रणजीत भोंसले ( वरिष्ठ पत्रकार / मास मीडिया एक्सपर्ट ) जितना MSP बढ़ते जाता है खेती की लागत उतनी ही बढ़ते जाती है क्योकि रेगहा वाला , जोताई वाला , मताई वाला , मिंजाई वाला तो ट्रेक्टर वाला हार्वेस्टर वाला रोजी और ठेका वाले लेबर और खाद वाला बीजा वाला दवाई वाला ।बस इसका ही हिसाब करते रहते है कि किसान एक एकड़ में कितना उगा पा रहा और उसका एक एकड़ पीछे मंडी में कितना बन रहा ।बस उस आधार पर अपना अपना रेट बढ़ाते जाते है और किसान के हाथ लगता है हमेशा की तरह घण्टा । जिसे नेता लोग बजा बजा कर अपनी राजनैतिक रोटी पकने का ऐलान करते रहते है
एक उदाहरण- भी लेलो एक समय मे धान खुले बाजार में लोकल आढ़तियों के पास 3 से 5 रुपये किलो बिकता था । जोताई का रेट था 250 रुपये घण्टा और मिंजाई 200 रुपये प्रति घंटे तक था । ट्रेक्टर नया मिलता था 85000/- का ट्राली 30000/- एकदम हैवी वाली ।
आज धान बोनस सहित 25 रुपये किलो और ट्रेक्टर का रेट सिर्फ मुंडी 5 लाख और ऊपर ।
तो सोचिए कि किसान की आज हालत ऐसे क्यो है क्यो खेती के उपकरणों खाद बीज दवा पर उसके उत्पादन के लागत मूल्य और बिक्री मूल्य में सरकारी नियंत्रण नही रखा जाता।और गला फाड़ फाड़ कर कृषक हित की बात करने वाले इस बात को नजरअंदाज क्यो कर दे रहे है कि यदि किसान की आय बढ़ानी है तो खेती की लागत पर सरकारी नियंत्रण रखना ही होगा वरना सभी प्रयास विफल ही होंगे । सब कुछ जान समझ कर चुप रहना भी दोगलापन ही कहलायेगा। कृषि उत्पाद के आधार पर खाद्य पदार्थ का मूल्य निर्धारित होता है । अनाज सब्जी आदि जीने के लिए सबके लिए आवश्यक चाहे वो किसान हो या आम नागरिक सब इससे प्रभावित होते है।