देश में जहाँ एक ओर जहाँ कोरोना का संकट कम होता नज़र नहीं आ रहा वही दूसरी ओर अर्थव्यवस्था भी चरमरा गयी है | कोरोना काल में लोगो ने देश विदेश से जीवनयापन के लिए अपने पैत्रिक गाँव/घरो में पलायन किया | बड़े शहरों में लोगो की नौकरी गयी साथ में दो जून की रोटी कमाने का जरिया भी,मगर मजबूरी सब करा देती है | शुरू से समाज में कुछ अलग करने की पहल ने प्रशांत द्विवेदी को इन सब मुसीबतों पर सोचने के लिए किया और वही से दिमाग में ज़रुर्रत्मंदो के लिए कुछ करने की पहल शुरू हुई | कम पूंजी के साथ कोई ऐसा व्यवसाय शुरू करने के आईडिया के साथ दिमाग में अपने पिता द्वारा शुरू की गयी गौशाला को अपनी कर्मभूमि बनाने का निश्चय किया ।
जहाँ चाह वहां राह
गौशाला में गोबर से गोमय दिए बनाने का कार्य शुरू किया गया जिसको पहले एक पायलेट प्रोजेक्ट की तरह शुरू किया गया और शुरुआत में सभी अपने लोगो में बांटा गया | अच्छा फीडबैक आने के बाद गाँव की ही तीन महिलाओं को इस कार्य में जोड़ा गया और वहीँ से शुरू हुआ गोमय दिए व् गोमय गणेश बनाने का कार्य | महिलाओं द्वारा गाय के गोबर का इस्तेमाल करने गोबर के दिए व् गोबर गणेश बनाये जा रहे हैं और उन्हें लोकल बाजारों में बेचा जा रहा है जिससे उनको एक अच्छा दाम अच्छे मुनाफे के साथ मिल जाता है |
बड़े शहरों में भी डिमांड
जहाँ एक ओर गोमय गणेश के दिए की डिमांड स्थानीय बाजारों में काफी है वहीँ अब बड़े शहरो में भी इनका क्रेज बढ़ रहा है | बड़े शहरो में इनको काफी पसंद किया जा रहा है और काफी अच्छे आर्डर भी मिल रहे हैं |
साकार होते सपने
देश के प्रधान मंत्री का वोकल फॉर लोकल का सपना साकार करने के लिए प्रशांत द्विवेदी जैसे युवा उदामियों ने अपने स्तर पर पहल शुरू कर दी है | इनका सपना गोमय गणेश व् दीयों को ग्लोबल ब्रांड का है ताकि इस प्रकार के लोकल प्रोडक्ट देश की अर्थ व्यवस्था में अपना योगदान कर सकें |