{किश्त 251}


करीब 68 साल पहलेही रायपुर शहर में प्रदर्शन, गोलीकांड हुआ था, जिसे टाला भी जा सकता था, छत्तीसगढ़ के रायपुर में 26 और 27 अगस्त 1957 को ईसाई धर्म के रायपुर के गाॅस मेमोरियल में दुर्भाग्य जनक गोलीकांड हुआ था। सरकार द्वारा नियुक्त जांच आयोग के एकल सदस्य मप्र हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गणेश प्रसाद भट्ट ने 15 जनवरी 1958 को प्रशासन को रिपोर्ट प्रेषित की। घटनाक्रम पर प्रत्यक्ष दर्शी वरिष्ठ अधिवक्ता, साहित्यकार कनक तिवारी ने उस घटना की याद साझा किया, उनका कहना था कि मुझे अच्छी तरह याद है। कुछ दिनों पहले ही साइंस काॅलेज रायपुर में प्रथम वर्ष में भर्ती हुआ था,‘हंगामा बरपा‘ होते वक्त घटनास्थल पर बहुत देर रहा।यादें धीरे धीरे कम जो़र भी हो रही हैं। इसलिए जांच रिपोर्ट भूला बिसरा याद करने का सहारा है।जयस्तंभ चौक स्थित गाॅस मेमोरियल सेंटर अमेरिकन इवान्जे लिकल मिशन के रेवरेन्ड जे.गाॅस की स्मृति में 15अगस्त 1951 को तैयार हुआ।उद्घाटन सीएम रवि शंकर शुक्ल ने किया, यह भूखंड प्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ.बल देव प्रसाद मिश्र से 1941 में खरीदा गया था। पंजाब के मूल निवासी गुरबचन सिंह मूलतः सिख थे,युवा वस्था में ईसाई हो गए थे 1940 में रायपुर आकर वे गाॅस मेमोरियल सेंटर और अमेरिकी मिशन से जुड़ गए थे। रायपुर में ‘प्रकाश‘ और मसीही समाज‘ पत्रिकाओं का संपादन भी किया। इन पत्रिकाओं में अन्य धर्मों और विशेषकर हिन्दू धर्म के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्प णियां प्रकाशित होती रहती थीं। आरोप यह भी था कि उन्होंने ‘दुर्गापूजा‘, ‘हनुमान चालीसा‘ का पाठ गाॅस मेमोरियल में रुकने वाले अतिथियों को मनाही की थी।संस्कृतिकर्मी अरुण कुमार सेन द्वारा लिखित ‘विप्लव की होली‘ नामक नाटक में 15 अगस्त को मंच पर सरस्वती प्रतिमा रखी गई। 16 अगस्त को नटराज की मूर्ति रखे जाने पर गुरबचनसिंह ने आपत्ति की,17 अगस्त को अरुण कुमार सेन के कहने पर ही श्यामाचरण शुक्ल के स्वा मित्व वाले ‘महाकोशल’ समाचार पत्र के संपादक प्रसिद्ध क्रांतिकारी विश्वनाथ वैशम्पायन ने समाचार प्रका शित किया।रायपुर में सन सनी फैली। महाकोशल में 22 अगस्त को ‘इसे कौन सा द्रोह कहा जाए‘ शीर्षक से समाचार छपा। मुंशी मेहरुद्दीन ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखी कि उत्तेजित छात्र सड़कों पर आने वाले हैं। 22अगस्त की रात को हिन्दी साहित्य मंडल की बैठक राजकुमार काॅलेज में हुई।मंडल के अध्यक्ष घन श्याम प्रसाद ‘श्याम‘, ठाकुर हरिहर बख्श सिंह ‘हरीश‘, राधिकाप्रसाद नायक, पूनम चंद तिवारी भी थे। कथित तौर पर वैशम्पायन के कड़े रुख से बैठक में रेवरेंड गुर बचनसिंह के खिलाफनिन्दा प्रस्ताव पारितकिया। कला संस्कृति प्रेमियों से गाॅस ममोरियल का भी बहिष्कार करने की अपील की गई।यह समाचार 24 अगस्त को ‘महाकोशल ‘में प्रका शित हुआ। 23 अगस्त को गुप्तचर विभाग ने कलेक्टर को सूचना दी छात्र जुलूस निकालने वाले हैं। ‘महा कोशल‘ में भी छपा। शारदा चरण तिवारी ने प्रशासन से संपर्क किया।लेखक राधि का प्रसाद नायक, पूनमचंद तिवारी उनके नजदीकी थे। 26 अगस्त को‘महाकोशल‘ में फिर छपा कि 15 अगस्त को गाॅस मेमोरियल सेंटर में राष्ट्रीय ध्वज आधा लटका था। इससे स्थिति भड़क गई।26 अगस्त को हिन्दू हाईस्कूल से छात्रों का भी जुलूस निकला।उसमें पवित्र क्राॅस पर जूते लटकाए गए थे।शारदाचरण तिवारी,नपा अध्यक्ष,बुलाकीलालपुजारी से मदद मांगी गई। उन्होंने छात्रों को समझाने की कोशिश की।छात्र गाॅस मेमोरियल कांड केनजदीक पहुंचे। दुर्गा काॅलेज के छात्र भी बाहर आए। गाॅस मेमो रियल कांड का पुतला भी प्रतीक के तौर पर जलाया गया। गाॅस मेमोेरियल से कुछ पत्थर छात्रों पर फेंके गए। जवाब में छात्रों ने भी पत्थर बरसाए। छात्र छत्ती सगढ़ काॅलेज की ओरचले। सप्रे स्कूल के छात्र भी आ जुड़े। पूरा जुलूस आजा़द चौक की ओर मुड़ा। साइंस आयुवेदिकऔर छत्तीसगढ़ काॅलेज के छात्र भी आ जुडे़। जुलूस सदर बाजार कोतवाली होता हुआ गांधी चौक पहुंचा। फिर सेंट पाॅल स्कूल की ओर बढ़ा। कुछ तोड़फोड़ भी हुई। सेंटपाॅल स्कूल में छुट्टी कर दी गई। भीड़ हजारों की थी। छात्रों ने गाॅस मेमोरियल,गुरबचन सिंह के पुतले जलाए और पत्थर भी फेंके। समझाइशें असफल हो रही थीं।पुलिस असमर्थ थी। छात्र,गुरबचन सिंह से माफी मांगने,राष्ट्रीय ध्वज फहराने की जिद कर रहे थे। छात्रों ने कलेक्टर से कहा कि लिखित अभि वचन दिलाएं कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। इसी बीच गाॅस मेमोरियल में कई छात्र घुस गए। माइक छीन कर भडकाऊ भाषण होते रहे।अचानक पुलिसिया लाठी चार्ज बिना चेतावनी के हुआ। गुरबचन सिंह गाॅस मेमोरियल में ही छिपे हुए थे। पुलिस उनकी सुरक्षा लगातार कर रही थी।किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने की तैयारी थी।निकट स्थित पेट्रोल पंप की चिंता भी अधिकारियों को थी। एक नेता ने छात्रों को बहकाया कि पेट्रोल पंप पास है।गास मेमोरियल में सेवा कर दीजिए। इसी बीच गाॅस मेमोरियल कांड की दुकान जला दी गई। आग बुझाने की कोशिश सफल नहीं हुई। भीड़ को तितर-बितर करने गैर कानूनी संगठन लाउड स्पीकर पर घोषित किया गया। कुछ पुलिस अधिकारियों को हल्की चोटें लगीं। छात्र उत्तेजित होते रहे। पुलिसवालों को घेरना शुरू किया,टकराव बढ़ता रहा। इसी बीच भीड़ पर दूसरा लाठीचार्ज कर दिया गया। फिर जिला मजिस्ट्रेट ने गोली चलाने आदेश दिया। गोली चलने से भीड़ तितरबितर होकर भागने लगी।गोलीचालन के बावजूद पथराव होता रहा। लाउड स्पीकर पर चेतावनी बिखेरी गई। डीआईजी ने दोबारा गोलीचालन की अनु मति मांगी।कलेक्टर नेदूसरी बार गोली चलाने काआदेश दिया। इसमें हिन्दू हाईस्कूल के छात्र कृष्ण कुमार की मृत्यु हो गई। उसके नाम से ही मौदहापारा मार्ग का नाम घोषित किया गया…घटना में पत्रकार विश्वनाथ वैश म्पायन की सक्रिय भूमिका रही है। ऐसा आरोप जांच रिपोर्ट में लिखा गया कि उनके उत्साही समा चारों के कारण असंतोष का माहौल बना। अच्छा तो यही हुआ कि जस्टिस भट्ट ने अपनी रिपेार्ट में रेवरंड गुरबचन सिंह के खिलाफ कुछ नहीं लिखा,छात्रों की अभूतपूर्व एकता,जोश, उन्माद,असहनशीलता,अनुशासनहीनता लेकिन राष्ट्रीय संस्कृति के प्रति प्रेम कायह ज्वार रायपुर में ‘एक मेवो द्वितीयो नास्ति‘ की घटना की तरह हो गया।न्यायिक रिपोर्ट की लीपापोती में जस्टिस भट्ट ने भाषा पर नियंत्रण दिखाया। पीछे लौटकर देखता हूं। प्रशासन ने छात्रों को समझने में भूल की। एहतियात बरता होता तो बदनुमा गोली कांड टल सकता था। छात्र घंटों घूम रहे थे। तब पर्याप्त सुरक्षा बल जुटाया जा सकता था। गुरुबचन सिंह खेद प्रकट कर देते, तो घटना नहींहोती साहित्यकारों में शांति स्था पना के बदले माहौल में सांस्कृतिक और धार्मिक एकता के नाम पर भड़काने की वृत्ति जस्टिस भट्ट ने पाई थी। यह भी लिखा कि उनकी भाषा आत्मनियंत्रित हो सकती थी। नागरिकों की चेतावनी या समझाइश पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया। कोई नेता साहस के साथ छात्रों को रोक नहीं रहा था। प्रथम वर्ष के छात्र के रूप में लाउडस्पीकर पर उन्मादी भड़काऊ भाषण मेरा भी था। मैं आत्म गौरव से पीड़ित हो गया था।