग छत्तीसगढ़ में भी हुई थी। एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि 25 अप्रैल 1982 को ‘सद्गति’ के प्रदर्शन के साथ ही दूरदर्शन का रंगीन प्रसारण भी प्रारंभ हो गया था।
छत्तीसगढ़ में फिल्म ‘सद्गति’ का छायांकन छतौना (मंदिर हसौद) पलारी, (बलौदाबाजार), कोशवा मोंगरा (महासमुंद) आदि गांवों में हुई थी। इसका उल्लेख महेंद्र मिश्र ने ‘सत्यजीत रे, पंथेर पांचाली और फिल्म जगत’ नामक पुस्तक में किया है। वैसे फिल्म में छग के भैयालाल हेड़ऊ और बतौर बाल कलाकार ऋचा मिश्रा ने भी अभिनय किया था।
मुंशी प्रेमचंद ने हिन्दू समाज में ब्राम्हणों और दलितों की स्थिति दिखाने के लिए ही संभवत: ‘सद्गति’ कहानी लिखी थी। इसमें दलितों के प्रति पुरोहित का शोषक रवैया, अमानवीय सलूक और घृणित नजरिया दिमाग को सन्न कर देता है पर विचार शून्य नहीं। जहां दलितों की नजर में ब्राम्हण, देवतुल्य, दिवाशक्ति से संपन्न, पवित्र एवं समझदार होता है वहीं ब्राम्हण की नजर में दलित अछूत, घृणित अघोरी, भ्रष्ट, कामचोर और मूर्ख होता है। इस कहानी पर सत्यजीत रे ने ‘सद्गति’ फिल्म का निर्माण किया था।
1981 में रायपुर जिले के महासमुंद (तब महासमुंद जिला अस्तित्व में नहीं आया था) से 10 किलोमीटर दूर केशवागांव में फिल्म का कुछ हिस्सा शूट किया था। इस फिल्म में प्रसिद्ध अभिनेता स्व. ओमपुरी ने भी प्रमुख भूमिका अदा की थी। वे कुछ समय इसी गांव के एक घर और खलिहान में रहे भी…। दरअसल महासमुंद के व्यवसायी विमल श्रीश्रीमाल से सत्यजीत रे की मित्रता थी और उन्हीं के अनुरोध पर ही केशवा गांव में छायांकन भी किया गया। 20-25 गांवों की लोकेशन देखने के बाद ‘सद्गति’ के लिए पंडित के घर की लोकेशन पसंद आई थी। गौंटिया अवधराम चंद्राकर के घर और खलिहान में छायांकन भी हुआ। हर सुबह 5 बजे टीम गांव पहुंचती थी और देर रात रायपुर लौटती थी। ओमपुरी चूंकि प्रमुख भूमिका में थे इसलिए वे कई बार केशवा गांव गये थे। इस फिल्म में ओमपुरी ने दुखी दलित की भूमिका निभाई थी तो मोहन अगासे पुरोहित की भूमिका में थे। भिलाई की मूल निवासी ऋचा, ओमपुरी की बेटी बनी थी। इस फिल्म का छायांकन का कुछ हिस्सा छतौना, पलारी में भी किया गया था। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे मानसिक रूप से गुलाम व्यक्ति ब्राम्हणवाद के नाम पर अपना शोषण होने देता है और शोषण सहते-सहते ही मर जाता है। इस फिल्म में ओमपुरी (दुखी) स्मिता पाटिल (झुरिया) मोहन अगासे (ब्राम्हण) गीता सिद्धार्थ (ब्राम्हण की पत्नी) ऋचा मिश्रा (धनिया) की प्रमुख भूमिका थी।
छत्तीसगढ़ में संस्कृति विभाग के एक कार्यक्रम में तब के छग सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मेरी मुलाकात ओमपुरी से कराई थी तब मैंने उन्हें अपनी पहली पुस्तक ‘इतिहास के आइने में छत्तीसगढ़’ भेंट की थी उन्होंने कहा था कि वे छत्तीसगढ़ को अच्छे से जानना चाहते हैं इसके लिए यह पुस्तक काफी उपयोगी साबित होगी।
वैसे ओमपुरी ने तब कहा था कि वे मुंबई छोड़कर छग के किसी शांत क्षेत्र में घर लेकर रहना चाहते हैं, जिस तरह शंकर गुहा नियोगी ने मजदूरों, आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ी वे भी कुछ करना चाहते हैं, उन्होंने तब नक्सलवाद खत्म करने अपनी फिल्म ‘चक्रव्यूह’ देखने की भी सलाह दी थी। उन्होंने कहा था नक्सली जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं, जिस दिन सरकार उन्हें जवाब दे देगी वे हथियार छोड़ देंगे बहरहाल छग में रहने की इच्छा ओमपुरी की पूरी नहीं हो सकी और वे दुनिया से विदा हो गये।

अभिशप्त बस्तर निजी उद्योगों के लिए….      

आदिवासी अंचल बस्तर क्या उद्योगों के लिए अभिशप्त है…। खास तौर पर निजी उद्योगों के लिए तो यह कहा जा सकता है। आजादी के काफी पहले 1930-1935 में जमशेदभाई टाटा ने बस्तर के उद्योग लगाने की पहल की पर यातायात के साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण यह विचार छोड़ दिया। बाद में टाटा उद्योग ने अपने पुरखों का सपना पूरा करने बस्तर में स्टील प्लांट की स्थापना की नींव रखी, किसानों से जमीन भी अधिग्रहित कर ली गई पर न जाने किण कारणों से बाद में टाटा स्टील प्लांट लगाने का विचार त्याग दिया वो तो भला हो कि छग में भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद अधिग्रहित जमीन किसानों/आदिवासियों को वापस मिल सकी।
यह सवाल दशकों से उठता आ रहा है कि बस्तर में अच्छी आबोहवा, यातायात के ठीक-ठाक साधन, अच्छे मेहनत कश लोग, जल, जंगल और जमीन की सुविधा, जमीनके भीतर भरपूर मात्रा में खनिज होने के बाद भी औद्योगिक घराने पहल करने के बाद पीछे क्यों हट जाते हैं इसके लिए केवल नक्सली आतंक को दोष देना बेमानी होगा आखिर देश के दूसरे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का तो औद्योगिकीकरण हो ही रहा है। वर्ष 1995 में एनएमडीसी बैलाडिला परियोजना के फाइन ओर के प्रदूषण को दूर करने एस्सार समूह बस्तर पहुंचा था उसने न सिर्फ इस समस्या का समाधान किया ‘कचरा’ समझे जाने वाले लौह अयस्क ओर से पहले पैलेट फिर स्टील बनाने की तकनीक लाकर नई संभावनाएंपैदा कर दी, अब हालात यह है कि एनएमडीसी कमाई कर रहा है और बस्तर के अब तक के लगभग 2 दशकों के सफर में कई विवाद भी जुड़ गये हैं। अब जबकि एस्सार स्टील बिक चुका है इसका मालिकाना हक आर्सेलर मित्तल निप्पोन को मिल चुका है, मित्तल की कंपनी यूके की है तो निप्पोन जापान की दोनों के ज्वाइंट वेंचर बस्तर के बीहड़ों में स्थित एस्सार स्टील की इस परियोजना को कैसे चलाएंगे यह देखना है। इधर हाल ही में एनएमटीसी की नगरनार स्टील को केंद्र सरकार द्वारा पूरा होने के पहले ही निजीकरण करने की योजना की भी जमकर चर्चा है, हालांकि भूपेश बघेल सरकार ने स्वयं खरीदकर इसके संचालन का प्रस्ताव रखा है देखना है कि इसका आगे होता क्या है, वैसे भूपेश सरकार छोटे मिनी स्टील प्लांट भी बंजर जमीनों पर लगवाने की पक्षधर हैं। वैसे अभी तक के घटनाक्रम तो यही कहते हैं कि निजी उद्योगों के लिए बस्तर अभिशप्त है, ज्ञात रहे कि जोगी सरकार के समय बस्तर के महेन्द्र कर्मा उद्योग मंत्री भी रह चुके थे।

कोरोना, वैक्सिनेशन और 28 साल…        

2020 का अधिकांश समय कोरोना महामारी से जूझते बीत गया, 2021 में जनवरी माह के दूसरे तीसरे सप्ताह से वेक्सिनेशन शुरू होने की खबर है। पहले फ्रंट लाईन पर मौजूद 2 करोड़ लोगों को वैकेसीन दी जाएगी, रोज एक लाख लोगों को देश में वैक्सीन लगेगी। इस हिसाब से मान लेते हैं कि भारत में 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन देनी हो और एक लाख वैक्सीन के लिए 100 दिन, 10 करोड़ लोगों को वैक्सीन के लिए 1000 दिन और 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन के लिए 10,000 दिन यानि लगभग 28 साल का समय लगेगा? वो भी15 अगस्त, 26 जनवरी, होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, गुरूनानक जयंती, जैसी राष्ट्रीय अवकाश पर निश्चित ही वैक्सीन देने का काम बंद रहेगा। कोरोना की वैक्सीन के सभी को 2 डोज दिये जाने हैं (अभी तक के अनुसार) यदि एक डोज के लिए 28 साल लगेेंगे तो 2 डोज के लिए 28×2=56 साल….?

छत्तीसगढ़ की बाजी….       

कांग्रेस की सरकार 15 सालों बाद छत्तीसगढ़ में बनी है। मुख्यमंत्री की दौड़ में भूपेश बघेल ने न केवल बाजी मार ली बल्कि 2 साल आसानी से पूरे भी कर लिये हैं…। यहां राजनीति की शतरंज के खेल में शह-मात का नहीं कैरम का खेल हो रहा है….। बघेल ने विस अध्यक्ष चरणदास महंत को ही अपना प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी बना लिया और टीएस बाबा यह देखते भी रहे…?

और अब बस….

0 एडीशनल डीजी हिमांशु गुप्ता के प्रतिनियुक्ति पर राजस्थान जाने की खबर है, उन्हें केवल एनओसी का इंतजार है। वहीं बीएसएफ से प्रतिनियुक्ति से राजेश मिश्रा के वापस छग लौटने की चर्चा है।
0 मुख्य सचिव अमिताभ जैन के कोरोना संक्रमित होने की खबर से कार्यवाहक मुख्य सचिव बनने एक अफसर से लाबिंग शुरू कर दी थी पर मायूसी उनके हाथ लगी।
0 मुंगेली, कांकेर, कोरिया, पेण्ड्रारोड, गौरेला के बाद महासमुंद यानि 5 जिलों का कलेक्टर बनकर प्रमोटी आईएएस डोमन सिंह का रिकार्ड बन गया है। अभी तक 4 जिलों में कलेक्टरी का रिकार्ड ठाकुर रामसिंह के नाम था।
0 पेट्रोल-डीजल, दालें, खाने का तेल, रसोई गैस आदि की कीमतें आसमान को छू रही हैं और कभी इसका जमकर विरोध करने वाले भाजपाई केंद्र में सरकार बनने के बाद चुप हैं….?

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