{किश्त 211)
गोल बाजार में छोटी- बड़ी 1000 से अधिक दुकानें हैं।जहां हर धर्म के पूजा- पाठ के साथ अन्य जरुरी सभी सामग्री बेची जाती है। गुजरे दौर इसे मित्र बाजार कहा जाता था।गोलबाजार का नाम पहले मित्रबाजार था।1818 में अंग्रेजों ने रतनपुर के बदले रायपुर को मुख्यालय बनाया।बाद में गोलबाजार का विकास तेजी से हो गया है। गोल आकृति के चलते बाजार का नाम प्रचलित हो गया। छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती मप्र ओडिशा, झारखंड के साहू कार,व्यापारी,किसानों के साथ अंग्रेज बैलगाड़ी, घोड़े, तांगे पर सवार होकर यहां आते थे।
भोंसले राजाओं ने
कराया था निर्माण…
इतिहासकारों की मानें तो गोलबाजार की खासियत यह है कि ‘यहां जन्म से लेकर मृत्य’ तक इस्तेमाल की जानेवाली हर तरह की सामग्री आसानी से मिल जाती है। वैसे गोल बाजार का निर्माण मराठाकाल में भोसला राजाओं ने कराया।रायपुर के अलावा, बिलास पुर, राजनांदगांव, संबलपुर में भी बाजार बनाया था।छ्ग की रायपुर राजधानी ज़ब बनी तो साथ ही गोल बाजार बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हो गया कहा जाता है अगर रायपुर आकर गोलबाजार नहीं देखा तो क्या देखा…! गौर तलब है कि गोलबाजार का उन्नयन सन् 1909 में किया गया था। यह बाजार लग भग 125 साल पुराना है। गोलबाजार करीब साढ़े 3 एकड़ में फैला है। बाजार के बारे में पुरानी कहावत भी है “जो न मिले कहीं, वो सब मिले यहीं “। कहाजाता हैं कि इस बाजार में व्यक्ति की जन्म से अंतिम संस्कार तक का सारा सामान उप लब्ध है।वैसे रायपुर शहर के पुराने मोहल्ले पहले दूर -दूर बसे गांवों जैसे ही थे। पुरानीबस्ती में अलग-अलग जातियों की बस्तियां थीं। करीब 200 साल पहले नये लोग आए तो नयापारा बस गया था। मराठाकाल में ही तात्यापारा बसा,करीब100 साल पहले उप्र के मौदहा गांव से कुछ लोग आए तो मौदहापारा बस गया। इसी तरह बस्तियां बसती गईं। रायपुर के लिए परिवर्तन अंग्रेजों के आने का बाद आया। उन्होंने इस कस्बाई शहर को मुख्यालय बना कामकाज शुरू किया। राय पुर शहर की समुद्र सतह से ऊंचाई नापकर बंगला,रेल स्टेशन के पास लैंड मार्क गाड़े गए। शहर की समुद्र की सतह से ऊंचाई 300 मीटर है।धीरे-धीरे मुसाफिरों का आना शुरू हुआ। यहां शारदा चौक के पास बस स्टैंड बनाया गया। इसी बस स्टैंड में आज जहां पर रवि भवन है, उसी जगह पर ही ‘रायपुर जीरो पॉइंट’ का माइल स्टोन लगा हुआ था। आज के रवि भवन के पीछे पहले एक बड़ी सराय भी थी, किसान गोलबाजार में धान बेचने बैलगाड़ियों से आकर उसी सराय में ठहरते थे। बैलगाड़ी में रखे धानका सौदा सराय में ही होता था। धान बेचने के बाद किसान गोल बाजार में खरीदारी भी करते थे वैसे गोलबाजार के भीतर बैलगाड़ियां रखने के जगह होती थी। दरबार सिनेमा(प्रभात टॉकीज के पास नई मंडी बनाई गई तो सराय की रौनक कुछ कम होने लगी।बाद में उस सराय और खाली जगह का उपयोग नगर पालिका ने भी कबाड़ रखने तथा अन्य कार्यों के लिए करना शुरू किया था। सराय की वजह से जयस्तम्भ चौक कोपहले सराय चौक कहा जाता था।शारदा चौक,शहर का केंद्र बिंदु भी हुआ करता था।गोलबाजार जाने का रास्ता भी यहीं से था। इस वजह से वहां के बस स्टैंड को 60 के दशक में नई जगह ले जाया गया। पुराना बस स्टैंड,मधुस्विट्स के सामने था।बाद में 80 के दशक में बसस्टैंड पंडरी ले जायागया जिसे नयाबस स्टैंड कहा जाने लगा। इस बस स्टैंड को हाल में हटा भाठागांव में स्थापित किया गया है।वैसे किसी शहर का जीरो पॉइंट आमतौर पर वहां के मुख्य डाकघर को माना जाता है। किंतु कहीं-कहीं बस स्टैंड को ‘जीरोपॉइंट’ माना जाता है। रायपुर का जीरोपॉइंट रविभवन के पास ही था।