{किश्त 246}




बालोद, तांदुला नदी के तट पर प्रकृति की ही सुरम्य वादियों के बीच बसा शहर है।इसका भी गौरवशाली इतिहास भी है।अविभाजित मप्र के प्रकाशित राज पत्र में बालोद का इतिहास करीब हजार साल पहले बताया गया है।बालोद में 11 वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा का शासन था।इसका प्रमाण है, शहर के प्राचीन गंगासागर के तट पर मां शीतला मंदिर के निकट सत्ती चौरा है। पुरातत्वविद् के अनुसार यह अद्वितीय भारत की सबसे प्राचीन सत्तीचौरों में से एक है।सात चित्रकारों के समूह में स्थित कपिले श्वर मंदिर निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजवंश ने करवाया था। यहाँ गंगा मैया झलमाला, ऐनाकोना का मंदिर भी प्रसिद्ध है।इतिहास बताता है कि इस शहर में बहुत से मंदिर थे। साथ ही तालाबों की संख्या और भी अधिक थी। इसी वंश के शासकों ने महल का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि किले के पास पुराना तालाब था किले में 6 गुप्त मार्ग भी बनाये गये थे।इसका उप योग राजा अपने लिये करते थे,इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि 1463 ईस्वी में राजा मानसिंह देव का शासन था।उनकी पत्नी का नाम दिव्या था। कल्चुरी वंश की थी। वंश के अंतिम शासक त्रिभुवन शाह थे।उनकी 6 रानियाँ थीं। एक रात राजा और 5 रानियां पर अचानक आक्रमण किया गया। राजा त्रिभुवन शाह के मारे जाने के बाद उनका महल वीरान हो गया था (अब तो बालोद के बूढ़ा पारा में प्राचीन किले के अवशेष,बरगद के सहारे…) खैर उसी दौरान मंडला की रानी दुर्गावती अपने शत्रुओं से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुई उनका वंशज वहां से मानपुर अंबागढ़ स्टेशन के पास बस गया।उनमें से एक दामाशाह ने बालोद स्थित किले में अपना काम शुरू किया। नवगठित जिले के रूप में स्थापित बालोद मराठों के शासन में बालोद परगना था। मराठाकाल में 27 पर गनों में से एक था।ब्रिटिश काल में बालोद परगना रायपुर जिले के धमतरी तहसील का ही हिस्सा था। 1906 में दुर्ग को जिला बनाया गया तब बेमेतरा , बालोद को तहसील बनाया गया।बालोद तहसील में कोरचा,औंधी और अंबागढ़ शामिल थे जो कि पहले चांदा जिले (महाराष्ट्र) में थीं। गुंडरदेही जमीदारों के साथ 35 कलसा गांव,जिसे राजस्व गांव कहा जाता था। बालोद तहसील से दुर्ग तहसील में जोड़ा गया।19 06 में संजारी बालोद के नाम से जाना गया।जिसका मुख्यालय बालोद को ही बनाया गया। रायपुर में तब एक ग्राम बलोदा बाजार था(अब जिला मुख्यालय) भ्रम न हो इसलिए इसका नाम संजारी बालोद रखा गया। दुर्ग जिले के इतिहास में उल्लेख है कि दुर्ग जिले में 1951में 8 तहसीलें दुर्ग ,संजारी बालोद, राज नांदगांव,खैरागढ़, खमरिया डोंगरगढ़, कवर्धा,छुईखदान थे,बालोद से कुछ ही दूरी पर तांदुला बांध के सौंदर्य से रूबरू अविस्मरणीय अनुभव होता है।तीन ओर पहाड़ियों से घिरे, हरीतिमा से अनु प्राणित अलौकिक परिदृश्य ने सहज ही अभि भूत कर देता है। उल्लेख नीय है कि ब्रिटिशअभियंता एडम स्मिथ के मार्गदर्शन में ही तांदुला बांध का निर्माण 19 05 -1912 के बीचपूरा हुआ। 2012 में तांदुला जलाशय का शताब्दी समा रोह धूमधाम से मनाया गया था। इसकी उम्र अभीकरीब 113 साल हो गई है तांदुला बांध,तांदुला नदी- सूखा नाला के संगम पर स्थित है।तांदुला नदी का उद्गम कांकेर के भानुप्रतापपुर के उत्तर में स्थित पहाड़ियों में है। यह नदी 64 किलोमीटर की यात्रा कर शिवनाथ नदी में समाहित होती है,खारुन, शिवनाथ नदी की प्रमुख सहा यक नदी है। शिवनाथ नदी में मिलकर महानदी की संपन्न जलराशि में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करती है।बालोद जिले के संजारी क्षेत्र से निकलने वाली यह नदी राजधानी रायपुर की सीमा से होकर सिमगा के सोमनाथ केपास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। यहीं बेमेतरा- बलौदा बाजार को अलग करती है। बलौदा बाजार के उत्तर में अरपानदी, बिलासपुर जिले से निकलती है, शिवनाथ से आ मिलती है। हावड़ा-नाग पुर रेल लाइन इसी खारुन नदी के ऊपर से गुजरती है।खारुन नदी देखने वालों को अपनी ओर खींचती है।